लाइव न्यूज़ :

ऑस्कर की दौड़ में क्यों पिछड़ जाती हैं भारतीय फिल्में

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: March 5, 2025 06:41 IST

मदर इंडिया, लगान तथा सलाम बॉम्बे को छोड़कर कोई भी फिल्म जीत की दौड़ में शामिल नहीं हो सकी

Open in App

वर्ष 2023  में जब तेलुगू-हिंदी में बनी सुपर हिट फिल्म ‘आरआरआर’ को विशुद्ध व्यावसायिक फिल्म होने के बावजूद दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित फिल्म पुरस्कार ‘ऑस्कर’ में सफलता मिली तो लगा कि 1957 से एक अदद ऑस्कर के लिए संघर्ष कर रहे भारतीय फिल्म उद्योग को अब वैश्विक पहचान मिलने लगेगी. लेकिन 2024 और 2025 में हम खाली हाथ रहे. आरआरआर को सर्वश्रेष्ठ मौलिक गीत ‘नाटू नाटू’ और सर्वश्रेष्ठ मौलिक संगीत (एम.एम. कीरमानी) के लिए ऑस्कर मिला था.

आज से 68 वर्ष पहले जब भारत ने अपनी फिल्मों को ऑस्कर जीतने की दौड़ में भेजा था तब फिल्म निर्माण की गुणवत्ता तथा तकनीक के पैमाने पर जरूर वे कमतर होती थीं लेकिन कहानी, पटकथा, संगीत, अभिनय के मामले में वे दुनिया की अच्छी से अच्छी फिल्मों को टक्कर देती थीं. समय के साथ-साथ भारतीय फिल्में तकनीकी लिहाज से भी श्रेष्ठता हासिल करने लगीं तथा कथानक को लेकर मौलिक प्रयोग होने लगे. हर साल ऑस्कर के लिए भारतीय फिल्में भेजी जाती रहीं.

मदर इंडिया, लगान तथा सलाम बॉम्बे को छोड़कर कोई भी फिल्म जीत की दौड़ में शामिल नहीं हो सकी. 1957 में बनी मेहबूब खान की ‘मदर इंडिया’ किसानों की दयनीय स्थिति, साहूकारों केे हाथों उनके शोषण की करुण गाथा थी. हालांकि उसमें व्यावसायिक पुट जरूर था लेकिन उसे दुनिया की अच्छी से अच्छी क्लासिक फिल्मों से कम नहीं आंका जा सकता था. मदर इंडिया भले ही ऑस्कर नहीं जीत सकी मगर वह अपनी छाप छोड़ने में सफल रही.

महान फिल्मकार फेडेरिको फेलिनी की फिल्म नाइट्स ऑफ कैबिरिया से वह सिर्फ एक वोट से हारकर ऑस्कर जीतने से वंचित रह गई. इससे उम्मीद जागी कि निकट भविष्य में भारतीय फिल्में जरूर आस्कर जीतेंगी. भारत में एक ओर जहां सार्थक सामाजिक संदेश देनेवाला व्यावसायिक सिनेमा तेजी से तरक्की कर रहा था तो प्रचलित धारा से हटकर नए विषयों पर कलात्मक फिल्में बनाने वाले सत्यजीत रे, मृणाल सेन, मणि कौल, विमल रॉय, ख्वाजा अहमद अब्बास, श्याम बेनेगल जैसे फिल्मकार भी विशिष्ट छाप छोड़ रहे थे.

मगर इन कालजयी फिल्मकारों की कृतियों को भी ऑस्कर पुरस्कारों के निर्णायक मंडलों ने कभी पुरस्कार के योग्य नहीं समझा. यह धारणा आमतौर पर प्रचलित है कि ऑस्कर फिल्म पुरस्कार राजनीतिक-कूटनीतिक कारणों से प्रभावित नहीं होते लेकिन सच में ऐसा नहीं है.

किसी जमाने में हिटलर के जर्मनी बनाम यूरोप-अमेरिका, बाद में अविभाजित सोवियत संघ तथा अमेरिका के बीच शीतयुद्ध की छाप ऑस्कर विजेता फिल्मों पर दिखाई देती रही. दुनिया दो खेमों में बंटी थी. एक खेमे का नेतृत्व अविभाजित सोवियत संघ कर रहा था तो दूसरे खेमे की कमान अमेरिका के हाथों में थी. फ्रांस-जर्मनी जैसे यूरोपीय देशों का भी एक खेमा था लेकिन उनके हित आमतौर पर अमेरिका से जुड़े रहते थे.

सोवियत संघ तथा अमेरिका की गतिविधियां दुनिया के जिस क्षेत्र पर केंद्रित होती थीं, वहां की विषयवस्तु से जुड़ी फिल्में आस्कर की दौड़ में हमेशा आगे रहीं. एशिया में चीन, दक्षिण कोरिया तथा जापान की फिल्मों को ऑस्कर में तरजीह मिलती रही क्योंकि इन देशों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दोनों महाशक्तियों के आर्थिक-सामरिक-कूटनीतिक हित जुड़े रहे. भारत को नब्बे के दशक तक अविभाजित सोवियत संघ के खेमे का समझा जाता था. इसके अलावा वैश्विक मामलों में भारत के स्वर का ज्यादा महत्व नहीं था.

यही नहीं अमेरिका तथा सोवियत संघ दोनों एशिया में जापान, चीन के साथ-साथ दक्षिण कोरिया, वियतनाम तथा अस्सी के दशक में अफगानिस्तान को महत्व देने लगे. ऑस्कर में सफलता के लिए जरूरी था कि भारत के मसले किसी न किसी रूप में दोनों महाशक्तियों में से किसी को प्रभावित करते.

मगर ऐसा नहीं था. ऑस्कर के लिए भारतीय फिल्मों का चयन उपयुक्त तरीके से हाेता था. श्रेष्ठतम फिल्में ऑस्कर के लिए भेजी गईं मगर इन फिल्मों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित करवाने  के लिए लॉबिंग एवं मार्केटिंग का अभाव था. इसलिए सत्यजीत रे जैसे कालजयी फिल्मकार की फिल्में भी ऑस्कर में जगह नहीं बना सकीं. कॉन, वेनिस तथा बर्लिन जैसे प्रतिष्ठित फिल्म महोत्सवों में भारतीय फिल्मों ने सफलता के झंडे गाड़े लेकिन ऑस्कर में वे विफल रहीं. यह आश्चर्यजनक था लेकिन अप्रत्याशित नहीं क्योंकि भारतीय फिल्मों के कथानक सोवियत संघ या अमेरिका के हितों को स्पर्श नहीं करते थे.

1982 में बेन किंग्सले निर्मित-अभिनीत ‘गांधी’ तथा 2008  में ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ ने आठ-आठ ऑस्कर अवॉर्ड जीते. इनकी कथावस्तु भारतीय थी. अधिकांश कलाकार भारतीय थे मगर उन्हें भारतीय नहीं ब्रिटिश फिल्म माना गया. इस वर्ष ऑस्कर में ‘अनोरा’ की धूम रही.

एक भी भारतीय फिल्म किसी भी श्रेणी में जीत की दौड़ में शामिल नहीं हो सकी. भारतीय फिल्म के कर्णधारों के साथ-साथ सरकार को भी सोचना होगा कि दुनिया की बेहतरीन फिल्मों को टक्कर देनेवाला भारतीय सिनेमा वैश्विक मंच पर छाप छोड़ने के बावजूद ऑस्कर क्यों नहीं जीत पा रहा है?

टॅग्स :ऑस्कर अवार्डहिन्दी सिनेमा समाचारHollywoodबॉलीवुड हीरोफिल्म
Open in App

संबंधित खबरें

बॉलीवुड चुस्कीDhurandhar: फिल्म में दानिश पंडोर निभा रहे हैं उज़ैर बलूच का किरदार, कराची का खूंखार गैंगस्टर जो कटे हुए सिरों से खेलता था फुटबॉल, देखें उसकी हैवानियत

बॉलीवुड चुस्कीगूगल पर सबसे ज्यादा सर्च की गई फिल्में 2025, जिन्होंने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए, देखें पूरी लिस्ट

बॉलीवुड चुस्कीबहन कृतिका की हल्दी सेरेमनी में कार्तिक आर्यन का डांस, देखें तस्वीरें

बॉलीवुड चुस्कीWATCH: कार्तिक आर्यन ने बहन की हल्दी की रस्म में किया सलमान खान का चर्चित टॉवल डांस, भोजपुरी सॉन्ग में भी हिलाई कमरिया

बॉलीवुड चुस्कीशोभिता धुलिपाला ने नागा चैतन्य के साथ पहली सालगिरह पर शादी का एक शानदार वीडियो जारी किया

बॉलीवुड चुस्की अधिक खबरें

बॉलीवुड चुस्कीDhurandhar Part 2 release date out: रणवीर सिंह की फिल्म यश की 'टॉक्सिक' और 'धमाल 4' से करेगी क्लैश

बॉलीवुड चुस्कीब्लैक साड़ी में काजोल ने कराया फोटोशूट, 51 की उम्र में बिखेरा ग्लैमरस का जादू

बॉलीवुड चुस्की'तेरेको कितने पैसे चाहिए?': सनी देओल हरिद्वार में धर्मेंद्र के अस्थि विसर्जन के दौरान चुपके से रिकॉर्डिंग कर रहे पैपराज़ो पर भड़के | VIDEO

बॉलीवुड चुस्कीTere Ishk Mein OTT release: धनुष-कृति सेनन की रोमांटिक ड्रामा 'तेरे इश्क़ में' कब और कहाँ होगी स्ट्रीम

बॉलीवुड चुस्कीरणवीर सिंह ने ऋषभ शेट्टी से मांगी माफी, कांतारा में जीभ बाहर निकालने वाली क्लिप...