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मंटो की वो 6 कहानियाँ जिन पर चला अश्लीलता का मुकदमा, 3 हिंदुस्तानी अदालत और 3 पाकिस्तान कोर्ट में

By रंगनाथ सिंह | Published: May 11, 2018 12:27 PM

सआदत हसन मंटो का जन्म  11 मई 1912 को अविभाजित भारत के लुधियाना में हुआ था। उनकी मृत्यु 18 जनवरी 1955 को पाकिस्तान के लाहौर में हुई थी।

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मंटो से बड़ा उर्दू अफसानानिगार खोजना मुश्किल है। जीते जी मंटो को दुनिया बहुत रास नहीं आई। उन्हें महज 42 साल की उम्र मिली थी जिसमें रोजगार और परिवार के पाटों के बीच पिसते हुए हिंदुस्तानी अदब को कई क्लासिक कहानियाँ दीं। शॉर्ट स्टोरीज (कहानी) लेखन में उनकी तुलना मोपासां से की जाती है। हिंदुस्तान में भी कहानी लेखकों में उनकी तुलना उनके अग्रज प्रेमचंद के सिवा शायद ही किसी हो सके।  11 मई 1912 को अविभाजित हिंदुस्तान के लुधियाना में मंटो का जन्म हुआ। 18 जनवरी 1955 को पाकिस्तान के लाहौर में उन्होंने आखिरी साँस ली। मंटो के अफसाने जितने मशहूर हैं उतने ही मकबूल उनके निजी जीवन के प्रसंग हैं। मंटों के जाती जिंदगी में सबसे ज्यादा चर्चा उन छह मुकदमों की होती है जिनकी वजह से उन पर अदालत में अश्लीलता को बढ़ावा देने मुकदमे हो गये। तीन अविभाजित हिंदुस्तान को कोर्टों में, तीन नए मुल्क पाकिस्तान की अदालतों में। इसे भी विडंबना ही समझना चाहिए खुद मंटो के पिता लुधियाना की स्थानीय अदालत में जज थे। आइए देखते हैं कि वो कौन सी कहानियाँ थीं जिनकी वजह से मंटो पर मुकदमे हुए। पाँच मामलों में वो सभी आरोपों से बरी हो गये, एक मामले में उन पर जुर्माना हुआ था। 

नीचे पढ़ें वो छह कहानियाँ जिनकी वजह से मंटो पर मुकदमे हुए-

1- धुआँ (1947) (अविभाजित भारत में हुआ मुकदमा) 

धुआँ कहानी एक नाबालिग लड़के मसऊद और उसक बहन कुलुसम की कहानी है।  कहानी मसऊद और कुलसूम के हार्मोनल बदलाव को नफीस ज़बान में बयाँ करती है। मसऊद अपनी बहन के कूल्हों और जाँघों को पैर से दबाने के बाद अपने बदन में नए अजनबी अहसास को महसूस करता है। वहीं कुलसुम को भी भाई द्वारा बदन की ऐसे मालिश अलग अहसास कराती है। मसऊद कहानी के अंत में कुलसूम और उसकी सहेली बिमला को बिस्तर में अजीब हालात में देख लेता है। मसऊद कुलसूम को बिमला का बेलिबास सीना घूरते हुए देखता है। 

मंटो की कहानी धुआँ पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें 

2- बू (1947) (अविभाजित भारत में मुकदमा)

रणधीर एक अमीर नौजवान है। उसे ईसाई लड़कियों के संग हमबिस्तरी का शौक है। दूसरे विश्वयुद्ध के हालात में वो अपना ये शौक पूरा नहीं कर पा रहा। उसके घर के नीचे रहने वाली एक ईसाई लड़की हेजल पर उसक नजर है लेकिन वो उसे भाव नहीं देती। एक दिन बारिश में वो अपनी खिड़की के नीचे एक घाटन लड़की को खड़े देखता है जो पास के रस्सियों के कारखाने में काम करती थी। हेजल से बदला लेने के लिए रणधीर घाटन लड़की को ऊपर बुला लेता है। दोनों के बीत जिस्मानी तालुक्कात बन जाते हैं। दर्जनों लड़कियों के संग हमबिस्तर हो चुके रणधीर को घाटन लड़की के संग जिस्मानी रिश्ता बनाकर एक अलग ही अहसास होता है। घाटन लड़की के शरीर से आने वाली  बू (गन्ध) रणधीर के दिल-ओ-दिमाग पर छा जाती है। रणधीर फिर कभी उस बू को अपने ज़हन से नहीं निकाल पाता। यहाँ तक कि अपनी नवब्याहता कुँआरी खूबसूरत गोरी-चिट्टी पत्नी के साथ सुहागरात में भी वो अपने बदन में कोई हरकत नहीं महसूस करता है। उसके ज़हन बरसात की वो रात और उस घाटन के मैले बदन की बू हावी हो जाती है।  

मंटो की कहानी "बू' पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

3- काली शलवार (1947) (अविभाजित भारत में हुआ मुकदमा)

सुल्ताना यौनकर्मी है। वो हाल ही में अम्बाला की छावनी से दिल्ली आयी है। ग्राहकों के अभाव में उसकी आर्थिक स्थिति बिगड़ चुकी है। तभी उसका परिचय शंकर नाम के एक आदमी से परिचय होता है जो उसके सोहबत तो चाहता है लेकिन वो बदले में पैसे नहीं देता। पेशेवर होकर भी सुल्ताना शंकर की बात मान जाती है। इसी बीच मोहर्रम का वक्त करीब आ जाता है और सुल्ताना को एक चिंता सताने लगती है। उसके पास मातम में पहनने के लिए काली समीज तो है लेकिन शलवार नहीं है। वो झिझकते हुए शंकर के सामने अपनी मुश्किल रखती है। शंकर उसे भरोसा दिलाता है कि मोहर्रम के पहले दिन तक उसे काली शलवार मिल जाएगी।  शंकर सुल्ताना से उसके चाँदी के बुंदे माँग लेता है। मोहर्रम से पहले शंकर सुल्ताना को काली शलवार दे जाता है। सुल्ताना जब काली शलवार, काली समीज और काला दुपट्टा पहनकर मोहर्रम पर बाहर निकलती है तो उसका शंकर के एक नये रूप से परिचय होता है। 

मंटो की कहानी "काली शलवार" पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

4- खोल दो (1952) (पाकिस्तान में मुकदमा)

भारत और पाकिस्तान के विभाजन के समय सिराजुद्दीन की बेटी सकीना लापता हो जाती है। आठ रजाकार नौजवान सिराजुद्दीन को भरोसा दिलाते हैं कि वो सकीना को ढूँढ कर लाएँगे। उन्हें सकीना मिल भी जाती है। लेकिन उसके कई दिन बाद सिराजुद्दीन को उसकी बेटी बेसुध हालत में मिलती है। इस बीच सकीना पर जो गुजरी है उसे मंटो ने महज दो लाइनों बयाँ किया है लेकिन उसे पढ़कर किसी की भी रूह काँप जाएगी।  

मंटो की कहानी "खोल दो" पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

5- ठण्डा गोश्त (1952) (पाकिस्तान में मुकदमा)

कहानी भारत के बंटवारे की पृष्ठभूमि में शुरू होती है। ईश्वर सिंह और अपनी पत्नी कुलवन्त कौर के साथ हमबिस्तर होता है। दोनों  कपड़े उतारकर एक दूसरे के जिस्म से खेलने लगते हैं। लेकिन जब कुलवन्त कौर पूरी तरह उत्तेजित हो जाती है तो ईश्वर सिंह निढाल हो जाता है। वो चाहकर भी उत्तेजना नहीं महसूस कर पा रहा है। कुलवन्त कौर को उस पर शक होता है। वो पूछती है कि क्या उसका किसी और औरत से सम्बन्ध हो गया है? ईश्वर सिंह उसे बताता है कि दंगे के दौरान उसने एक घर में छह पुरुषों की हत्या करके लूटपाट की। उस घर में उसे एक जवान लड़की भी मिली थी जिसे वो उठा लाया था। उसके बाद ईश्वर सिंह कुलवन्त कौर को बताता है कि आज वो क्यों ठण्डा पड़ गया है। 

मंटो की कहानी "ठण्डा गोश्त" पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

6- ऊपर नीचे दरमियाँ (1954) (पाकिस्तान में मुकदमा)

मंटो की कहानी "ऊपर नीचे दरमियाँ" दो उम्रदराज मियाँ-बीवी की कहानी है। चार्ल्स डिकंस के नॉवेल लेडिज चैटर्ली लवर्स को प्रतीक के तौर पर प्रयोग करते हुए मंटो ने ढलती उम्र में भी यौन आकाँक्षाओं को कहानी का विषय बनाया है। मंटो कहानी में कहीं भी जिस्मानी हरकतों के बारे में खुलकर नहीं लिखते लेकिन सब कुछ साफ हो जाता है।

मंटो की कहानी "ऊपर नीचे दरमियाँ"" पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

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