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Pitru Paksha 2020: श्राद्ध में करे गीता का पाठ... पितरो को मिलेगी शांति

By गुणातीत ओझा | Updated: September 2, 2020 15:19 IST

श्रद्धा से किया गया कर्म श्राद्ध कहलाता है। अपने पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं। उन्हें तृप्त करने की क्रिया को तर्पण कहा जाता है। तर्पण करना ही पिंडदान करना है।

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ठळक मुद्देअपने पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं।भाद्रपद की पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण की अमावस्या तक कुल 16 दिन तक श्राद्ध रहते हैं।

श्रद्धा से किया गया कर्म श्राद्ध कहलाता है। अपने पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं। उन्हें तृप्त करने की क्रिया को तर्पण कहा जाता है। तर्पण करना ही पिंडदान करना है। भाद्रपद की पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण की अमावस्या तक कुल 16 दिन तक श्राद्ध रहते हैं। इन 16 दिनों के लिए हमारे पितृ सूक्ष्म रूप में हमारे घर में विराजमान होते हैं। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि श्राद्ध में श्रीमद्भागवत गीता के सातवें अध्याय का माहात्म्य पढ़कर फिर पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए। इस पाठ का फल आत्मा को समर्पित करना चाहिए।

श्राद्धकर्म से पितृगण के साथ देवता भी तृप्त होते हैं। श्राद्ध-तर्पण हमारे पूर्वजों के प्रति हमारा सम्मान है। इसी से पितृ ऋण भी चुकता होता है। श्राद्ध के 16 दिनों में अष्टमुखी रुद्राक्ष धारण करें। इन दिनों में घर में 16 या 21 मोर के पंख अवश्य लाकर रखें। शिवलिंग पर जल मिश्रित दुग्ध अर्पित करें। घर में प्रतिदिन खीर बनाएं। भोजन में से सर्वप्रथम गाय, कुत्ते और कौए के लिए ग्रास अलग से निकालें। माना जाता है कि यह सभी जीव यम के काफी निकट हैं। श्राद्ध पक्ष में व्यसनों से दूर रहें। पवित्र रहकर ही श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध पक्ष में शुभ कार्य भी वर्जित माने गए हैं। श्राद्ध का समय दोपहर में उपयुक्त माना गया है। रात्रि में श्राद्ध नहीं किया जाता। श्राद्ध के भोजन में बेसन का प्रयोग वर्जित है। श्राद्ध कर्म में लोहे या स्टील के पात्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। पितृदोष जब शांत हो जाता है तो स्वास्थ्य, परिवार और धन से जुड़ी बाधाएं भी दूर हो जाती हैं।

शास्त्रों के अनुसार पितृगणों का श्राद्ध कर्म करने के लिए वर्ष में 96 अवसर मिलते हैं। साल के 12 माह में 12 अमावस्या तिथि को भी श्राद्ध किया जा सकता है। श्राद्ध कर्म करने से तीन पीढ़ियों के पूर्वजों को तर्पण किया जा सकता है। श्राद्ध तीन पीढ़ियों तक होता है। श्राद्ध पुत्र, पोता, भतीजा या भांजा करते हैं। जिनके घर में पुरुष सदस्य नहीं हैं, उनमें महिलाएं भी श्राद्ध कर सकती हैं। पितृ पक्ष में सभी तिथियों का अलग-अलग महत्व है। जिस व्यक्ति की मृत्यु जिस तिथि पर होती है, पितृ पक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध कर्म किए जाते हैं।

पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष आरंभ होता है। प्रतिपदा तिथि पर नाना-नानी के परिवार में किसी की मृत्यु हुई हो और मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो उसका श्राद्ध प्रतिपदा पर किया जाता है। पंचमी तिथि पर अगर किसी अविवाहित व्यक्ति की मृत्यु हुई है तो उसका श्राद्ध इस तिथि पर करना चाहिए। अगर किसी महिला की मृत्यु हो गई है और मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है तो उसका श्राद्ध नवमी तिथि पर किया जाता है। एकादशी पर मृत संन्यासियों का श्राद्ध किया जाता है। जिनकी मृत्यु किसी दुर्घटना में हो गई है, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि पर करना चाहिए। सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों के लिए श्राद्ध करना चाहिए। जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है।

ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि पितरों का कर्ज चुकाना एक जीवन में तो संभव ही नहीं, उनके द्वारा संसार त्याग कर चले जाने के बाद भी श्राद्ध करते रहने से उनका ऋण चुकाने की परंपरा है। इसमें जो षष्ठी तिथि को श्राद्धकर्म संपन्न करता है उसकी पूजा देवता भी करते हैं।

पितृ पक्ष  के दौरान दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है।  मान्यता है कि अगर पितर नाराज हो जाएं तो व्यक्ति का जीवन भी खुशहाल नहीं रहता और उसे कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यही नहीं घर में अशांति फैलती है और व्यापार व गृहस्थी में भी हानि झेलनी पड़ती है। ऐसे में पितरों को तृप्त करना और उनकी आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध करना जरूरी माना जाता है।

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