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अदालत ने दंड के भय के बिना सरकार के झूठे दावे करने पर जताई हैरानी

By भाषा | Updated: July 3, 2021 15:16 IST

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नयी दिल्ली, तीन जुलाई दिल्ली उच्च न्यायालय ने दंड के भय के बिना सरकार के झूठे दावे करने और बचाव करने पर हैरानी जताते हुए कहा कि ऐसा करने वाले अधिकारियों की कोई जवाबदेही नहीं होती।

अदालत ने केंद्र एवं दिल्ली सरकार से कहा कि वे अदालती मामलों से निपटने में चूक होने पर अधिकारियों को जवाबदेह बनाने के मकसद से नियम बनाएं।

उच्च न्यायालय ने इसे गंभीर चिंता का विषय बताया और कहा कि उसका प्रथमदृष्टया यह मानना है कि जब भी सरकार कोई झूठा दावा करती है, तो इससे न्याय की मांग कर रहे वादी के साथ घोर अन्याय होता है और अदालत पर भी अनावश्यक दवाब पड़ता है।

न्यायमूर्ति जे आर मिड्ढा ने 31 पन्नों के आदेश में कहा, ‘‘इन सभी मामलों में सरकार ने इस अदालत के समक्ष झूठे दावे किए हैं, जो कि गहरी चिंता का विषय है। इन सभी मामलों ने इस अदालत की अंतरात्मा को झकझोर दिया है। ऐसा प्रतीत होता है कि सजा के डर के बिना इस प्रकार के झूठे दावे किए जा रहे हैं, क्योंकि झूठे दावे करने के लिए किसी सरकारी अधिकारी की कोई जवाबदेही नहीं होती और सरकार झूठे दावे करने वाले व्यक्ति के खिलाफ शायद ही कार्रवाई करती हैं।’’

अदालत ने कहा कि इन झूठे दावों के कारण सरकार को भी नुकसान होता है, लेकिन झूठे दावे करने वाले संबंधित अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती।

अदालत ने कहा, ‘‘यदि अदालत अधिकारियों के दिए तथ्यों को झूठा या गलत पाती है, तो सरकार को कार्रवाई करने पर विचार करना चाहिये और फैसले की प्रति अधिकारी की एसीआर (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट) फाइल में रखी जाए। इससे अदालती मामलों में अधिकारी के उठाए कदमों के लिए उसकी जवाबदेही सुनिश्चित होगी।’’

उच्च न्यायालय ने अदालती मामलों से निपटने में चूक के लिए अपने अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराने के उद्देश्य से सिक्किम के बनाए नियमों का उल्लेख करते हुए कहा कि केंद्र सरकार के साथ-साथ दिल्ली सरकार को भी इसी तरह के नियमों को शामिल करना चाहिए।

अदालत ने कहा कि हरियाणा ने राज्य में मुकदमों को समझने, प्रबंधित करने और संचालित करने के तरीके में सुधार लाने के लिए हरियाणा राज्य मुकदमा नीति-2010 तैयार की है। उसने कहा कि अदालतों में लंबित मामलों और देरी की राष्ट्रीय चिंता को सक्रिय रूप से कम करने की आवश्यकता है।

केंद्र सरकार के स्थायी वकील कीर्तिमान सिंह ने अदालत को सूचित किया कि वर्तमान में सरकार की कोई मुकदमा नीति नहीं है और राष्ट्रीय मुकदमा नीति 2010 को कभी लागू नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि इस अदालत ने राष्ट्रीय मुकदमा नीति के कार्यान्वयन संबंधी एक रिट याचिका को पहले खारिज कर दिया था।

इस पर, न्यायमूर्ति मिड्ढा ने कहा, ‘‘इस अदालत का मानना है कि सरकारी मुकदमे में जवाबदेही संबंधी निर्देश जनहित याचिका की प्रकृति के तहत आते हैं और इसलिए इस मामले को जनहित याचिका पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करना उचित होगा। मुख्य न्यायाधीश के आदेश के अधीन रहते हुए इस मामले को 15 जुलाई के लिए खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध करें।’’

अदालत ने उसकी सहायता के लिए न्याय मित्र के रूप में नियुक्त किए गए वरिष्ठ अधिवक्ता ए एस चंडियोक और न्यायमूर्ति मिड्ढा से संबद्ध कानून शोधकर्ता अक्षय चौधरी की बहुमूल्य सहायता और उनके व्यापक शोध की सराहना की।

अदालत ने बताया कि कानूनी मामलों के विभाग द्वारा सरकारी विभागों और मंत्रालयों के विभिन्न अदालती मामलों की निगरानी और संचालन के लिए विकसित एक वेब-आधारित पोर्टल कानूनी सूचना प्रबंधन एवं ब्रीफिंग प्रणाली (एलआईएमबीएस) के अनुसार, आठ जून, 2021 तक सरकार के 4,79,236 मामले, अनुपालन के लिए 2,055 मामले और अवमानना के 975 मामले लंबित थे।

इसमें कहा गया है कि वित्त मंत्रालय के सबसे ज्यादा 1,17,808 लंबित मामले हैं, जबकि रेलवे 99,030 मामलों के साथ इस संबंध में दूसरे नंबर पर है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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