लाइव न्यूज़ :

युक्तिसंगत कहानियों और सुलभ सूचनाओं से कोविड-19 टीकों को लेकर असमंजस को दूर किया जा सकता है

By भाषा | Updated: October 12, 2021 16:58 IST

Open in App

(जोएले बास्क्यू और निकोलस बेनचेरकी, टेल्यूक यूनिवर्सिटी)

क्यूबेक सिटी (कनाडा), 12 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) जो लोग कोविड-19 टीकाकरण का विरोध करते हैं, वे ऐसा किसी संख्या या आंकड़े से प्रभावित होकर नहीं करते। करीब 15 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जो टीका लगवाने का विरोध करते हैं और उनमें से अधिकतर इस बारे में किसी विज्ञान आधारित विमर्श को खारिज कर देते हैं।

कोविड-19 के गंभीर स्वरूप से बचाने में टीकों के प्रभाव की बात करें तो डॉक्टर, पत्रकार और नेता पुरजोर तरीके से वैज्ञानिक तथ्यों की बात करते हैं। हालांकि, टीकों का विरोध करने वालों का अलग नजरिया है। उनके लिहाज से विज्ञान की बात राजनीतिक है।

उनका मानना है कि टीके के लिए वैज्ञानिक आधार प्रस्तुत करने वालों का मकसद संदिग्ध है और वे अपने निजी एजेंडे के लिए तथ्यों को हेरफेर कर प्रस्तुत कर रहे हैं। टीकों को लेकर असमंजस या विरोध की स्थिति को समझने के लिए हमें इस बात को समझना होगा कि लोग टीकाकरण समेत विभिन्न वैज्ञानिक विषयों की व्याख्या किस तरह करते हैं।

हम कहेंगे कि इस बारे में सूचना को सुलभ बनाना महत्वपूर्ण है, जिसमें नयी सूचना और अनुभव दोनों शामिल हैं, जो बाकी जनता के साथ साझा किये जाते हैं।

ऐसा करने के लिए, संचार शोधकर्ताओं के रूप में, हम अर्थ-निर्माण के सामाजिक और कथात्मक आयामों के बारे में अपने ज्ञान को देखते हैं। वास्तव में, संचार के क्षेत्र में भलीभांति किये गये शोध दिखाते हैं कि हमारी समझ इस बात से आकार लेती है कि हम उन लोगों को कैसे पहचानते हैं, जिनके बारे में हम कहानियों में सुनते हैं। उदाहरण के लिए, यह देखना कि रोगी कैंसर के बारे में जानकारी को कैसे समझते हैं। चूंकि पहचान और इतिहास जो उन्हें आकार देते हैं, वे असंख्य और विविध हैं, इसलिए वैज्ञानिक तथ्यों की हमारी व्याख्या भी विविध हो सकती है। हमारी समझ तब एक राजनीतिक आयाम ले सकती है।

अनुभव मायने रखता है

विद्वान कार्ल ई. वीक और संचार विशेषज्ञ वाल्टर आर फिशर द्वारा विकसित क्रमश: संवेदना निर्माण और कथा सिद्धांतों के अनुसार लोग पहले अपने खुद के अनुभव से तथ्यों का आकलन करते हैं और फिर अपने संबंधियों के अनुभव के आधार पर मूल्यांकन करते हैं। ये अनुभव उन लोगों में कहानियों के रूप में बदल जाते हैं, जिनमें लोग खुद को देखते हैं और जिनके साथ उन्हें पहचानते हैं।

ये कहानियां सबसे अधिक प्रभावी तब होती हैं, जब इनमें श्रोता को इस तरह पेश किया जाता है, जैसे उनके जीवन पर नियंत्रण हो। उदाहरण के लिए कई लोगों के लिए वो कहानी ज्यादा युक्तिसंगत होगी जिसमें परिवार के किसी सदस्य ने चिकित्सा उपचार के लिए विवेकपूर्ण फैसला लिया।

जब हम सोशल मीडिया पर टीकों के बारे में बातचीत देखते हैं तो हम देखते हैं कि व्यक्तिगत कहानियों को साझा करना उन प्रमुख तरीकों में से एक है, जिससे लोग टीकों की विश्वसनीयता और सुरक्षा के बारे में अपनी राय बनाते हैं। लोग कहानियों के रूप में अपने अनुभवों को बयां करते हैं ताकि वे साझा कर सकें और तुलना कर सकें।

अधिकतर लोग निजी अनुभव से टीकाकरण के बारे में समझते हैं, वहीं वैज्ञानिक तथ्य अक्सर सांख्यिकीय रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं, जिनमें उनके श्रोताओं के अनुभव से लेनादेना नहीं होता। उदाहरण के लिए कोविड-19 रोगियों की अस्पतालों में भर्ती होने की दर। अस्पतालों में भर्ती होने का दूसरों का अनुभव उन लोगों को प्रभावित नहीं कर सकता, जो टीका लगवाने का विरोध कर रहे हैं।

तथ्यों को अक्सर उन वैज्ञानिकों के नजरिये से पेश किया जाता है, जो उन्हें जारी करते हैं या मीडिया या सरकारी प्रतिनिधियों के दृष्टिकोण से पेश किया जाता है,इसलिए इन तथ्यों पर भरोसा करने के लिए इन संस्थानों पर विश्वास जरूरी होता है। विश्वास में कमी कुछ लोगों में इस धारणा को विकसित कर सकती है कि उनके जीवन पर उनका जो नियंत्रण है, अधिकारी उसे लेना चाहते हैं।

विश्वास का यह संकट आंशिक रूप से इस तथ्य की वजह से है कि अधिकतर लोगों का चिकित्सा अनुसंधान, पत्रकारीय विश्लेषण या राजनीतिक निर्णय लेने जैसी प्रक्रियाओं के साथ कोई सीधा अनुभव नहीं होता। इसलिए जब टीके को लेकर असमंजस की स्थिति रखने वालों के सामने कहानियां रखी जाती हैं तो उन्हें लगता है कि बाहरी लोग बिना सवाल पूछे उन्हें निर्देशित करने का प्रयास कर रहे हैं।

वैज्ञानिक तथ्य और निजी कहानियां

इन निष्कर्षों के आधार पर, दो सिफारिशें की जा सकती हैं। पहला यह होगा कि वैज्ञानिक अनुसंधान पर रिपोर्ट में और अधिक गैर-वैज्ञानिकों को शामिल किया जाए ताकि लोग मुद्दों को बेहतर ढंग से समझ सकें और महसूस कर सकें कि वे बहस में भाग ले रहे हैं। उदाहरण के लिए, पांच से 11 वर्ष के बच्चों के लिए कोविड-19 टीकों की आसन्न स्वीकृति के साथ, इन टीकों के नैदानिक ​​परीक्षणों में भाग लेने वाले बच्चों के माता-पिता का उपयोग वैज्ञानिक अनुसंधान प्रक्रिया को समझने और अन्य माता-पिता को संबंधित कहानियों को साझा करने के लिए किया जा सकता है।

या, जैसा कि इस समय मीडिया कर रहा है, कोविड-19 से मरने वाले उन युवाओं के रिश्तेदारों की कहानियों को साझा कर रहा है, जिन युवाओं ने टीका नहीं लगवाया। इससे उन लोगों पर प्रभाव पड़ सकता है, जो टीका लगवाने के लिए अनिच्छुक हैं।

उसी तरह, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मीडिया में आंकड़ों का विश्लेषण करने वाले लोग वैज्ञानिक पृष्ठभूमि के हो और वे आंकड़ों को सुलभ तरीके से प्रस्तुत करने में सक्षम हों। उदाहरण के लिए, हाई स्कूल स्तर के गणित का उपयोग करके टीका नहीं लगवाने वाले लोगों के अस्पतालों में भर्ती होने के आंकड़ों को टीकाकरण वाले भर्ती लोगों की संख्या से किया जा सकता है।

दूसरी सिफारिश यह होगी कि लोग किस प्रकार की परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं, इस बारे में अधिक सार्वजनिक चर्चा करें। जो लोग आज संदेह व्यक्त करने की हिम्मत रखते हैं, उन्हें बहस से बहुत जल्दी हटा दिया जाता है और उन्हें परित्यक्त का दर्जा दिया जाता है। उन लोगों के लिए और उदाहरण प्रस्तुत किए जाने चाहिए, जिन्होंने अपनी शंकाओं पर काबू पाया, जिसमें वह प्रक्रिया भी शामिल है, जिसके माध्यम से उन्होंने ऐसा किया।

कुछ लोग जो टीकाकरण से इनकार करते हैं, वे खुद को जागरूक नागरिक या चिंतित माता-पिता के रूप में देखते हैं। उनके लिए, यह प्रतिरोध का कार्य है जो उन्हें अपने स्वयं के जीवन पर नियंत्रण बनाए रखने की अनुमति देता है। हालांकि, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि वैज्ञानिक तथ्यों की सूचना दी जाए, लेकिन किसी को भी इन वैध चिंताओं के महत्व को कम करके नहीं आंकना चाहिए।

संक्रमण, अस्पताल में भर्ती होने और मौतों पर दैनिक आंकड़े प्रकाशित करना आवश्यक है, लेकिन टीके के कट्टर विरोधियों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए ये पर्याप्त नहीं लगता। उन्हें समझाने के लिए, वैज्ञानिक तथ्यों को प्रासंगिक बनाया जाना चाहिए और मानवीय अनुभव के तत्वों के रूप में समझने योग्य बनाया जाना चाहिए।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Open in App

संबंधित खबरें

क्रिकेटIND vs SA 3rd T20I: 2025 में खेले 20 मैच और जीते 15, हार्दिक के 100 विकेट, वरुण ने पूरे किए 50 विकेट और अभिषेक शर्मा के टी20 में 300 छक्के पूरे

भारतकार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त नितिन नबीन?, पीएम मोदी, राजनाथ सिंह और अमित शाह ने क्या किया पोस्ट

क्रिकेटIND Vs SA 3rd T20I: धर्मशाला में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ भारत 7 विकेट से जीता, सीरीज में 2-1 से आगे

भारतमैं पीएम मोदी, जेपी नड्डा और अमित शाह का आभारी हूं?, नितिन नबीन बोले- कार्यकर्ताओं को समर्पित

भारतWho is Nitin Nabin? कौन हैं नितिन नबीन, जिन्हें बनाया गया है भाजपा का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष?

विश्व अधिक खबरें

विश्वSydney Mass Shooting Video: हिम्मत वाले राहगीर ने हमलावरों में से एक को पकड़ा, गोलीबारी के बीच उसे निहत्था किया

विश्वSouth Africa: 4 मंजिला मंदिर के ढहने से हादसा, एक भारतीय समेत चार की मौत

विश्वCanada: दो भारतीयों की गोली मारकर हत्या, स्टडी वीजा पर आए थे विदेश

विश्वसीरिया में ISIS ने की 2 अमेरिकी सैनिकों की हत्या, ट्रंप ने बदला लेने की खाई कसम

विश्वUS: ब्राउन यूनिवर्सिटी में गोलीबारी में 2 की मौत, कई घायल; हमलावर अब भी फरार