नयी दिल्ली , 10 अप्रैल: पर्यावरण संरक्षण और जनता के लाभ के लिये बने करीब एक लाख करोड़ रुपए के कोष की रकम दूसरे कार्यो में इस्तेमाल होने के तथ्य से आहत उच्चतम न्यायालय ने आज खिन्न होकर टिप्पणी की , ‘‘ हमें कार्यपालिका बेवकूफ बना रही है। ’’
न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने सरकार की तीखी आलोचना करते हुये कहा कि उसने कार्यपालिका पर ‘‘ भरोसा ’’ किया परंतु प्राधिकारी काम ही नहीं करते। और जब हम कुछ कहते हैं जो यह कहा जाता है कि यह तो न्यायिक सक्रियता और आगे निकल जाना है।
पीठ ने स्पष्ट किया कि पर्यावरण संरक्षण के लिये शीर्ष अदालत के आदेशों पर बनाये गये विभिन्न कोषों के अंतर्गत संग्रहित इस विपुल राशि का इस्तेमाल सिर्फ पर्यावरण कार्यो और जनता के लाभ के लिये ही होना था।
पीठ ने कहा , ‘‘ यह एकदम साफ है कि जिस काम के लिये यह रकम थी उसका उपयोग उससे इतर कार्यो में किया गया। आप क्या चाहते हैं कि न्यायालय कितनी दूर जाये ? हमने कार्यपालिका पर भरोसा किया परंतु वे कहते हैं जो हमारी मर्जी होगी, हम वह करेंगे। ’’
‘‘ पहले , हमें उन्हें पकड़ना होगा कि आपने हमारे भरोसे को धोखा दिया और धन का अन्यत्र इस्तेमाल किया। क्या हम पुलिसकर्मी या जांच अधिकारी हैं ? हम किसी छोटी रकम के बारे में बात नहीं कर रहे हैं। यह बहुत ही निराशाजनक है। ’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि करीब 11,700 करोड़ रुपए वनीकरण क्षतिपूर्ति कोष प्रबंधन और नियोजन प्राधिकरण ( कैंपा ) में था जिसका सृजन न्यायालय के आदेश के तहत हुआ था और इस तरह के सभी कोषों में जमा कुल राशि करीब एक लाख करोड़ रुपए है।
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हालांकि , एक वकील ने न्यायालय से कहा कि कैंपा से करीब 11 हजार करोड़ पहले ही खर्च हो गया है और इसमें कुल 50 हजार करोड़ रुपए होंगे।
पीठ ने कहा , ‘‘ हमें क्या करना है ? आप लोग काम नहीं करते हैं। यह पूरी तरह कल्पना से परे है। जब हम कहते हैं , तो कहा जाता है कि यह न्यायिक सक्रियता और न्यायिक सीमा से बाहर है। हमें कार्यपालिका द्वारा बेवकूफ बनाया जा रहा है। ’’
पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल एएनएस नाडकर्णी ने कहा कि न्यायालय को केन्द्र सरकार को बताना चाहिए कि इस कोष का कैसे और कहां इस्तेमाल होना चाहिए और इसका उपायोग कहां नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा , ‘‘ इसका ( धन ) उपयोग नागरिक या नगर निगम कार्यो के लिये नहीं किया जा सकता। ’’
पीठ ने कहा कि करीब नब्बे हजार से एक लाख करोड़ रुपए की धनराशि थी जो न्यायालय के आदेशों पर केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के पास विभिन्न मदों में रखी थी । न्यायालय ने पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव को निर्देश दिया कि इस साल 31 मार्च की स्थिति के अनुसार इन सारे कोषों और इनमें रखी राशि का ब्यौरा तैयार किया जाये।
पीठ ने कहा , ‘‘ पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव को निर्देश दिया जाता है कि वह हमें यह बतायें कि एक लाख करोड़ रुपए की धनराशि का किस तरह से और उपयोग किया जायेगा और किन क्षेत्रों में इसका उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। ’’ इसके साथ ही न्यायालय ने इस मामले को नौ मई के लिये सूचीबद्ध कर दिया।
न्यायालय को यह भी सूचित किया गया कि शीर्ष अदालत के आदेश के तहत राजधानी में प्रवेश करने वाले वाणिज्यिक वाहनों से टोल टैक्स के अलावा दिल्ली में पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क के रूप में 1301 करोड़ रुपए एकत्र हुए थे। इसके अलावा 2000 सीसी से अधिक क्षमता के इंजन वाले वाहनो से वसूले गये उपकर के रूप में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास 70.5 करोड़ रुपए जमा हैं।
पीठ ने दिल्ली सरकार और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को यह बताने का निर्देश दिया कि इस धन का किस तरह उपयोग किया जायेगा।
इन कोषों में जमा धन का इस्तेमाल दूसरे कार्यो में किये जाने का मुद्दा न्यायालय में ओडिशा के मुख्य सचिव के हलफनामे के अवलोकन के दौरान सामने आया था। न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि इस धनराशि का इस्तेमाल सड़क निर्माण , बस अड्डों के नवीनीकरण और कालेजों में विज्ञान प्रयोगशालाओं के लिये किया जा रहा है।
पीठ ने ओडिशा सरकार के वकील से कहा , ‘‘ यह धन जनता की भलाई के कार्यो के लिये था। इसका इस्तेमाल सिर्फ उसी के लिये होना चाहिए और आपके शासन के हिस्से के रूप में नहीं। ’’
पीठ ने कहा , ‘‘ यह सरकार के रूप में आपके काम का हिस्सा है। सड़कों का निर्माण और स्ट्रीट लाइट लगाना ये सरकार के रूप में आपका काम है। जनता के कोष का इस्तेमाल इसके लिये नहीं हो सकता। सामाजिक कार्यो के लिये आपका कुल खर्च पांच प्रतिशत भी नहीं है। हम आपको ऐसा करने की इजाजत नहीं दे सकते। यह धन जनता की भलाई के लिये है न कि सरकार की भलाई के लिये। ’’
इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे एक वकील ने कहा कि इन कोषों के अंतर्गत एकत्र राशि का इस्तेमाल ओडिशा में आदिवासियों के कल्याण के लिये होना चाहिए।
न्यायालय ने ओडिशा सरकार के वकील को और विवरण दाखिल करने के लिये तीन सप्ताह का समय देते हुये मुख्य सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर उपस्थित रहने का निर्देश दिया है।