Chandrayaan-3 mission 2023: प्रणोदन, लैंडर और रोवर का एक संयोजन, जानें क्यों कहा जा रहा 'बाहुबली', जानिए और खासियत

By सतीश कुमार सिंह | Published: July 11, 2023 01:19 PM2023-07-11T13:19:49+5:302023-07-11T13:31:02+5:30

Next

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने घोषणा की कि चंद्रयान-3 मिशन का प्रक्षेपण 14 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केंद्र से किया जाएगा और इसके लैंडर के चंद्रमा की सतह पर 23 या 24 अगस्त को ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने की उम्मीद है। चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का अनुवर्ती मिशन है, जिसके चंद्र सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और घूमने की संपूर्ण क्षमता प्रदर्शित करने की उम्मीद है।

उल्लेखनीय है कि चंद्रयान-2 मिशन के दौरान लैंडर के ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने में सफलता नहीं मिल पाई थी और इस लिहाज से चंद्रयान-3 मिशन को भारत के लिए काफी अहम माना जा रहा है। चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान, जिसे एलवीएम-3 (प्रक्षेपण यान मार्क-3) (पहले जीएसएलवी एमके-3 के रूप में जाना जाता था) द्वारा प्रक्षेपित किया जाएगा। यह तीन मॉड्यूल- प्रणोदन, लैंडर और रोवर का एक संयोजन है।

रोवर चंद्र सतह का अध्ययन करेगा और यह लैंडर के अंदर लगा है। इसरो ने ट्वीट किया, "चंद्रयान-3: एलवीएम3-एम4/चंद्रयान-3 मिशन के प्रक्षेपण की घोषणा: प्रक्षेपण अब 14 जुलाई, 2023 को अपराह्न 2:35 बजे एसडीएससी (सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र), श्रीहरिकोटा से निर्धारित है।" इस बीच, अंतरिक्ष विभाग के सचिव एवं इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि चंद्रयान-3 मिशन के तहत इसरो 23 अगस्त या 24 अगस्त को चंद्रमा पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ का प्रयास करेगा।

इसरो अधिकारियों ने कहा कि लैंडर का मिशन काल एक चंद्र दिवस होगा, जो पृथ्वी के 14 दिन के बराबर है। उन्होंने कहा, "(सॉफ्ट-लैंडिंग के लिए) तारीख इस आधार पर तय की जाती है कि चंद्रमा पर सूर्योदय कब होता है। लैंडिंग करते समय, सूरज की रोशनी होनी चाहिए। चंद्रमा पर 14-15 दिन तक सूरज की रोशनी होती है और अगले 14-15 दिन तक सूरज की रोशनी नहीं रहती है।" चंद्रयान-3 मिशन चंद्र रेजोलिथ के थर्मोफिजिकल गुणों, चंद्र भूकंपीयता, चंद्र सतह प्लाज्मा वातावरण और लैंडर के उतरने के स्थल के आसपास के क्षेत्र में मौलिक संरचना का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिक उपकरण ले जाएगा।

इसरो के अधिकारियों के अनुसार, लैंडर और रोवर पर इन वैज्ञानिक उपकरणों का दायरा जहां "चंद्रमा के विज्ञान" थीम में फिट होगा, वहीं एक अन्य प्रायोगिक उपकरण चंद्र कक्षा से पृथ्वी के स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्रिक सिग्नेचर का अध्ययन करेगा, जो "चंद्रमा से विज्ञान" थीम में फिट होगा। इस साल मार्च में, चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान ने आवश्यक परीक्षणों को सफलतापूर्वक पूरा किया था जिससे प्रक्षेपण के दौरान आने वाले कठोर कंपन और ध्वनिक वातावरण का सामना करने की अंतरिक्ष यान की क्षमता की पुष्टि हुई।

प्रणोदन मॉड्यूल में चंद्र कक्षा से पृथ्वी के वर्णक्रमीय और ध्रुवीय माप का अध्ययन करने के लिए ‘स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्रिक ऑफ हैबिटेबल प्नैनेट अर्थ’ (एसएचएपीई) नामक उपकरण है और यह लैंडर तथा रोवर को चंद्र कक्षा के 100 किलोमीटर तक ले जाएगा। चंद्र लैंडर से संबंधित उपकरणों में तापीय चालकता और तापमान को मापने के लिए 'चंद्र सर्फेस थर्मोफिजिकल एक्सपेरिमेंट'; लैंडर के उतरने के स्थल के आसपास भूकंपीयता को मापने के वास्ते 'इंस्ट्रूमेंट फॉर लूनर सिस्मिसिटी एक्टिविटी और प्लाज्मा घनत्व एवं इसकी विविधताओं का अनुमान लगाने के लिए 'लैंगमुइर प्रोब' नामक उपकरण हैं।

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) के एक ‘पैसिव लेजर रेट्रोरेफ्लेक्टर ऐरे’ को भी चंद्र लेजर अध्ययन के लिए समायोजित किया गया है। वहीं, रोवर से संबंधित उपकरणों में 'अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर' और 'लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोपी' शामिल हैं जो लैंडर के उतरने की जगह के आसपास मौलिक संरचना का अध्ययन करेंगे।

लैंडर एक निर्दिष्ट चंद्र स्थल पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने और रोवर को तैनात करने की क्षमता से लैस है जो अपनी गतिशीलता के दौरान चंद्र सतह का रासायनिक विश्लेषण करेगा। प्रणोदन मॉड्यूल का मुख्य कार्य लैंडर को प्रक्षेपण यान अंत:क्षेपण से 100 किमी की अंतिम चंद्र गोलाकार ध्रुवीय कक्षा तक ले जाना और इसे अलग करना है।

इसके अलावा, प्रणोदन मॉड्यूल में मूल्यवर्धन के रूप में एक वैज्ञानिक उपकरण भी है, जिसे लैंडर मॉड्यूल के अलग होने के बाद संचालित किया जाएगा। (सभी फोटोः isro)