नयी दिल्ली, 12 अगस्त उच्चतम न्यायालय ने स्वयंभू प्रवचनकर्ता आसाराम के बेटे नारायण साई को दो हफ्तों का फर्लो देने के गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश पर बृहस्पतिवार को रोक लगा दी। साई दुष्कर्म के एक मामले में दोषी है। आसाराम भी राजस्थान में बलात्कार के एक अन्य मामले में उम्रकैद की सजा काट रहा है।
बहरहाल, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उसे यह देखने की जरूरत है कि क्या नियमों में कैलेंडर वर्ष के अनुसार साल में एक बार या किसी कैदी को पिछली बार दी गयी फर्लो के 12 महीने बाद फर्लो दिए जाने की अनुमति है।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘अगले आदेश तक उच्च न्यायालय के एकल पीठ के 24 जून 2021 के उस फैसले पर रोक रहेगी जिसमें प्रतिवादी को दो हफ्ते के फर्लो पर रिहा करने का निर्देश दिया गया है।’’
इसने कहा कि बंबई फर्लो एवं पैरोल नियम 1959 के नियम 3 (2) में यह प्रावधान है कि आजीवन कारावास की सजा पाने वाले कैदी को सात वर्ष वास्तविक कैद की सजा पूरी करने के बाद ‘‘हर वर्ष’’ फर्लो पर रिहा किया जाएगा।
न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की पीठ ने गुजरात सरकार की याचिका पर नारायण साई को नोटिस दिया। इस याचिका में उच्च न्यायालय की एकल पीठ के आदेश को चुनौती दी गयी है। उच्चतम न्यायालय ने अगले आदेश तक उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी।
गुजरात सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एकल पीठ के 24 जून 2021 के आदेश में साई को दो हफ्तों के लिए फर्लो दी गयी लेकिन खंडपीठ ने 13 अगस्त तक इस पर रोक लगा दी थी और इसके बाद राज्य ने 24 जून के आदेश को चुनौती देते हुए सर्वोच्च अदालत का रुख किया।
पीठ ने कहा, ‘‘फर्लो का आधार यह है कि एक कैदी जेल के माहौल से दूर रहता है और अपने परिवार के सदस्यों से मिल पाता है।’’ उसने मेहता से पूछा कि आदेश से क्या शिकायत है।
मेहता ने जवाब दिया कि नियमों और इस अदालत के आदेश के अनुसार भी ऐसा कहा गया है कि फर्लो एक अधिकार नहीं है और यह विभिन्न बातों पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा कि साई और उसके पिता को बलात्कार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया है और वे धन और बल के साथ काफी प्रभाव रखते हैं।
मेहता ने कहा कि उन्होंने पुलिस अधिकारियों को घूस देने की भी कोशिश की थी, जेल में उनकी कोठरी से मोबाइल फोन भी बरामद किए गए और यहां तक कि उनके मामलों में अहम तीन मुख्य गवाहों की भी हत्या कर दी गयी।
पीठ ने कहा कि अब वह दोषी है तो ये दलीलें सही नहीं है क्योंकि उसे पिछले साल दिसंबर में भी फर्लो दी गयी थी, जिसे राज्य सरकार ने कभी चुनौती नहीं दी।
मेहता ने कहा कि पिछले साल साई को दो हफ्तों की फर्लो दी गयी थी क्योंकि वह अपनी बीमार मां से मिलना चाहता था और यह मानवीय आधार पर दी गयी थी इसलिए राज्य सरकार ने इस आदेश को चुनौती देना उचित नहीं समझा।
इस पर न्यायालय ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि क्या पिछली फर्लो के दौरान कानून एवं व्यवस्था की कोई स्थिति पैदा हुई थी या शांति एवं सामंजस्य को कोई खतरा हुआ था, इस पर मेहता ने जवाब दिया कि इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। मेहता ने कहा, ‘‘अब दिक्कत यह है कि वह फर्लो अधिकार बतौर यह कहते हुए मांग रहा है कि उसे हर साल फर्लो पर रिहा किया जाना चाहिए।’’
न्यायालय ने कहा कि गौर करने वाली बात यह है कि नियमों के तहत कहा जाता है कि कोई कैदी सात साल की सजा काटने के बाद हर साल एक बार फर्लो ले सकता है। न्यायालय ने कहा, ‘‘क्या हर साल एक बार का मतलब प्रत्येक कैलेंडर वर्ष में एक बार से है या पिछले बार उसे मिली फर्लो से एक साल बाद से है। हमें इस पर विचार करना होगा। हम प्रतिवादी (नारायण साई) को नोटिस जारी कर रहे हैं।’’
उसने साई की ओर से पेश वकील को एक हफ्ते के भीतर जवाब देने को कहा। उच्चतम न्यायालय ने मामले पर सुनवाई के लिए दो हफ्ते बाद का समय दिया है।
गुजरात उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने 24 जून को नारायण साई को फर्लो की मंजूरी दी थी। इससे पहले दिसंबर 2020 में उच्च न्यायालय ने साई की मां की तबीयत खराब होने के कारण उसे फर्लो दी थी।
सूरत की एक अदालत ने नारायण साई को 26 अप्रैल 2019 को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (दुष्कर्म), 377 (अप्राकृतिक अपराध), 323 (हमला), 506-2 (आपराधिक धमकी) और 120-बी (षडयंत्र) के तहत दोषी ठहराया था और उम्रकैद की सजा सुनायी थी।
साई को उसकी और उसके पिता आसाराम की पूर्व अनुयायी द्वारा दायर बलात्कार के मामले में उम्रकैद की सजा सुनायी गयी थी। पीड़िता की बहन ने आसाराम के खिलाफ दुष्कर्म की शिकायत दर्ज करायी थी।
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