Lord Vishnu: श्रीहरि ने वामन रूप में कैसे नाप दिया था तीन पग में ब्रह्मांड, कैसे तोड़ा था महाप्रतापी बलि का दंभ, जानिए यहां

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: March 28, 2024 06:54 AM2024-03-28T06:54:41+5:302024-03-28T07:23:02+5:30

हिंदू सनातन धर्म ग्रथों के अनुसार भगवान श्रीहरि विष्णु का वामन अवतार बेहद महत्त्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि कमलनयन भगवान विष्णु की लीलाएं अनंत है और उसी में से वामन अवतार एक प्रमुख लीला है।

Lord Vishnu: How Shri Hari in the form of Vaman had measured the universe in three steps, how he had broken the pride of the great Bali, know here | Lord Vishnu: श्रीहरि ने वामन रूप में कैसे नाप दिया था तीन पग में ब्रह्मांड, कैसे तोड़ा था महाप्रतापी बलि का दंभ, जानिए यहां

फाइल फोटो

Highlightsहिंदू सनातन धर्म ग्रथों के अनुसार श्रीहरि विष्णु का वामन अवतार बेहद महत्त्वपूर्ण माना जाता हैभगवान ने बलि का दंभ चूर करने के लिए एक छोटे कद के ब्राह्मण ब्रह्मचारी वामन का रूप लियाभगवान विष्णु ने कुल दश अवतार लिये थे, इसी दशावतार में वामन अवतार पांचवां अवतार है

Lord Vishnu:  हिंदू सनातन धर्म ग्रथों के अनुसार भगवान श्रीहरि विष्णु का वामन अवतार बेहद महत्त्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि कमलनयन भगवान विष्णु की लीलाएं अनंत है और उसी में से वामन अवतार एक प्रमुख लीला है। भगवान ने एक छोटे कद के ब्राह्मण ब्रह्मचारी वामन का रूप लिया था क्योंकि भगवान विष्णु बलि नामक एक दानी लेकिन महाअभिमानी राक्षस के दंभ को चूर करना चाहते थे।

विभिन्न पौराणिक ग्रंथों की मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने कुल दश अवतार लिये थे, जिन्हें मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार, नरसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, राम अवतार, कृष्ण अवतार और कल्कि अवतार के रूप में जाना जाता है। दशावतार में भगवान विष्णु का वामन अवतार पांचवां अवतार है और वामन अवतार भगवान विष्णु का ऐसा पहला अवतार है, जब वह पहली बार मनुष्य रूप में अवतरित होते हैं।

विष्णु का वामन अवतार की कथा

वामन अवतार की कथानुसार देव और दैत्यों के युद्ध में दैत्य पराजित होने लगे थे। पराजित दैत्य मृत एवं आहतों को लेकर अस्ताचल चले जाते हैं और दूसरी ओर दैत्यराज बलि इंद्र के वज्र से मृत हो जाते हैं। तब दैत्यगुरु शुक्राचार्य अपनी मृत संजीवनी विद्या से बलि और दूसरे दैत्यों को भी जीवित एवं स्वस्थ कर देते हैं। देवताओं के राजा इंद्र को दैत्यराज बलि की इच्छा का ज्ञान होता है कि बलि सौ यज्ञ पूरे करने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करने में सक्षम हो जाएगा।

तब इंद्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं। भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते हैं और वामन रूप में माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं। दैत्यराज बलि द्वारा देवों के पराभव के बाद ऋषि कश्यप के कहने से माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं, जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। तब विष्णु भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन माता अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते हैं तथा ब्रह्मचारी ब्राह्मण का रूप धारण करते हैं।

वामन अवतारी श्रीहरि, राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंच जाते हैं। ब्राह्मण बने विष्णु भिक्षा में तीन पग भूमि मांगते हैं। राजा बलि दैत्यगुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी अपने वचन पर अडिग रहते हुए, विष्णु को तीन पग भूमि दान में देने का वचन कर देते हैं।

वामन रूप में भगवान एक पग में स्वर्गादि उध्र्व लोकों को और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लेते हैं। अब तीसरा पग रखने को कोई स्थान नहीं रह जाता। ऐसे में राजा बलि यदि अपना वचन नहीं निभाए तो अधर्म होगा। आखिरकार बलि अपना सिर भगवान के आगे कर देता है और कहता है तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए।

वामन भगवान ठीक वैसा ही करते हैं और बलि को पाताल लोक में रहने का आदेश करते हैं। बलि के द्वारा वचन पालन करने पर भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं और दैत्यराज बलि को वर मांगने को कहते हैं। इसके बदले में बलि रात-दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन मांग लेता है।

वामनावतार के रूप में विष्णु ने बलि को यह पाठ दिया कि दंभ तथा अहंकार से जीवन में कुछ हासिल नहीं होता है और यह भी कि धन-सम्पदा क्षणभंगुर होती है। ऐसा माना जाता है कि विष्णु के दिए वरदान के कारण प्रति वर्ष बलि धरती पर अवतरित होते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी प्रजा खु़शहाल है।

अध्यात्म रामायण के अनुसार राजा बलि भगवान वामन के सुतल लोक में द्वारपाल बन गए और सदैव बने रहेंगे। तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में भी इसका ऐसा ही उल्लेख है। देशभर में वामन जयंती पर जगह-जगह धार्मिक आयोजन होते हैं। लोग इनकी जयंती को पूरी भावना भक्ति से मनाते हैं।

देश भर में भगवान वामन रूप के अनेक मंदिर भी हैं। भगवान के इस रूप के प्रति लोगों की आस्था देखते ही बनती है। राजा बलि के प्रति भी लोगों की आस्था है। वास्तव में उन जैसा दृढ़प्रतिज्ञ राजा विरला ही होता है। वह जब भूमि दान के संकल्प को ले लेते हैं, तो दैत्य गुरु शुक्राचार्य के मना करने के बावजूद पीछे नहीं हटते। शुक्राचार्य को आभास हो गया था कि राजा बलि के लिए संकट आ गया है, पर वह अपने वचन से नहीं हटते क्योंकि वह प्रतिज्ञा कर चुके थे।

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