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UCC Controversy "यूसीसी के खिलाफ नहीं हैं हम, लेकिन चाहते हैं कि यह लागू हो आम सहमति से", केसी त्यागी ने फिर कहा

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: June 13, 2024 09:14 IST

यूसीसी पर जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि नीतीश कुमार ने 2017 में यूसीसी पर विधि आयोग को एक प्रस्ताव दिया था। हमारा आज भी वही रुख है। हम यूसीसी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन चाहते हैं कि यह आम सहमति से हो।

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ठळक मुद्देयूसीसी के मुद्दे पर जेडीयू नेता केसी त्यागी ने एक बार फिर भाजपा विोधी रूख अपनायाजदयू नेता त्यागी ने कहा कि नीतीश कुमार ने 2017 में यूसीसी पर विधि आयोग को एक प्रस्ताव दिया थाहम आज भी उसी रुख पर कायम हैं, हम यूसीसी के खिलाफ नहीं, हम तो केवल आम सहमति चाहते हैं

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी के लिए मौजूदा समय में सबसे कठिन चुनौती है समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करवाना। भाजपा के घोषणापत्र का अभिन्न हिस्सा यूसीसी लागू करना अब मोदी सरकार के लिए आसान नहीं है, क्योंकि भाजपा बहुमत के नंबर गेम में काफी पिछड़ गई है और उसे सरकार चलाने के लिए एनडीए सहयोगियों दलों के समर्थन की आवश्यकता है, जिन्हें अतीत में भी और वर्तमान में भी यूसीसी प्रस्ताव के बारे में आपत्ति है।

समाचार वेबसाइट इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार बीते मंगलवार को केंद्रीय कानून और न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने कहा था कि यूसीसी अभी भी सरकार के एजेंडे में है और किसी को "इंतजार करना और देखना" चाहिए।

वहीं इस मुद्दे पर एनडीए सरकार की प्रमुख सहयोगी जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने बीते बुधवार को कहा, “बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने 2017 में यूसीसी पर विधि आयोग को एक प्रस्ताव दिया था। हमारा आज भी वही रुख है। हम यूसीसी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हम चाहते हैं कि यह आम सहमति से हो।''

एनडीए में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी जेडीयू ने पहले कहा था कि यूसीसी को सुधार के एक उपाय के रूप में देखा जाना चाहिए। राजनीतिक साधन के रूप में नहीं। टीडीपी, जो 16 सांसदों के साथ एनडीए में दूसरी सबसे बड़ी सहयोगी है। उसने कहा है कि यूसीसी जैसे मुद्दों पर मेज पर बैठकर चर्चा की जानी चाहिए और इसे हल किया जाना चाहिए।

नीतीश कुमार ने साल 2017 में लिखे अपने पत्र में कहा था, “जबकि राज्य को यूसीसी लाने का प्रयास करना चाहिए, ऐसा प्रयास, स्थायी और टिकाऊ होने के लिए व्यापक सहमति पर आधारित होना चाहिए, न कि ऊपर से आदेश थोपा जाए।”

पत्र में बिहार के मुख्यमंत्री ने रेखांकित किया था कि भारत विभिन्न धर्मों और जातीय समूहों के लिए कानूनों और शासन सिद्धांतों के संबंध में एक नाजुक संतुलन पर आधारित राष्ट्र है। उन्होंने यह भी कहा कि यूसीसी लागू करने के किसी भी प्रयास से "सामाजिक घर्षण और धार्मिक स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी में विश्वास का ह्रास" हो सकता है।

नीतीश ने विधि आयोग द्वारा भेजी गई प्रश्नावली पर भी आपत्ति जताई थी, जिसके बारे में उन्होंने कहा था कि इसे "उत्तरदाताओं को एक विशिष्ट तरीके से जवाब देने के लिए मजबूर करने के लिए" तैयार किया गया था।

टीडीपी नेता नारा लोकेश ने भी हाल ही में कहा था, “परिसीमन, समान नागरिक संहिता आदि जैसे मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की जाएगी और सौहार्दपूर्ण ढंग से हल किया जाएगा। हम मेज पर साझेदारों के साथ बैठेंगे और इन सभी मुद्दों पर आम सहमति हासिल करने का प्रयास करेंगे।"

इस बीच वाईएसआरसीपी, जिसकी हाल तक आंध्र प्रदेश में सरकार थी, उसने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह यूसीसी का समर्थन नहीं करेगी।

जगन रेड्डी की पार्टी के नेता और वाईएसआरसीपी संसदीय दल के नेता वी विजयसाई रेड्डी ने कहा, “चुनाव से पहले ही हमारी पार्टी ने स्पष्ट कर दिया था कि हम यूसीसी का समर्थन नहीं करेंगे। हम उन्हीं मामलों का समर्थन करेंगे, जो देश के हित में हैं।"

वाईएसआरसीपी का रुख टीडीपी पर यूसीसी पर अधिक स्पष्ट रुख अपनाने का दबाव डाल सकता है क्योंकि दोनों पार्टियां एक ही चुनावी स्थान के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं। चुनावों के दौरान बीजेपी के अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण हटाओ नारे पर टीडीपी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह आंध्र प्रदेश में ऐसा नहीं करेगी।

टॅग्स :समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड)जेडीयूKC Tyagiनीतीश कुमारBJP
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