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रानी पद्मावती ही नहीं, इस पौराणिक पात्र से भी जुड़ा है चित्तौड़गढ़ किला का इतिहास

By मेघना वर्मा | Updated: January 17, 2018 19:12 IST

किला 180 मीटर पहाड़ी की उंचाई पर बना हुआ है। 691.9 एकड़ के क्षेत्र में फैले हुए इस किले से बहुत सी ऐतिहासिक घटनाएं जुड़ी हैं।

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फिल्म 'पद्मावत' को लेकर उठे विवाद के कारण राजपूत समाज तो सुर्खियों में है ही, लेकिन साथ ही रानी पद्मावती से जुड़ा चित्तौड़ का किला भी लोगों के बीच प्रसिद्ध होने लगा है। धीरे-धीरे किले में आने वाले पर्यटकों की संख्या में इजाफा हो रहा है। चित्तौड़गढ़ और उदयपुर दोनों में ही पर्यटकों की भीड़ देखने को मिल रही है। रानी पद्मिनी के जौहर स्थल और पद्मनी मंदिर देखने के लिए चित्तौड़गढ़ व उदयपुर किले में हर रोज देश-विदेश से पर्यटक पहुंच रहे हैं। इसकी गिनती भारत के विशालतम किले में की जाती है, साथ ही यह किला वर्ल्ड हेरिटेज साईट में भी शामिल है। किला विशेषतः चित्तौड़, मेवाड़ की राजधानी के नाम से जाना जाता है। पहले इस पर गुहिलोट का शासन था और बाद में सिसोदिया का शासनकाल था। आप भी जानिए क्या है इस किले का रानी पद्मावती और प्राचीन भारत से जुड़ा हुआ इतिहास।

16 हजार से भी अधिक महिलाओं और बच्चों ने यहां किया था जौहर

चित्तौड़ी राजपूत के सूर्यवंशी वंश ने 7वीं शताब्दी से 1568 तक परित्याग करने तक शासन किया और 1567 में अकबर ने इस किले की घेराबंदी की थी। यह किला 180 मीटर पहाड़ी की उंचाई पर बना हुआ है। 691.9 एकड़ के क्षेत्र में फैले हुए इस किले से बहुत सी ऐतिहासिक घटनाएं जुड़ी हैं। 15 से 16 वीं शताब्दी के बाद किले को तीन बार लूटा गया था। 1303 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने राजा रतन सिंह को पराजित किया था। 1535 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने विक्रमजीत सिंह को पराजित किया था और 1567 में अकबर ने महाराणा उड़ाई सिंह द्वितीय को पराजित किया था। माना जाता है कि उड़ाई सिंह द्वितीय ने इस किले को छोड़कर उदयपुर की स्थापना की थी। लेकिन तीनों ही समय राजपूत सैनिकों ने जी-जान से इस किले को बचाने के लिए  लड़ाई की थी। उन्होंने महल को एवं राज्य को बचाने की हर संभव कोशिश की, लेकिन हर बार उन्हें हार का ही सामना करना पड़ रहा था। चित्तोड़गढ़ किले के युद्ध में सैनिकों के पराजित होने के बाद राजपूत सैनिकों की तकरीबन 16,000 से भी ज्यादा महिलाओं और बच्चों ने जौहर कर अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था।

सबसे पहले रानी पद्मावती ने लिया था जौहर

सबसे पहला जौहर राजा रतन सिंह की सबसे छोटी रानी, रानी पद्मिनी ने किया था। उनके पति 1303 के युद्ध में मारे गये थे और बाद में 1537 में रानी कर्णावती ने भी जौहर किया था। इसीलिये यह किला राष्ट्रप्रेम, हिम्मत, मध्यकालीन वीरता और 7 और 16 वीं शताब्दी में मेवाड़ के सिसोदिया और उनकी महिलाओं और बच्चों का राज्य के प्रति बलिदान देने का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। उस समय राजपूत शासक, सैनिक, महिलाएं और स्थानिक लोग मुगल सेना को सरेंडर करने की बजाये लड़ते-लड़ते प्राणों की आहुति देना ठीक समझते थे।

महाभारत में भी है उल्लेख

चित्तौड़ का महाभारत में भी उल्लेख किया गया है। कहा जाता है की 5 पांडवों में भीम अपनी ताकत के लिये जाने जाते थे। इसी के चलते एक बार उन्होंने पानी पर भी अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया था जिससे एक कुंड का निर्माण हुआ था और उस कुंड को भीमलत कुंड के नाम से जाना जाता है। लेकिन बाद में इसका नाम बदलकर भीमा रखा गया था। प्राचीन गाथाओं के अनुसार इस किले का निर्माण कार्य भीम ने ही शुरू किया था।

1303 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने किले को घेर लिया था। 1534 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने किले को घेर लिया था और 1567 में मुगल बादशाह अकबर ने किले पर आक्रमण किया था। घेराबंदी के काल को यदि छोड़ दिया जाए तो यह किला हमेशा गुहिलोट के राजपूत वंश के सिसोदिया के नियंत्रण में ही था। उन्होंने इसे बाप्पा रावल से अवतरित किया था। इस किले की स्थापना को लेकर कई प्राचीन कहानियां भी हैं और हर घेराबंदी के बाद इसके पुनर्निर्माण की भी बहुत सी कहानियां हैं।

वर्ल्ड हेरिटेज साईट में हुआ शामिल

2013 में कोलंबिया के फ्नोम पेन्ह में वर्ल्ड हेरिटेज कमिटी के 37 वें सेशन में चित्तौड़गढ़ किले के साथ ही राजस्थान के पांच अन्य किले भी यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट में शामिल किए गए थे।

चित्तौड़गढ़ किले का निर्माण 7 वीं शताब्दी में मौर्य के शासन काल में किया गया था और इसका नाम भी मौर्य शासक चित्रांगदा मोरी के बाद ही रखा गया था। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार चित्तौड़गढ़ किला 834 सालों तक मेवाड़ की राजधानी रह चुका था। इसकी स्थापना 734 में मेवाड़ के सिसोदिया वंश के शासक बाप्पा रावल ने की थी।

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