Internet Shutdown: एक वक्त था जब तकनीकों की ओर हम तभी देखते थे, जब हमें किसी जरूरी और जटिल काम में मशीनी-तकनीकी सहयोग की जरूरत होती थी. यह मशीनी दौर ज्यादातर मामलों में मेहनत के कार्यों से संबंधित था. लेकिन कम्प्यूटर-इंटरनेट आदि तकनीकी इंतजामों ने ये परिभाषाएं काफी बदल दीं.
अब सिर्फ कामकाज नहीं, बल्कि मनोरंजन और समय काटने के प्रबंधों के तौर पर भी मशीनी उपकरणों और तकनीकी माध्यमों की जरूरत है. इसमें भी इंटरनेट संचालित कामकाज तो अब शीर्ष पर है पर समस्या यह है कि कभी तकनीकी दिक्कतों की वजह से (जैसे कि सर्वर बैठ जाने या ऑपरेटिंग सेवाओं में वायरस के कारण गड़बड़ी होने से) इंटरनेट की चाल गड़बड़ा जाती है.
तो कभी दंगे-फसाद या फिर किसी अराजक स्थिति पर नियंत्रण पाने के उद्देश्य से सरकारें ही इंटरनेट ब्लैक-आउट या शटडाउन का सहारा लेती हैं. वैसे इंटरनेट के ठप पड़ने का मतलब सिर्फ सरकारी पाबंदी नहीं है. कई बार इसके पीछे तकनीकी कारण भी होते हैं, जैसे इसी वर्ष माइक्रोसॉफ्ट की गड़बड़ी ने दुनिया भर के कम्प्यूटरों का संचालन बाधित कर दिया था.
तकनीकी संजाल पर पूरी तरह निर्भर होती जा रही दुनिया में आज इसका सटीक जवाब शायद ही किसी के पास हो कि क्या कुछ वेबसाइटों, एप्स या इंटरनेट के ही कुछ समय से लेकर पूरी तरह रुक जाने की समस्या का कोई इलाज मुमकिन है. असल में, जिन तरीकों और तकनीकों के बल पर इंटरनेट आज हम तक पहुंच रहा है.
वह काफी आधुनिक होने के बावजूद इतना मजबूत नहीं हुआ है कि किसी भी हाल में उसके काम करते रहने का भरोसा जग सके. एक समस्या दुनिया में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ने से पैदा हो रही है. इस कारण सर्वरों पर जो बोझ बढ़ रहा है, उस हाल में इंटरनेट का साम्राज्य कभी भी ढह सकता है.
एक गणना है कि करीब तीन दशक पहले 1995 में दुनिया की आबादी का सिर्फ एक फीसदी हिस्सा इंटरनेट से जुड़ा हुआ था. लेकिन अब दुनिया की साढ़े पांच अरब आबादी इंटरनेट की सक्रिय उपभोक्ता है. ऐसे में अगर किसी वजह से इंटरनेट की सांसें थमती हैं, तो नजारा सच में काफी भयावह हो सकता है.
बड़ा सवाल है कि आखिर वह कौन सा तरीका होगा, जो इंटरनेट शटडाउन को रोक सकता है. विशेषज्ञों की राय में इंटरनेट पर निर्भर हो चुकी दुनिया को पीछे लौटाना अब मुमकिन नहीं है. ऐसे में एकमात्र रास्ता यही है कि इंटरनेट के संचालन में आ रही बाधाओं को दूर करने के तरीके ईजाद किए जाएं. जैसे सर्वरों की संख्या बढ़ाई जाए.
जिन दूरदराज और दुर्गम इलाकों में ऑप्टिकल फाइबर लाइनें नहीं पहुंच सकतीं, वहां सैटेलाइट या हीलियम गुब्बारों की मदद से इंटरनेट पहुंचाया जाए. सर्वरों की संख्या बढ़े, समुद्र की तलहटी में मजबूत केबल्स बिछाई जाएं, जिन्हें जहाजों के लंगर की मार से बचाने के जतन भी किए जाएं. अगर समस्या तकनीकी प्रबंधों के संजाल से पैदा हो रही है, तो उनका समाधान भी तकनीकों में ही छिपा है.