धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट में कल भी होगी सुनवाई, जानिए तीसरे दिन की बहस में किसने क्या कहा

By भारती द्विवेदी | Updated: July 12, 2018 20:09 IST2018-07-12T20:09:09+5:302018-07-12T20:09:09+5:30

मेनका ने कोर्ट में ये कहा कि धारा 377 एलजीबीटी समुदाय के समानता के अधिकार को खत्म करती है। समैलिंगकों के भी देश, कोर्ट और संविधान से सुरक्षा मिलनी चाहिए।

Supreme court will continue hearing on Article 377 tomorrow, know the discussion of third day | धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट में कल भी होगी सुनवाई, जानिए तीसरे दिन की बहस में किसने क्या कहा

धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट में कल भी होगी सुनवाई, जानिए तीसरे दिन की बहस में किसने क्या कहा

नई दिल्ली, 12 जुलाई: दस जुलाई से सुप्रीम कोर्ट में धारा-377 को लेकर सुनवाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई का तीसरा दिन था। धारा-377 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में इस बात पर बहस हो रही है कि समलैंगिकता अपराध है या नहीं। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रहे हैं। इन जजों में  जस्टिस आरएफ नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदू मिश्रा शामिल हैं। 

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सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील मेनका गुरुस्वामी से सवाल किया कि क्या कोई कानून या रेग्युलेशन होमोसेक्शुअल को किसी अधिकार को लेने में बाधक है। तब उन्होंने कहा कि ऐसा कोई नियम नहीं है। मेनका ने कोर्ट में ये कहा कि धारा 377 एलजीबीटी समुदाय के समानता के अधिकार को खत्म करती है। समैलिंगकों के भी देश, कोर्ट और संविधान से सुरक्षा मिलनी चाहिए।

बेंच ने तब कहा कि एलजीबीटी कम्युनिटी के लिए कलंक सिर्फ इसलिए है क्योंकि सहमति से सेक्स संबंध को अपराध से जोड़ा गया है। एक बार अगर धारा-377 के दायरे से सहमति से संबंध के मामले को बाहर कर दिया जाता है तब सब कुछ खुद ही खत्म हो जाएगा। चाहे सामाजिक कलंक हो या फिर कोई और रोक-टोक, सब कुछ ठीक हो जाएगा। 

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एलजीबीटी कम्यूनिटी के साथ सोसाइटी में होनेवाले भेदभाव को ध्यान में रखते हुए जस्टिस इंदु मल्होत्रा कहा कि इनलोगों को मेडिकल सहयोग नहीं मिलता। यहां तक कि इलाज कराने में भी इन लोगों को परेशानी होती है। जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने ये भी कहा कि LGBT समुदाय से होने की वजह से ग्रामीण और सेमी अर्बन क्षेत्रों में हेल्थ केयर में उनके साथ भेदभाव होता है। उन्‍होंने कहा इंसान ही नहीं, हजारों ऐसे जीव हैं, जो सेम सेक्स में इंटरकोर्स करते हैं। समाज और परिवारवालों के दबाव के कारण समलैंगिक लोग दूसरे सेक्स से शादी भी करने को मजूबर होते हैं।  

पांच जजों की संविधान पीठ के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सेक्शन 21A का हवाला देते हुए कहा कि मेंटल हेल्थकेयर एक्ट के तहत संविधान ने किसी के सेक्शुअल ओरिएंटेशन की वजह से उसके साथ भेदभाव नहीं कर सकता है। सीनियर एडवोकेट आनंद ग्रोवर ने भी सुनवाई के दौरान ये दलील पेश करते हुए  कहा कि समलैंगिक कपल बच्चे तक अडॉप्ट नहीं कर सकते क्योंकि मौजूदा कानून के तहत यह अपराध के दायरे में आते हैं। तब अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यहां सुनवाई का दायरा धारा 377 है उसके आगे का नहीं। 

भारत में धारा 377 के मायने

भारत जैसे देश में समलैंगिकता को अपराध माना जाता है। IPC (भारतीय दंड संहिता) की धारा 377 के तहत समलैंगिकता ऐसा अपराध माना गया है जिसके लिए दोषी को उम्र कैद तक की सजा हो सकती है। यह एक गैरजमानती अपराध है। प्रावधान के मुताबिक, अगर कोई पुरुष, महिला प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ जाकर सेक्स करता है तो इस अपराध के लिए उसे उम्र कैद या 10 वर्ष की सजा या जेल और जुर्माना दोनो से दंडित किया जा सकता है।

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Web Title: Supreme court will continue hearing on Article 377 tomorrow, know the discussion of third day

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