एक नार्मल सी फिल्म 'वीरे दी वेडिंग', जो 4 बेहद अमीर लड़कियों की दोस्ती की बेहद साधारण कहानी है, में ऐसा कुछ भी खास या अनोखा नहीं था कि उसको ऐसी बॉक्स ऑफिस सफलता मिलती| स्वरा भास्कर के बोल्ड डायलॉग और एक बेहद बोल्ड कहा जा सकने वाला हस्तमैथुन सीन| जी हां, बेहद बोल्ड, भारतीय सभ्यता के हिसाब से तो ज़रूर ही बेहद बोल्ड सीन, क्यूंकि यहाँ पर हम सेक्स को ही डिस्कस नहीं करते और यह तो लड़कियों के हस्तमैथुन जैसे संवेदनशील टॉपिक को छूता है|
स्वरा भास्कर को इस सीन के लिए सोशल मीडिया पर बहुत सारी गालियां और बद-दुआएं मिल रही हैं| लेकिन ऐसा हंगामा मचाना कहां तक उचित है? क्यों एक महिला का मास्टरबेशन अश्लीलता की श्रेणी में ला कर पटक दिया गया है? क्यों हम समाज की इस सच्चाई को स्वीकार नहीं करना चाहते कि सिर्फ पुरुष ही नहीं महिला भी अपनी सेक्सुअल सेटिस्फैक्शन के लिए मास्टरबेट करती हैं| यह उतना ही सच है जितना कि महिलाओं का पोर्न देखना| इस सच्चाई को हमें एक्सेप्ट करने में झिझक क्यों है?
स्वरा ने फिल्म पद्मावत में औरतों को योनि मात्र समझने के बयान से जो विवाद शुरू किया था वो उनके मास्टरबेशन सीन से तूल पकड़ चुका है| लोगो का मानना है कि ऐसा 'फेमिनिज़्म' के नाम पर ऐसा घटिया सीन करके स्वरा ने अपने बयान की ही बेइज़्ज़ती की है| इस सीन के बाद, उन्होंने खुद महिलाओं को योनि मात्र करार कर दिया है|
लेकिन क्या यह सब विवाद सही है? क्या अब भारतीय समाज को सच स्वीकार नहीं कर लेना चाहिए| सेक्स और सेक्सुअल फीलिंग कब तक पर्दों के पीछे छुपकर सांस लेती रहेगी| हम सभी जानते हैं कि भारत ही क्या विश्व के हर कोने में मर्द और औरत दोनों ही कभी ना कभी, किसी ना किसी हालात में हस्तमैथुन कर चुके हैं, तो फिर फिल्म के एक सीन पर इतना हंगामा क्यों? क्यों हम अब भी एक महिला को इस तरह खुले तौर पर अपनी सेक्सुअल ज़रुरत के लिए उठाये गए कदम को अश्लीलता की निगाह से देखते हैं? क्यों सेक्सुअली एक्सप्रेसिव महिला हमेशा कैरेक्टरलेस कहलाती है और एक पुरुष बोल्ड कहा जाता है?
आखिर क्यों हम महिला और पुरुष की ज़रूरतों को अलग - अलग तौलते हैं? एक पुरुष पेशाब करने के लिए कही भी खड़ा हो जाता है और उसे कोई अश्लील नहीं कहता, उसकी तरफ किसी का ध्यान ही नहीं जाता लेकिन अगर यही हरकत एक महिला कर दे तो वो बहस का मुद्दा, न्यूज़ की हेडिंग बन जाती है| समाज के इस दोगलेपन पर एक प्रश्न है 'वीरे दी वेडिंग' का हस्तमैथुन सीन और हम स्वरा भास्कर को इसके लिए कोस रहे हैं|
आखिर कौन है जो मास्टरबेट नहीं करता? या जिसने जीवन में कभी भी ऐसा नहीं किया है? मजाक में एक बात कही जाती रही है कि 98% पुरुष हस्तमैथुन करते हैं और बचे हुए 2% हस्तमैथुन करते तो हैं पर स्वीकार नहीं करते| लेकिन 2009 में किया गए एक सर्वे के अनुसार 61% पुरुषों ने हस्तमैथुन करना स्वीकार किया और महिला के सन्दर्भ में यह आंकड़ा भी 38% था|
2013 में हुए एक सर्वे के अनुसार 85% शादीशुदा पुरुषों ने शादी के बाद भी हस्तमैथुन करना स्वीकार किया है| 15% पुरुषों ने माना कि उनकी पत्नियों को उनके इस हरकत का पता है और 17% ने बताया कि उनकी पत्नियों को इस बात की जानकारी बिलकुल नहीं है| किसी भी सर्वे ने शादीशुदा महिलों पर ऐसा कोई सर्वे नहीं किया लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह बात शादीशुदा महिला पर लागू नहीं होती|
महिलाओं पर हुए एक सर्वे में यह बात निकल कर आयी कि 15 साल से बड़ी लड़कियों और महिलाओं ने अपने जीवन में कभी ना कभी हस्तमैथुन ज़रूर किया है| महिलाओं में हस्तमैथुन को लेकर एक वेब पोर्टल एजेंट्स ऑफ़ इश्क़ ने एक सर्वे में 100 भारतीय महिलों से बात की थी जिनमें से 17% महिलाओं ने माना की उन्होंने हस्तमैथुन के लिए पुराने नोकिया 3310 फोन का इस्तेमाल किया है|
भारत या विश्व की महिलाएं हस्तमैथुन से सिर्फ परिचित ही नहीं बल्कि सेक्सुअल प्लीजर के लिए खुल कर इसका उपयोग करती हैं तो एक बेहद साधारण सी बॉलीवुड फिल्म के एक बेहद नार्मल से सीन को लेकर विवाद को ऐसा तूल देना बेहद दुःखद है|
अगर किसी को इस फिल्म के बारे में बुराई करना ही था तो स्वरा भास्कर के डायलॉग और सीन से ज्यादा सोनम कपूर की एक्टिंग की करते, फिल्म की बेसिर पैर की कहानी पर करते| जाने अनजाने में ट्रॉल्स ने इस फिल्म की इतनी पब्लिसिटी कर दी कि एक फ्लॉप फिलोम सुपरहिट हो गयी|