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Nirbhaya Case: दरिंदे पवन की दलीलों को कोर्ट ने किया दरकिनार, क्यूरेटिव याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज, कल फांसी होना लगभग तय

By गुणातीत ओझा | Updated: March 19, 2020 11:29 IST

दोषी पवन पवन गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी सुधारात्मक याचिका (curative petition) में दलील दी थी कि जब अपराध हुआ, यानी 16 दिसंबर, 2012 को वह नाबालिग था।

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ठळक मुद्देनिर्भया केस में दोषी पवन ने सुप्रीम कोर्ट में डाली थी क्यूरेटिव याचिका, कोर्ट ने की खारिजदोषी ने कोर्ट में दलील दी थी कि जब यह घटना हुई तब वह नाबालिग था, उसे सुधार का मौका मिलना चाहिए

नई दिल्लीः निर्भया मामले के चार दोषियों में से एक पवन कुमार गुप्ता (Pawan Kumar Gupta) की उस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है, जिसमें उसने घटना के दौरान खुद के नाबालिग होने का दावा किया था। दोषी पवन पवन गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी सुधारात्मक याचिका (curative petition) में दलील दी थी कि जब अपराध हुआ, यानी 16 दिसंबर, 2012 को वह नाबालिग था।

सुप्रीम कोर्ट में पवन की याचिका पर आज गुरुवार को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट के छह जज इन चैंबर सुनवाई के बाद दोषी की याचिका खारिज कर दी है। अब लगभग तय माना जा रहा है कि कल यानि शुक्रवार को चारों दोषियों को फांसी पर लटका दिया जाएगा।

बता दें कि दोषी पवन कुमार गुप्ता ने अपनी सुधारात्मक याचिका में तर्क दिया था कि 16 दिसंबर, 2012 की रात को जब दिल्ली के वसंत विहार इलाके में चलती बस में निर्भया के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था, तब वह नाबालिग था। निर्भया के चारों दोषियों (पवन कुमार गुप्ता, विनय कुमार शर्मा, मुकेश सिंह और अक्षय कुमार सिंह) को शुक्रवार सुबह 5:30 बजे फांसी दी जानी है। दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट इस बाबत डेथ वारंट भी जारी कर चुका है।

जल्लाद ने फांसी देने का अभ्यास किया, अदालत से मुकेश की याचिका भी हो चुकी है खारिज

दिल्ली की तिहाड़ जेल में निर्भया मामले के चार दोषियों को फांसी देने के लिए पवन जल्लाद ने बुधवार को पुतलों को फांसी देकर अभ्यास किया। दोषियों को जेल में शुक्रवार को फांसी दी जानी है। चारों दोषियों को 20 मार्च को सुबह साढ़े पांच बजे फांसी दी जाएगी। अदालत ने मृत्यु वारेंट को तीन बार इस आधार पर टाल दिया गया था कि दोषियों के सभी कानूनी उपचार समाप्त नहीं हुए हैं और एक या अन्य दोषियों की दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित है। दिल्ली में 23 साल की छात्रा के साथ 16 दिसंबर 2012 की रात को एक चलती बस में बर्बरता के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। इस घटना के करीब 15 दिन बाद पीड़िता की सिंगापुर के एक अस्पताल में मौत हो गई थी।

इस घटना ने देश को हिला दिया था। पीड़िता को को निर्भया नाम से जाना गया। इस मामले में छह लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें एक नाबालिग शामिल था। वहीं छठे व्यक्ति राम सिंह ने मामले में सुनवाई शुरू होने के कुछ समय बाद खुदकुशी कर ली थी। वहीं नाबालिग को 2015 में रिहा कर दिया गया था। उसने सुधार गृह में तीन साल का समय बिताया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को मुकेश की एक याचिका खारिज कर दी। इस याचिका में उसने निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसके इस दावे को नहीं माना गया था कि 16 दिसंबर 2012 को जब जुर्म हुआ तब वह दिल्ली में नहीं था।

न्यायमूर्ति ब्रृजेश सेठी ने कहा कि निचली अदालत के विस्तृत और तर्कपूर्ण आदेश में दखल देने का कोई आधार नहीं है। उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि यह बताने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है कि इस मामले में मुकदमा किसी भी साक्ष्य को छिपाने के कारण प्रभावित हुआ। उच्च न्यायालय ने मुकेश सिंह की याचिका खारिज करते हुए कहा, “ निचली अदालत की ओर से पारित किए गए आदेश में कोई अवैधता या अनियमितता नहीं है।” इस बीच मामले के चार में से तीन दोषियों ने अपनी मृत्युदंड पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा कि उनमें से दो की दूसरी दया याचिका अब भी लंबित है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने इस याचिका पर तिहाड़ जेल प्राधिकारियों और पुलिस को नोटिस जारी करते हुए कहा कि वह इस पर बृहस्पतिवार को सुनवाई करेंगे।

न्यायाधीश ने तीन दोषियों की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता ए पी सिंह से पूछा कि उन्होंने कार्यदिवस के अंत में याचिका क्यों दायर की जबकि वह जानते हैं कि फांसी में सिर्फ एक दिन का वक्त बचा है। इस पर सिंह ने कहा कि वह कार्य में व्यस्त थे क्योंकि दोषियों द्वारा दायर कई याचिकाएं अलग अलग अदालतों में लंबित हैं। अक्षय, विनय और पवन की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि अक्षय और पवन द्वारा दायर समीक्षा दया याचिकाएं राष्ट्रपति के समक्ष लंबित हैं। याचिका में कहा गया कि सजा पर रोक चौथे दोषी मुकेश पर भी लागू होगी क्योंकि उसे अलग से फांसी नहीं दी जा सकती। याचिका में यह भी कहा गया कि अक्षय की पत्नी द्वारा दायर तलाक संबंधी याचिका बिहार की एक स्थानीय अदालत में लंबित है। याचिका में कहा गया कि याचिकाओं पर विचार के लिये समय चाहिए और इसलिये फांसी की मौजूदा तारीख 20 मार्च बरकरार नहीं रखी जा सकती, इसलिये इसे दरकिनार किया जाना चाहिए।

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