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एससी-एसटी के उपवर्गीकरण के बारे में शीर्ष अदालत के 2004 के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है: न्यायालय

By भाषा | Published: August 28, 2020 5:39 AM

पीठ ने संविधान के प्रावधान के प्रभाव के बारे में सुविचारित फैसले की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि क्या सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गो में ही इस तरह के उपवर्गीकरण की इजाजत होनी चाहिए।

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ठळक मुद्दे पीठ ने कहा कि समान सदस्यों वाली पीठ होने की वजह से हम ईवी चिन्नैया मामले पर फिर से विचार नहीं कर सकते है।शीर्ष अदालत ने कहा कि मोटे तौर पर आरक्षण का लाभ जरूरतमंदों और गरीबों में भी सबसे गरीब तक नहीं पहुंच रहा है।

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में बृहस्पतिवार को कहा कि अनुसूचति जाति और जनजातियों का उपवर्गीकरण करके उन्हें आरक्षण का लाभ देने का राज्यों को अधिकार नहीं होने संबंधी 2004 की व्यवस्था पर फिर से सात या इससे अधिक न्यायाधीशों की पीठ द्वारा विचार की आवश्यकता है। न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि राज्यों को अनुसूचित जाति और जनजातियों में ‘‘गरीबों में भी सबसे गरीब’’ को प्राथमिकता देने की अनुमति दी जानी चाहिए।

पीठ ने संविधान के प्रावधान के प्रभाव के बारे में सुविचारित फैसले की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि क्या सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गो में ही इस तरह के उपवर्गीकरण की इजाजत होनी चाहिए और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के मामले में नहीं। शीर्ष अदालत ने कहा कि मोटे तौर पर आरक्षण का लाभ जरूरतमंदों और गरीबों में भी सबसे गरीब तक नहीं पहुंच रहा है और यह एकदम स्पष्ट है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के भी संपन्न तबके को इससे अलग करने की व्यवस्था लागू की जा सकती है।

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी, न्यायमूर्ति विनीत सरन, न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस शामिल हैं। संविधान पीठ ने कहा कि ईवी चिन्नैया मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा था कि राज्य कतिपय अनुसूचित जातियों को प्राथमिकता नहीं दे सकते हैं क्योंकि यह संविधान में प्रदत्त अनुसूचित जाति और जनजातियों की राष्ट्रपति की सूची के साथ छेड़छाड़ होगा और इस पर विचार करने की आवश्यकता है। संविधान पीठ ने कहा, ‘‘संविधान निर्माताओं ने हमेशा के लिये ही आरक्षण की कल्पना नहीं की थी।

एक ओर, आगे बढ़ चुके लोगों को अलग करने की व्यवस्था नही है तो दूसरी ओर , अगर उपवर्गीकरण से इंकार किया गया तो इससे असमान लोगों को समान करने के लिये समता के अधिकार से इंकार करना होगा।’’ न्यायालय ने कहा, ‘‘राज्यों को विभिन्न वर्गो में व्याप्त गुणात्मक और परिमाण संबंधी अंतर वाले वर्गो का ध्यान रखने के लिये सुधारात्मक उपाय करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हम तीन न्यायाधीशों की इस राय का समर्थन करते हैं कि ईवी चिन्नैया मामले में फैसले पर वृहद पीठ द्वारा विचार की आवश्यकता है और विशेषकर संविधान में हुये संशोधन के मद्देनजर। पीठ ने कहा कि समान सदस्यों वाली पीठ होने की वजह से हम ईवी चिन्नैया मामले पर फिर से विचार नहीं कर सकते है।

हम प्रधान न्यायाधीश से अनुरोध करते हैं कि, जैसा वह उचित समझें, इन मामलों को सात या इससे अधिक सदस्यों वाली पीठ के समक्ष पेश किया जाये। इस संविधान पीठ के पास पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार की अपील पर सुनवाई के दौरान तीन सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष आये कानूनी मुद्दों को विचार के लिये भेजा गया था।

पंजाब सरकार ने पंजाब अनसूचित जाति और पिछड़े वर्ग (नौकरी में आरक्षण) कानून, 2006 में प्रावधान किया था कि अनुसूचित जातियों के लिये सुरक्षित सीटों में से 50 फीसदी स्थान बाल्मीकी और मजहबी सिखों को दी जायेंगी। इस प्रावधान को उच्च न्यायाल ने 2004 के फैसले के आधार पर निरस्त कर दिया था।  

टॅग्स :आरक्षणएससी-एसटी एक्टइंडियाकोर्ट
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