नयी दिल्ली, नौ सितंबर (उज्मी अतहर): तनवीर कौर रंधावा उस समय बेंगलुरू में भारतीय विज्ञान संस्थान की प्रयोगशाला में थी जब उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिक यौन संबंधों पर प्रतिबंध से संबंधित धारा 377 को निरस्त करने का फैसला दिया। यह समलैंगिक यौन संबंधों को प्रतिबंधित करने वाला औपनिवेशिक युग का कानून था। आईआईटी रुड़की की एलुमनी रंधावा ने कहा, ‘‘मैं बहुत खुश, भावुक और जीत का अनुभव कर रही थी। यह मिली जुली भावनाएं थी।’’
वह उन याचिकाकर्ताओं में से एक थी जो उच्चतम न्यायालय में इस कानून के खिलाफ जी जान से लड़ी। उन्होंने बेंगलुरू से फोन पर पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘यह फैसला इस समुदाय को पहचान और विश्वास देगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मेरे लिए यह फैसला सशक्त करने वाला है। यह हमें सामने आने और अपनी लैंगिकता को पहचानने का साहस देगा।’’
बहरहाल, आईआईएससी बेंगलुरू में पीएचडी की 25 वर्षीय छात्रा का मानना है कि समलैंगिक संबंधों को समाज में स्वीकार करना अब भी ‘‘बहुत बड़ी चुनौती’’ है। रंधावा ने कहा, ‘‘अब लोगों को संवेदनशील बनाने की जरुरत है खासतौर से देश के ग्रामीण इलाकों के लोगों को, जिनके लिए समलैंगिकता एक धब्बा और अपराध है।’’ अन्य याचिकाकर्ता अहमदाबाद से आईटी इंजीनियर विराल ने कहा कि यह फैसला ‘‘लोगों का फैसला’’ है।
आईआईटी खड़गपुर के 28 वर्षीय एलुमनी ने कहा, ‘‘मेरे लिए सबसे ज्यादा जो मायने रखता है वह हमें मिली स्वीकार्यता है, जिस तरह की प्रतिक्रिया हमें लोगों से मिलती है। ना केवल सेलिब्रिटियों और कार्यकर्ताओं ने इस फैसले का स्वागत किया बल्कि आम आदमी ने भी इसका स्वागत किया।’’
एक और याचिकाकर्ता आईआईटी दिल्ली के देबोत्तम साहा ने कहा कि वह मानते हैं कि ‘‘मेरा देश बड़ा हो गया है।’’ पीएचडी के 28 वर्षीय छात्र ने कहा, ‘‘अब मैं शर्म महसूस नहीं करता हूं कि मैं क्या हूं। मैं अब अपराधी भी नहीं हूं और यह अहसास ही आजादी है।’’
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के छात्रों और एलुमनी के 20 छात्रों के एक समूह ने उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को चुनौती दी थी जिसके तहत समलैंगिक यौन संबंध बनाना अपराध है। इस फैसले का समाज के अधिकतर वर्गों से स्वागत किया खासतौर से युवाओं ने जिन्होंने इसे प्यार की जीत बताया।
आईआईटी गुवाहाटी के एलुमनी और गोल्डमैन सैक्स में वरिष्ठ विश्लेशक रोमेल बराल ने कहा कि अगला कदम स्वीकार्यता है। 25 वर्षीय याचिकाकर्ता ने कहा, ‘‘हमें वो मौलिक अधिकार दिया गया जिसके हम हकदार थे।’’