शरद पूर्णिमा 30 अक्टूबर, 2020 (शुक्रवार) यानी आज है। शरद पूर्णिमा (कोजागिरी लक्ष्मी पूजा) आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। शरद पूर्णिमा को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। इन्हीं कथाओं में से एक कथा रावण को लेकर भी प्रचलित है। लंकापति रावण शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। ऐसा करने से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी।
चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है। अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।
शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। हल्दी का उपयोग निषिद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है।
वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है। इस रात्रि में दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे सेवन किया जाता है। रोगी को रात्रि जागरण करना पड़ता है और औषधि सेवन के पश्चात 2-3 किमी पैदल चलना लाभदायक रहता है।