SC-ST एक्ट: सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाने वाले अपने फैसले पर सुनवाई को तैयार, मोदी सरकार ने डाली थी पुनर्विचार याचिका

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: October 1, 2019 12:06 PM2019-10-01T12:06:01+5:302019-10-01T12:06:01+5:30

पिछले साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में जबर्दस्त हिंसक विरोध प्रदर्शन हुआ था।

Supreme Court partly allows the review petition filed by the Centre SC ST Act | SC-ST एक्ट: सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाने वाले अपने फैसले पर सुनवाई को तैयार, मोदी सरकार ने डाली थी पुनर्विचार याचिका

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ 2 अप्रैल, 2018 को भारत बंद था.

HighlightsSC की तीन सदस्यीय पीठ ने 18 सितंबर को इस पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई पूरी की थी। अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल का कहना था कि मार्च, 2018 का शीर्ष अदालत का फैसला संविधान की भावना के अनुरूप नहीं था।

सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी ऐक्ट के तहत तमाम कड़े प्रावधानों को हल्का करने के अपने फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका को मंजूरी दी है। सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर विचार करने को तैयार हो गया है।

अनुसूचित जाति-जनजाति कानून के तहत गिरफ्तारी के प्रावधान को एक तरह से हलका करने संबंधी शीर्ष अदालत के 2018 के फैसले पर पुनर्विचार के लिये मोदी सरकार ने याचिका डाली थी।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बी आर गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने 18 सितंबर को इस पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई पूरी की थी। पीठ ने न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ के 20 मार्च, 2018 के फैसले पर टिप्पणी करते हुये सवाल उठाया था कि क्या संविधान की भावना के खिलाफ कोई फैसला सुनाया जा सकता है। 

पीठ ने कानून के प्रावधानों के अनुरूप ‘समानता लाने’ के लिये कुछ निर्देश देने का संकेत देते हुये कहा था कि आजादी के 70 साल बाद भी देश में अनुसूचित जाति और जनजाति के सदस्यों के साथ ‘भेदभाव’ और ‘अस्पृश्यता’ बरती जा रही है। यही नहीं, न्यायालय ने हाथ से मल उठाने की कुप्रथा और सीवर तथा नालों की सफाई करने वाले इस समुदाय के लोगों की मृत्यु पर गंभीर रूख अपनाते हुये कहा था कि दुनिया में कहीं भी लोगों को ‘मरने के लिये गैस चैंबर’ में नहीं भेजा जाता है। 

पीठ ने कहा था, ‘‘यह संविधान की भावना के खिलाफ है। क्या किसी कानून और संविधान के खिलाफ सिर्फ इस वजह से ऐसा कोई आदेश दिया जा सकता है कि कानून का दुरूपयोग हो रहा है? क्या किसी व्यक्ति की जाति के आधार पर किसी के प्रति संदेह व्यक्त किया जा सकता है? सामान्य वर्ग का व्यक्ति भी फर्जी प्राथमिकी दायर सकता है।’’ 

अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल का कहना था कि मार्च, 2018 का शीर्ष अदालत का फैसला संविधान की भावना के अनुरूप नहीं था। पीठ ने सुनवाई पूरी करते हुये कहा था कि हम ‘समानता लाने के लिये’अपने फैसले में कुछ निर्देश पारित करेंगे। शीर्ष अदालत ने 13 सितंबर को केन्द्र की पुनर्विचार याचिका तीन न्यायाधीशों की पीठ को सौंपी थी। 

न्यायालय के 20 मार्च, 2018 के फैसले के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में जबर्दस्त हिंसक विरोध प्रदर्शन हुआ था। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में सरकारी कर्मचारियों और निजी व्यक्तियों के खिलाफ अनुसूचित जाति एवं जनजाति (उत्पीड़न की रोकथाम) कानून के कठोर प्रावधानों का बड़े पैमाने पर दुरूपयोग होने का जिक्र करते हुये कहा था कि इस कानून के तहत दायर किसी भी शिकायत पर तत्काल गिरफ्तारी नहीं की जायेगी।

Web Title: Supreme Court partly allows the review petition filed by the Centre SC ST Act

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