मां दुर्गा के कई रूप हैं। इन्हीं रूपों में से एक है माता शीलता का रूप। मान्यता है कि जो मां शीतला की पूजा करता है वो हमेशा आरोग्य रहता है। मां शीतला मां काली की ही तरह असुरों का नाश करती हैं। वहीं माता की पावन पूजा शीतला अष्टमी वाले दिन होता है।
इस महीने शीतला अष्टमी का व्रत 15 अप्रैल को पड़ रहा है। शीतलाष्टमी देश के अलग-अलग भागों में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में अलग-अलग तिथियों को मानाया जाता है। बिहार, पूर्वांचल, उड़ीसा में बैशाख कृष्ण पक्ष की अष्टमी को ये पर्व मनाया जाता है। शीतला अष्टमी को ही कई जगहों पर बसौड़ा या बसोरा भी कहा जाता है।
ना जलाएं चूल्हा
ऐसी मान्यता है कि शीतला अष्टमी के दिन घर में ताजे भोजन के लिए चूल्हा नहीं जलाना चाहिए। इस पर्व का वैज्ञानिक महत्व भी है। दरअसल, शीतला अष्टमी का व्रत मौसम में परिवर्तन का भी सूचक है। आम तौर पर इसके बाद गर्मी की शुरुआत होने लगती है और इसलिए आज के बाद बासी खाना बंद कर दिया जाता है। इसलिए कोशिश करें कि आप भी चूल्हा ना जलाएं।
ऐसा है मां का स्वरूप
शीतला माता के स्वरूप की बात करें तो वह गर्दभ यानी गधे पर सवार होती हैं। उनके एक हाथ में झाड़ी है और वह नीम के पत्तों के आभूषण में दिखती हैं। वहीं मां के दूसरे हाथ में ठंडे जल का कलश भी दिखता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शक्ति के दो स्वरूप माने जाते हैं पहला देवी दुर्गा और दूसरा माता पार्वती का। शीतला माता को इन दोनों स्वरूपों का अवतार माना जाता है।
Sheetla Ashtami 2020: शीतला अष्टमी पूजा विधि
1. शीतला अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठे और स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। 2. अब पूजा की थाली तैयार करें। 3. थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, सप्तमी के दिन बने मीठे चावल, मठरी आदि को रखें। 4. अब एक दूसरी थाली भी लें। 5. इसमें आटे से बना दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, हल्दी, मोली, सिक्के और मेहंदी रखें।
6. दोनों थाली के साथ ठंडे पानी का लोटा भी रखें।7. अब विधि-विधान से शीतला माता की पूजा करें और दीपक को बिना जलाए मंदिर में रखें। 8. माता को सभी चीजें एक-एक कर चढ़ाएं और विधिवत पूजा करें। 9. अंत में जल चढ़ाए और बचे हुए जल को घर के सभी सदस्यों के आंखों पर लगाए। 10. बचे हुए पानी को घर आकर पूजा के स्थान पर रखें।