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कोरोना टेस्ट अब X-rays के जरिए हो सकेगा! वैज्ञानिकों ने खोजा नया तरीका, जानिए कैसे करेगा काम

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 20, 2022 11:17 AM

वैज्ञानिकों ने दुनिया की सबसे सस्ती एक्स रे तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिये कोरोना संक्रमितों की पहचान का दावा किया है।

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ठळक मुद्देकोरोना संक्रमण की पहचान के लिए एक्स रे का उपयोग किया जाएगा संक्रमण का पता लगाने के लिए डाटाबेस में मौजूद 3,000 तस्वीरों से एक्स रे का मिलान किया जाएगा एक्स रे तकनीक दुनिया की सबसे सस्ती और सुलभ तकनीकों में से एक है

कोरोना महामारी से जूझ रही दुनिया को वैज्ञानिकों ने एक राहत भरी खबर दी है। स्कॉटलैंड के वैज्ञानिकों ने दुनिया की सस्ती तकनीकों में से शामिल एक्स रे के माध्यम से कोरोना संक्रमित व्यक्ति की पहचान का नया तरीका खोजा है। इस प्रक्रिया में वैज्ञानिक कोरोना संक्रमित व्यक्ति की पहचान के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग कर रहे हैं। 

इस मामले में यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट स्कॉटलैंड के वैज्ञानिकों ने जो जानकारी दी है। उसके मुताबिक यह परीक्षण कोरोना संक्रमित की पहचान प्रकिया में 98 फीसदी प्रभावी है। इसके साथ ही विशेषज्ञों का दावा है कि कोरोना संक्रमितों की पहचान का यह तरीका पीसीआर टेस्टिंग से कम समय लेता है, जिसमें कोरोना टेस्टिंग के परिणाम मिलने में घंटों का वक्त लग जाता है। 

यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट स्कॉटलैंड के प्रोफेसर नईम रमजान ने इस संबंध में बताया कि कोरोना संक्रमण मामले में विश्व को शुरू से ऐसे टूल की जरूरत थी जो कम समय में संक्रमण के होने या न होने के विषय में पुख्ता सबूत दे सके और Omicron के तेजी से बढ़ते संक्रमण रफ्तार के संबंध में देखें तो यह और भी जरूरी है।  

X-rays से कोरोना का टेस्ट, कैसे करेगी ये तकनीक काम

प्रोफेसर नईम रमजान ने तीन व्यक्तियों की उस टीम का नेतृत्व किया है, जिन्होंने एक्स रे और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिये कोरोना संक्रमण के पहचना की नई तकनीक का इजाद किया है।  

यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट स्कॉटलैंड के विशषज्ञों के मुताबिक नई एक्स रे तकनीक में स्कैन की गई इमेज को लगभग 3,000 तस्वीरों के बड़े डेटाबेस से तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। इस डाटाबेस में कोविड-19 से संक्रमित व्यक्तियों के अलावा सामान्य व्यक्तियों और निमोनिया के मरीजों की एक्स रे तस्वीरें होती हैं। 

इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रकिया को डीप कन्वेन्शनल न्यूरल नेटवर्क के रूप में जाना जाता है, जो एक्स रे इमेज का एनालिसिस करने और डायग्नोसिस करने के लिए एक एल्गोरिथ्म का उपयोग करता है। इस तकनीक को खोजने वाले वैज्ञानिकों का कहना है यह परीक्षण प्रकिया कोरोना संक्रमण की पहचना के लिए 98 फीसदी तक प्रभावी साबित हुई है। 

प्रोफेसर रमजान ने इस तकनीक के फायदे के बारे में बात कते हुए बताया कि वर्तमान हालात में विश्व में कई ऐसे देश हैं, जिनके पास कोरोना संक्रमण की पहचान करने वाले टूल की बड़ी कमी है। जिसकी वजह से वो देश बड़े पैमाने पर कोविड परीक्षण करने में सक्षम नहीं हैं। लेकिन इस रिसर्च में कोरोना वायरस को आसानी से और साधारण तकनीक के उपयोग से पता लगाया जा सकता है। 

'संक्रमण का पता लगने से जल्द इलाज हो सकेगा शुरू'

इसके साथ ही प्रोफेसर रमजान ने कहा, "कोरोना वायरस के गंभीर संक्रमण के मामलों में जल्द डायग्नोसिस होने से निश्चित ही यह तकनीक जीवन को बचाने में काफी अहम साबित होगी क्योंकि जितनी जल्दी संक्रमण का पता लगेगा, उतनी ही जल्दी ट्रीटमेंट भी शरू किया जा सकता है।"

हालांकि, एक्स रे तकनीक का जबरदस्त समर्थन करते हुए भी प्रोफेसर रमजान ने इस बात को भी स्वीकार किया कि कोरोना संक्रमण के शुरुआती स्टेज में एक्स-रे के जरिये कोविड-19 के लक्षण पकड़ पाने में मुश्किल होती है। इसलिए पीसीआर परीक्षणों की जरूरत को पूरी तरह नहीं नकारा जा सकता है।

एक्स रे तकनीक के विषय में यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट स्कॉटलैंड में रिसर्च, इनोवेशन और एंगेजमेंट के वाइस प्रिंसिपल प्रोफेसर मिलन राडोसावलजेविक और खोजी टीम के एक अन्य सदस्य ने कहा कि वे अब इस रिसर्च को आगे वृहद रूप से शुरू करने की योजना पर काम कर रहे हैं। 

टॅग्स :कोरोना वायरसCoronaScotland
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