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विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: बेरोजगारी दूर करने पर ही होगा वास्तविक विकास

By विश्वनाथ सचदेव | Updated: September 30, 2024 09:33 IST

सफाई कर्मचारी की नौकरी पाने के लिए तो यह लगभग चालीस हजार युवा नहीं पढ़ रहे थे. कुछ सपने होंगे इनके भी. निश्चित रूप से जीवन की विवशताओं के सम्मुख हार मानने के बाद ही इन युवाओं ने इस नौकरी के लिए आवेदन किया होगा. 

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ठळक मुद्देखबर हरियाणा के बारे में थी, जिसमें बताया गया था कि सफाई कर्मचारी का पद पाने के लिए तीन लाख 95 हजार युवाओं ने आवेदन किया है.खबर में यह भी बताया गया था कि इनमें से चालीस हजार तो स्नातक पदवीधारी हैं और लगभग सवा लाख बारहवीं पास हैं!किसी का स्नातक होना तो इसकी अर्हता हो ही नहीं सकती.

हाल ही में एक खबर आई थी टीवी पर. खबर हरियाणा के बारे में थी, जिसमें बताया गया था कि सफाई कर्मचारी का पद पाने के लिए तीन लाख 95 हजार युवाओं ने आवेदन किया है.

खबर में यह भी बताया गया था कि इनमें से चालीस हजार तो स्नातक पदवीधारी हैं और लगभग सवा लाख बारहवीं पास हैं! कोई भी काम छोटा नहीं होता, लेकिन इस खबर से यह तो पता चल ही रहा है कि हमारी शिक्षा-व्यवस्था का नागरिकों के जीवन-यापन से कितना और कैसा रिश्ता है. सफाई का काम कर पाने के लिए किसी को कितनी पढ़ाई करने की आवश्यकता है? 

किसी का स्नातक होना तो इसकी अर्हता हो ही नहीं सकती. होनी भी नहीं चाहिए. सफाई कर्मचारी की नौकरी पाने के लिए तो यह लगभग चालीस हजार युवा नहीं पढ़ रहे थे. कुछ सपने होंगे इनके भी. निश्चित रूप से जीवन की विवशताओं के सम्मुख हार मानने के बाद ही इन युवाओं ने इस नौकरी के लिए आवेदन किया होगा. 

सेंटर फोर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनाॅमी (सीएमआईई) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार अखिल भारतीयबेरोजगारी की दर 9.2 प्रतिशत है.  बेहतर स्वास्थ्य, बेहतर शिक्षा और बेहतर जीवन-स्तर किसी भी देश के विकसित होने को सही तरीके से परिभाषित करते हैं. 

किसी भी अर्थव्यवस्था की सफलता और मजबूती का बुनियादी मानदंड यही है कि हर हाथ को काम, हर सिर को छत और हर नागरिक को आगे बढ़ने का उचित और पर्याप्त अवसर मिले. जब व्यक्ति को चाहने और प्रयास करने पर भी अपनी योग्यता और क्षमता के अनुरूप कार्य नहीं मिलता तो अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी अपना सिर उठाने लगती है.  

इस बात की अवहेलना नहीं होनी चाहिए कि बेरोजगारी अंतत: विकास की दर को कम करती है, अर्थव्यवस्था में विकास को धीमा बनाती है. इसका सीधा असर गरीबी के स्तर पर पड़ता है. और इसका मतलब होता है कुपोषण को बढ़ावा. यह एक ऐसा दुष्चक्र है जो सारे गणित को गड़बड़ा देता है.भारत में युवाओं की संख्या दुनिया के सब देशों से अधिक है. 

हमारी 75 प्रतिशत से अधिक आबादी की आयु 35 वर्ष से कम है. इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि हमारी काम करने की क्षमता अधिक है. सवाल इस क्षमता के सही और समुचित उपयोग का है. बेरोजगारी के आंकड़े बताते हैं कि ऐसा हो नहीं रहा.

सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्या हम इस स्थिति से निपटने के लिए वह सब कर रहे हैं जो अपेक्षित है? क्या हमारी वरीयताओं में देश की युवा आबादी के लिए पर्याप्त काम की व्यवस्था का उचित स्थान है? हरियाणा में सफाई कर्मचारी के पद के लिए आवेदन करने वालों की संख्या तो यही बता रही है कि इस प्रश्न का उत्तर ‘हां’ नहीं है.

टॅग्स :बेरोजगारीभारत
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