जयंती विशेष: रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल, जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है, पढ़ें मिर्जा गालिब के 10 मशहूर शेर By संदीप दाहिमा | Published: December 27, 2019 7:39 AMOpen in App1 / 9रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है2 / 9न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता3 / 9हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है4 / 9हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले5 / 9मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले6 / 9काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब' शर्म तुम को मगर नहीं आती7 / 9इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया वर्ना हम भी आदमी थे काम के8 / 9बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना9 / 9ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता और पढ़ें Subscribe to Notifications