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विकलांगता के कलंक को मिटा, हवाओं का रूख अपनी ओर करती दृष्टिबाधित अरुंधति

By अनुभा जैन | Updated: November 20, 2023 19:09 IST

’विकलांग’ कहलाने से नफरत करने वाली अरुंधति कहती हैं, ’’आज मैं स्वतंत्र महसूस करती हूं। सफेद बेंत के साथ, मैं अकेले यात्रा करने के लिए स्वतंत्र हूं जिसकी मैंने पहले कभी कल्पना भी नहीं की थी। मैंने बाधाओं को तोड़ दिया। हर व्यक्ति में कुछ कमियाँ होती हैं जिनका हमें पता नहीं चलता। जरूरत पड़ने पर मदद मांगने में हमें अजीब महसूस नहीं करना चाहिए।’’ विकलांगता के कलंक को मिटा, हवाओं का रूख अपनी ओर करती दृष्टिबाधित अरुंधति

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’विकलांग’ कहलाने से नफरत करने वाली अरुंधति कहती हैं, ’’आज मैं स्वतंत्र महसूस करती हूं। सफेद  बेंत के साथ, मैं अकेले यात्रा करने के लिए स्वतंत्र हूं जिसकी मैंने पहले कभी कल्पना भी नहीं की थी। मैंने बाधाओं को तोड़ दिया। हर व्यक्ति में कुछ कमियाँ होती हैं जिनका हमें पता नहीं चलता। जरूरत पड़ने पर मदद मांगने में हमें अजीब महसूस नहीं करना चाहिए।’’एक दृष्टिबाधित स्वतंत्र पत्रकार, कंटेंट क्रियेटर, लेखिका और गायिका, 33 वर्षीय अरुंधति नाथ ने अपने साहस से अपने जीवन को एक नया अर्थ और उडान दी है।

अरुंधति की बाईं आंख में 25 प्रतिशत दृष्टि है और दूसरी आंख में शून्य दृष्टि है। अरूंधति की दोनों आँखों में जन्म से ही द्विपक्षीय जन्मजात मोतियाबिंद (Bilateral Congenital Cataract) है। छह आंखों की सर्जरी और 90 प्रतिशत दृष्टि हानि के साथ अरुंधति बहुत करीब से ही पढ़ सकती हैं। वह एक मीटर की दूरी तक भी बमुश्किल साइनबोर्ड या कार नंबर प्लेट पढ़ती हैंइन सभी बाधाओं के बावजूद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मीडिया जैसे बीबीसी के द गार्जियन, सीएनएन, अल जज़ीरा आदि और समाचार पत्रों जैसे हिंदू, मिंट लाउंज, आउटलुक ट्रैवलर और कई अन्य भारतीय प्रकाशनों के लिए लिखा है एक समावेशी इंक्ल्युसिव माहौल में पली-बढ़ी वह फ्रिलांस लेखकों को कोचिंग और परामर्श देती है।

वाणिज्य स्नातक अरुंधति 2010 ने एक प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक में एसोसियेट के तौर पर नौकरी प्रारंभ की। हालांकि इस बैंक में विकलांग लोगों के लिए एक समावेशी सहायक माहौल था, लेकिन हमेशा लिखने की कुछ अलग इच्छा रखने वाली, अरुंधति ने 2017 में अपनी नौकरी छोड़ दी। उन्होंने 2017 में बेंगलुरु स्थित एक नॉन प्रॉफिट ऑगनाइजेशन या गैर-लाभकारी संगठन “मित्र ज्योति“ के बारे में एक लेख लिखा था जो विकलांग लोगों के लिए काम करता है।

अरुंधति ने मुझसे खुलकर बात करते हुए कहा, 2022 में थोडे बेमन से पहली बार मैंने अपने गृहनगर गुवाहाटी से अकेले एक नए शहर बेंगलुरु की यात्रा की.’’ उन्होंने गतिशीलता तकनीक, स्वतंत्र जीवन कौशल, स्क्रीन रीडिंग सॉफ्टवेयर का उपयोग और सफेद छड़ी का उपयोग करके गतिशीलता में प्रशिक्षण सीखने के लिए “मित्र ज्योति“ में तीन महीने का आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम किया। अरुंधति ने कहा, ’’सफेद छड़ी का इस्तेमाल करते समय मुझे सुनने और छूने जैसी इंद्रियों पर निर्भर रहना पड़ता है। मैं अपरिचित स्थानों या असमान सतहों पर सफेबेंत का उपयोग करती हूं। रोजाना अभ्यास से मेरी अजीबता और डर कम हो गया है और अब मैंने अकेले ही चलना और अन्य काम करना शुरू कर दिया है। यह बेंत मेरे लिए स्वतंत्रता, यात्रा करने की स्वतंत्रता और रोमांच का प्रतीक है।“

अपनी जीवन यात्रा के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, “18 साल की उम्र तक, मुझे नहीं लगा कि यह कोई बाधा है या मुझे यह एहसास ही नहीं हुआ कि मैं विकलांग हूं। मुझे लगा कि यह एक ऐसी बीमारी है जिसके साथ मुझे रहना होगा। मैं नियमित स्कूल जाती और वहां मुझे सहयोगात्मक माहौल मिला।’’ पढ़ाई में अच्छी अरुंधति ने बोर्ड परीक्षा में 92 प्रतिशत अंक हासिल किए। उन्होंने कहा, “मैन्युअल पढ़ने और लिखने से, अब, मैं धीरे-धीरे ऑडियोबुक, पॉडकास्ट और गूगल डॉक्स पर काम करने लगी हूं जहां मैं आवाज से टेक्स्ट का उपयोग करती हूं।“

भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित अरुंधति खुद को एक गायिका के रूप में भी अपना कौशल अजमाना चाहती हैं। अंत में, अरुंधति ने कहा, “यात्रा हमारे दिमाग को खोलती है और हमें नई संस्कृतियों और लोगों से जुड़ने में मदद करती है। कोई भी बाधा हमें अपने ग्रह की खोज करने से नहीं रोक सकती जो विकलांगों के लिए भी है। मुझे याद है कि जब एक प्रशिक्षक के सहयोग से मैंने 2015 में अंडमान के नॉर्थ बे द्वीप में स्कूबा-डाइविंग की थी तो मुझे कितनी खुशी हुई थी। लेकिन अब मैं अगले साल जापान और हांगकांग की अपनी पहली एकल अंतरराष्ट्रीय यात्रा की योजना बना रही हूं।’’

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