धारा 377 पर कल भी होगी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ करने वाली फैसला
By कोमल बड़ोदेकर | Published: July 10, 2018 06:16 PM2018-07-10T18:16:24+5:302018-07-10T18:16:24+5:30
धारा 377- समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर करने की तमाम याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू शुरू हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा, न्यायधीश आर एफ नरीमन, जस्टिस ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और जज इन्दु मल्होत्रा जैसे पांच मुख्य जजों वाली संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है।
नई दिल्ली, 10 जुलाई। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 377 (समलैंगिकता) को अपराध के दायरे से बाहर करने की तमाम याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई बुधवार (11 जुलाई) को जारी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा, न्यायधीश आर एफ नरीमन, जस्टिस ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और जज इन्दु मल्होत्रा जैसे पांच मुख्य जजों वाली संविधान पीठ ने इस मामले की मंगलवार को सुनवाई की।
सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने कहा है कि, भारतीय दंड संहिता की धारा 377 की संवैधानिक वैधता और समलैंगिक संबंधों को अपनाने वाले समुदाय के मौलिक अधिकारों पर विचार किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करने से जुड़े दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया था।
धारा 377 को असंवैधानिक बता चुकी है कोर्ट
साल 2013 में हाई कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के दौरान दो समलैंगिक व्यक्तियों की आम सहमति से यौन संबंध बनाने को दंडनीय अपराध बनाने वाली धारा 377 को असंवैधानिक बताया था। फिलहाल धारा 377 के तहत अप्राकृतिक यौन संबंध दंडनीय अपराध है। अगर इसका उल्लंघन किया जाता है या दोषी पाए जाने की स्थिति में उम्र कैद या अधिकतम 10 साल तक की सजा का प्रावधान है, या दोष के मुताबिक सजा और जुर्माना दोनों लगाया जा सकता है।
धारा 377 के खिलाफ पहली बार अपील
धारा 377 का मामला साल 2001 में तब सबसे पहले सामने आया जब एक गैर सरकारी संगठन ने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर किए जाने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की। इस एनजीओ का नाम नाज फाउंडेशन है। नाज फाउंडेशन ने समलैंगिकत को अपराध की श्रेणी में रखे जाने का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ अपील की है।
'ये व्यक्ति की निजता और मौलिक अधिकारों में से एक'
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान नाज फाउंडेश की ओर से एक सीनियर एडवोकेट जिरह कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर नवतेज जौहर नाम की एक नृत्यांगना की ओर से पूर्व अटॉर्नी जनरल और वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने बहस के दौरान कहा कि, 24 अगस्त, 2017 को नौ सदस्यों की बेंच के फैसले पर विचार विमर्श के बाद कोई फैसला दिया जाना जाहिए। ये व्यक्ति की निजता और और उनके मौलिक अधिकारों में से एक है।
बीते साल कोर्ट ने कही थी ये बात
बता दें कि इन 9 जजों की बेंच ने 24 अगस्त 2017 को इस मामले की सुनवाई के दौरान निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताते हुये कहा था कि एलजीबीटी समुदाय के सदस्यों को निजता के अधिकार से सिर्फ इस वजह से वंचित नहीं किया जा सकता कि उनका गैरपारंपरिक यौन रूझान है और भारत की एक करोड़ 32 लाख की आबादी में उनकी संख्या बहुत ही कम है।
साल 2013 के फैसले को भी चुनौती
एलजीबीटी पर जारी सुनवाई के बीच खबर यह भी है कि इस मामले में दायर याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट के साल 2013 के उस फैसले को भी चुनौती दी गई है जिसमे समलैंगिक रिश्तों को अपराध करार दिया गया था। वहीं दूसरी ओर मोदी सरकार ने सोमवार 9 जुलाई को इन याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिये सुप्रीम कोर्ट से समय देने का अनुरोध करते हुए सुनवाई खत्म करने की अपील की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की मांग और अपील को सिरे से खारिज कर दिया था।
इन लोगों ने दायर की है याचिका
धारा 377 और समंलैंगिक यौन संबंधों को अपराध बताने के खिलाफ याचिका दायर करने वालों में नाज फाउंडेशन, पत्रकार सुनील मेहरा, शेफ रितु डालमिया, होटल मालिक अमन नाथ और आयशा कपूर सहित कई दिग्गज हस्तियां शामिल हैं।
क्या कहती है धारा 377
भारत जैसे देश में समलैंगिकता को अपराध माना जाता है। IPC (भारतीय दंड संहिता) की धारा 377 के तहत समलैंगिकता ऐसा अपराध माना गया है जिसके लिए दोषी को उम्र कैद तक की सजा हो सकती है। यह एक गैरजमानती अपराध है। प्रावधान के मुताबिक, अगर कोई पुरुष, महिला प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ जाकर सेक्स करता है तो इस अपराध के लिए उसे उम्र कैद या 10 वर्ष की सजा या जेल और जुर्माना दोनो से दंडित किया जा सकता है।
LGBT समुदाय के बारे में
एलजीबीटी समुदाय में लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर लोग आते हैं। बीते कई सालों से ये एलजीबीटी समुदाय मांग करता रहा है कि ये हमारी निजता का हनन है और धारा 377 और समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाए। एलजीबीटी समुदाय धारा 377 के खिलाफ समय-समय पर विरोध प्रदर्शन, रैली निकालकर प्रदर्शन कर चुका है।