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शहरयार जन्मदिन विशेष: एक ऐसा शायर जिनकी गजलों से तय हुआ फिल्‍मी सीन का मिज़ाज

By भाषा | Updated: June 16, 2018 07:29 IST

शहरयार का नाम उर्दू शायरी में अपने इस तखल्‍लुस पर खरा उतरता है और वह बेशक शायरी के शहंशाह थे।

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(भाषा/मुहम्‍मद मजहर सलीम): ‘उमराव जान’ जैसी क्‍लासिकल फिल्‍म के यादगार नग्‍मे लिखकर खुद को शायरी और नग्‍मानिगारी के फलक पर अमर कर जाने वाले मशहूर शायर अखलाक मुहम्‍मद खां ‘शहरयार’ हिन्‍दी सिनेमा के शायद अकेले गीतकार हैं, अक्‍सर जिनकी नज्‍मों के हिसाब से फिल्‍म के दृश्‍य का मिज़ाज तय हुआ। ज्ञानपीठ और साहित्‍य अकादमी अवार्ड जैसे बेहद प्रतिष्ठित पुरस्‍कारों से नवाजे जा चुके शहरयार ने गीतकार के रूप में बहुत कम लिखा लेकिन जितना भी लिखा, उसने उन्‍हें मकबूलियत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया।

‘उमराव जान’ और ‘गमन’ फिल्‍मों में पिरोयी गयीं उनकी नज्‍मों ने हर जबान पर शहरयार का नाम ला दिया। खासकर वर्ष 1981 में रिलीज हुई ‘उमराव जान’ के लिये लिखे गीतों ने उन्‍हें एक गीतकार के रूप में अमर कर दिया। हालांकि फिल्मी दुनिया में उनका आना महज इत्‍तेफाक माना जाता है। ‘उमराव जान’ के निर्देशक मुजफ्फर अली ने ‘भाषा’ को बताया कि ‘गमन’ फिल्‍म के लिये उन्हें शहरयार की लिखी कुछ नज्‍में अच्‍छी लगी, जो फिल्‍म की थीम पर बिल्‍कुल खरी उतरीं और उन्होंने उनका इस्‍तेमाल किया। इसी तरह उमराव जान के लिये भी उनकी कुछ चीजें बहुत अच्‍छी लिखी थीं।

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उन्होंने बताया कि उमराव जान के कुछ नग्‍मों के एक-दो मुखड़े तो शहरयार की पुराने नज्‍मों के ही थे, मगर बाकी उन्‍होंने नये शेअर जोड़े थे। जैसे कि ‘यह क्‍या जगह है दोस्‍तों, यह कौन सा दयार है’, यह उनकी पुरानी गजल थी। बाकी ‘दिल चीज क्‍या है आप मेरी जान लीजिये’ और ‘इन आंखों की मस्‍ती के मस्‍ताने हजारों हैं’, वगैरह उन्‍होंने उमराव जान के लिये ही खासतौर से लिखे।

अली ने बताया, ‘‘मैंने अपनी फिल्‍म ‘जू़नी’ के लिये शहरयार से नये गीत लिखवाये थे। उनकी रिकॉर्डिंग भी हो चुकी है, लेकिन किसी वजह से फिल्‍म सामने नहीं आ सकी। इसी तरह फिल्‍म ‘दामन’ और ‘नूरजहां जहांगीर’ के लिये भी मैंने उनसे गीत लिखवाये, जिनकी मिठास से दुनिया अभी महरूम है।‘’ शहरयार के शागिर्द और अलीगढ़़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी में उनके साथी शिक्षक रह चुके शायर ग़ज़नफ़र अली ने अपने उस्‍ताद की शख्सियत पर रोशनी डालते हुए बताया कि शहरयार ने फिल्‍मी नग्‍मानिगार के रूप में बहुत कम लिखा लेकिन उस थोड़े से काम ने उन्‍हें बहुत ज्‍यादा मशहूर कर दिया। फिल्‍म ‘उमराव जान’ और ‘गमन’ में उन्‍होंने जो नज्‍में लिखीं, उन्‍होंने हर जबान पर शहरयार का नाम ला दिया।

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उन्‍होंने बताया कि शहरयार के नग्‍मों मे शेरियत और तख्‍लीकियत थी। आम रवायत के उलट उनके गीत फिल्‍म के सीन के हिसाब से नहीं होते थे, बल्कि फिल्‍म की सिचुएशन उनके गीतों के हिसाब से तय होती थी। उन्‍होंने बताया कि शहरयार अलीगढ़ मुस्लिम विश्‍वविद्यालय में उर्दू साहित्‍य के प्रोफेसर के रूप में उमराव जान उपन्‍यास से अच्‍छी तरह वाकिफ थे, बल्कि उसमें डूबे हुए थे, इसलिये उन्‍होंने इस चरित्र को लेकर बनायी गयी फिल्‍म के मुख्‍तलिफ हालात पर पुरमग्ज़ नग्मे लिखे, जो सुपरहिट साबित हुए शायर मुनव्‍वर राना शहरयार को फिल्‍मी गीतकार के दायरे से बहुत ज्‍यादा बाहर का अदीब मानते हैं।

उनका कहना है कि मुजफ्फर अली उनके दोस्‍त थे। उन्‍होंने अली के कहने पर ही ‘उमराव जान’ और ‘गमन’ फिल्‍मों के लिये गीत लिखे। वरना, उनके लिये मुम्‍बई की भेड़चाल में खुद को ढालना बहुत मुश्किल था। दरअसल, वह गजल के शायर थे। वह खलीलुर्रहमान आजमी के शागिर्द थे, जिसकी वजह से उनकी गजल का मेयार (स्‍तर) बहुत बड़ा था। उन्‍होंने कहा कि शहरयार को ‘ज्ञानपीठ’ और ‘साहित्‍य अकादमी अवार्ड’ जैसे पुरस्‍कार मिले, मगर उन्‍होंने जितना काम किया, उस लिहाज से उन्‍हें मिले सारे अवार्ड छोटे थे।

उत्‍तर प्रदेश के बरेली जिले के आंवला इलाके में 16 जून 1936 को जन्‍मे अखलाक मुहम्‍मद खां की शुरुआती तालीम बुलंदशहर में हुई। उसके बाद उन्‍होंने अलीगढ़ मुस्लिम वि‍श्‍‍वविद्यालय (एएमयू) से उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त करते हुए डॉक्‍टरेट की उपाधि प्राप्‍त की। शुरू से ही अदबी जहन वाले शहरयार एएमयू के उर्दू विभागाध्‍यक्ष के पद से सेवानिवृत्‍त हुए थे।

शहरयार के पिता अबू मुहम्‍मद खां आंवला में पुलिस अफसर के तौर पर तैनात थे। शहरयार का जन्‍म आंवला में जरूर हुआ लेकिन पिता के तबादले की वजह से बाद में उनका आंवला से वास्‍ता नहीं रहा। शहरयार के अशआर का पहला संग्रह ‘इस्‍म-ए-आज़म’ वर्ष 1965 में प्रकाशित हुआ। उसके बाद ‘हिज्र के मौसम’ और ‘सतवन दर’ भी सामने आये। उनके सबसे मशहूर शाहकार ‘ख्‍वाब के दर बंद हैं’ के लिये उन्‍हें वर्ष 1987 में ‘साहित्‍य अकादमी’ पुरस्‍कार से नवाजा गया था।

उन्‍हें साल 2008 में ‘ज्ञानपीठ अवार्ड’ भी मिला और फिराक गोरखपुरी, अली सरदार जाफरी और कुर्रतुल ऐन हैदर के बाद यह पुरस्‍कार पाने वाले वह चौथे उर्दू साहित्‍यकार रहे। फिल्‍मी गीतकार के रूप में शहरयार का सफर बहुत छोटा रहा। उन्‍होंने ‘गमन’, ‘उमराव जान’, ‘फासले’, ‘अंजुमन’ और ‘द नेमसेक’ के लिये गीत लिखे।

शहरयार का नाम उर्दू शायरी में अपने इस तखल्‍लुस पर खरा उतरता है और वह बेशक शायरी के शहंशाह थे। अपनी कलम से उर्दू साहित्‍य को आबाद करने वाले इस शायर ने 13 फरवरी 2012 को आखिरी सांस ली।

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