अभिलाष खांडेकर
प्रिंट मीडिया के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि इसे एकदम हटाया नहीं जा सकता, जैसा कि सोशल मीडिया में कोई विवाद उत्पन्न होने पर किया जाता है. जी हां, मैं रणवीर अलाहबादिया के घटिया ‘मजाक’ की बात कर रहा हूं, जो
उस कॉमेडियन के खिलाफ दर्ज एफआईआर के बाद सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से मिनटों में गायब हो गया.रणवीर अपनी घटिया कॉमेडी सामग्री के कारण प्रसिद्धि में आए, लेकिन समाज से उन्हें जो तीव्र और त्वरित प्रतिक्रिया झेलनी पड़ी, उससे शायद उन्हें यह फर्क पता चलेगा कि असली व अच्छी कॉमेडी क्या है और वह जो गंदा फूहड़ कचरा फैला रहे हैं, वह क्या है.
दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इस तथाकथित ‘इंफ्लुएंसर’ को भारत सरकार द्वारा पिछले वर्ष ही सम्मानित किया गया था और भाजपा में अनेक लोग उसके सोशल मीडिया हैंडल पर उसके चहेते बने हुए थे.
सच कहूं तो मैंने इस आदमी के बारे में कभी नहीं सुना था, उसके कॉमेडी शो में दिलचस्पी लेना तो दूर की बात है. सोशल मीडिया और खासकर यूट्यूब का आगमन बहुत तेजी से हुआ है और इसमें कोई नियंत्रण एवं संतुलन नहीं है जैसा कि हमारे अखबारों और पत्रिकाओं में काफी हद तक रहता है.
असम्मानजनक और घटिया सामग्री पत्रकारिता के मानकों पर खरा नहीं उतर सकती. लेकिन रणवीर के जैसे ऑनलाइन शो - मैं शो का नाम नहीं ले रहा हूं क्योंकि मैं उसका महिमामंडन नहीं करना चाहता - में कोई आंतरिक नियंत्रण नहीं है जो कई अन्य मीडिया करते हैं. अलग-अलग तरह की पठनीय या श्रवणीय सामग्री तैयार करना ही पत्रकारिता नहीं है. मैं सटीक तौर पर नहीं बता सकता कि पत्रकारिता कब ‘मीडिया’ बन गई और मीडिया कब इतना सामाजिक हो गया कि अब वह ‘असामाजिक’ बनने की धमकी दिखा रहा है.
मैं हमेशा से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का खुला समर्थक रहा हूं, जो हमें 1950 से हमारे सुंदर संविधान द्वारा प्रदान की गई है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कोई हमारे नैतिक मूल्यों का मजाक उड़ाए और हर तरह की नैतिकता को ध्वस्त कर दे.
रणवीर अलाहबादिया ने बिल्कुल यही किया और वह भी बहुत बुरे तरीके से और उसे दंडित किया जाना चाहिए.सर्वोच्च न्यायालय ने उसे सिर्फ डांट-फटकार लगाई और उसकी गिरफ्तारी का आदेश नहीं दिया, यह एक अलग बहस का विषय है, लेकिन ऐसे ‘हास्य कलाकारों’ को समाज द्वारा कड़े तरीके से दंडित किया जाना चाहिए.
समय-समय पर कई भारतीय भाषाओं में जाने-माने हास्य कलाकार हुए हैं. कार्टूनिस्ट और कैरिकेचर बनाने वाले भी रहे हैं, जो आमतौर पर राजनेताओं, जिनमें प्रधानमंत्री भी शामिल हैं, का मजाक उड़ाने के लिए कार्टून बनाते थे.
दूसरों को हंसाना एक कला है. व्यंग्य रचना, किसी की टांग खींचना और तरह-तरह के चुटकुले बनाना सदियों से हमारे बीच रहा है. यह उस व्यक्ति की सकारात्मक रचनात्मकता के बारे में है जो अपनी कलम, बोले गए शब्दों और ब्रश के माध्यम से लोगों को हंसाने में मदद करता है.
आधुनिक समय में, भारतीय संदर्भ में बालासाहब ठाकरे या आर.के. लक्ष्मण का नाम सबसे पहले दिमाग में आता है. फ्री प्रेस जर्नल और मार्मिक में उनके कार्टून और टाइम्स ऑफ इंडिया में लक्ष्मण के आम आदमी के पॉकेट कार्टून राजनीतिक कार्टूनिंग की पहचान रहे हैं, जो शक्तिशाली राजनेताओं का मजाक उड़ाते थे, लेकिन गरिमा और शैली के साथ.
मराठी भाषा में, महान प्रल्हाद केशव अत्रे और पु. ल. देशपांडे हुए हैं, जो अपने बुद्धिमत्तापूर्ण व्यंग्य और व्यापक रूप से हास्य लेखन के लिए जाने गए. महाराष्ट्र में लोग अभी भी उनकी किताबें पढ़ते हैं और उनकी लेखन शैली का आनंद लेते हैं जो उन्हें गुदगुदाती है. हिंदी में, शरद जोशी ने पाठकों को हंसने का एक कारण देने के लिए वर्षों तक लगभग एक दैनिक कॉलम लिखा.
मैं निश्चित रूप से रणवीर को अपने कला के इन दिग्गजों के नजदीक आने की अनुमति देने की गलती नहीं करूंगा, जिन्होंने दशकों तक अपने हजारों प्रशंसकों को खुश किया. जब जून 2000 में पुणे में 80 साल की उम्र में देशपांडेजी की मृत्यु हुई, तो उनका अंतिम संस्कार इस मायने में ऐतिहासिक था कि जो लोग उनसे कभी नहीं मिले थे, लेकिन उनके हास्य लेखन को पढ़ चुके थे, वे पुणे की सड़कों पर बेसुध होकर रो रहे थे. श्मशान घाट की ओर जाने वाली सभी सड़कें जाम थीं. भारत में किसी भी हास्य-लेखक को इस तरह से श्रद्धांजलि नहीं दी गई है.
अंग्रेजी में, सर पेलहम ग्रेनविले वुडहाउस (पीजीडब्ल्यू) 20 वीं सदी के सर्वकालिक शीर्ष हास्य लेखक रहे, जिनकी पुस्तकें 1975 में उनकी मृत्यु के काफी बाद तक प्रकाशित और पुनर्प्रकाशित होती रही हैं. हमारे अपने खुशवंत सिंह एक विपुल हास्य लेखक थे.
निम्न स्तर के हास्य अभिनेता रणवीर के बारे में परेशान करने वाली बात यह है कि यह सब भाजपा के शासनकाल में हुआ है, जो आध्यात्मिकता का आह्वान करके भारत को पुनः महान बनाने का प्रयास कर रही है.