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यूपी में पॉलिथीन बैनः राज्यपाल ने दी अध्यादेश को मंजूरी, आज से पॉलीथीन दिखते ही होगी ये सजा

By भाषा | Updated: July 16, 2018 07:44 IST

50 माइक्रॉन से कम मोटाई के प्लास्टिक के थैले, पॉलिथीन, नायलॉन, पीबीसी, पॉलीप्रोपाइलिंग, पॉलीस्ट्रिन एवं थर्माकोल के प्रयोग तथा उनके पुनर्निमाण, बिक्री, वितरण, पैकेजिंग, भण्डारण, परिवहन, आयात एवं निर्यात में पूरी तरह बैन लगेगा।

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लखनऊ, 16 जुलाईः उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने पॉलिथीन के निर्माण, बिक्री और इस्तेमाल पर कड़ी सजा की व्यवस्था वाले अध्यादेश को रविवार को मंजूरी दे दी। राजभवन की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक राज्यपाल ने ’’उत्तर प्रदेश प्लास्टिक और अन्य जीव अनाशित कूड़ा कचरा (उपयोग और निस्तारण का विनियमन) (संशोधन) अध्यादेश, 2018’’ को मंजूरी दे दी है। इस सिलसिले में वर्ष 2000 में बने संबंधित कानून को इस अध्यादेश के जरिये संशोधित करते हुए और भी कठोर तथा प्रभावी बनाया गया है।

इस अध्यादेश के जरिये कानून में किये जाने वाले संशोधन के तहत जैविक रूप से नष्ट नहीं होने वाले 50 माइक्रॉन से कम मोटाई के प्लास्टिक के थैले, पॉलिथीन, नायलॉन, पीबीसी, पॉलीप्रोपाइलिंग, पॉलीस्ट्रिन एवं थर्माकोल के प्रयोग तथा उनके पुनर्निमाण, बिक्री, वितरण, पैकेजिंग, भण्डारण, परिवहन, आयात एवं निर्यात आदि को भी चरणबद्ध तरीके से प्रतिबंधित एवं विनियमित किये जाने का प्रावधान किया गया है।

अध्यादेश में व्यवस्था की गयी है कि इस अधिनियम में उल्लिखित पाबंदियों का पहली बार उल्लंघन करने के दोषी व्यक्ति को एक माह तक की कैद या कम से कम एक हजार रुपये और अधिकतम दस हजार रुपये तक के जुर्माने की सजा होगी। दूसरी बार उल्लंघन करने पर छह माह की सजा या न्यूनतम पांच हजार और अधिकतम 20 हजार रुपये तक के जुर्माने की सजा दी जाएगी।

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अध्यादेश के प्रावधानों का पहली बार उल्लंघन करते हुए प्लास्टिक बैग की बिक्री, विनिर्माण, वितरण, भण्डारण तथा उसे लाने-ले जाने को दोषी पाये जाने वाले व्यक्ति को छह माह तक के कारावास अथवा न्यूनतम 10 हजार और अधिकतम 50 हजार रुपये के जुर्माने की सजा की व्यवस्था की गयी है। दूसरी बार उल्लंघन करने पर एक वर्ष तक की सजा और न्यूनतम 20 हजार रुपये और अधिकतम एक लाख रुपये तक के जुर्माने की सजा दी जाएगी।

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बयान के मुताबिक वर्ष 2000 में बनाये गये कानून में प्लास्टिक एवं प्लास्टिक उत्पादों के निस्तारण के लिए कोई प्रभावी प्रावधान नहीं था और निस्तारण के लिये होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों से राज्य सरकार पर अनावश्यक रूप से वित्तीय बोझ भी बढ़ता जा रहा था। प्लास्टिक तथा पॉलिथीन जैसे उत्पादों से पर्यावरण को क्षति पहुंचने के अलावा अन्य तरीके के नुकसान को रोकने के उद्देश्य से सजा देने की व्यवस्था के लिये अधिनियम को संशोधित किये जाने के लिए यह अध्यादेश लाया गया था।

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