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Ramdhari Singh Dinkar Death Anniversary Special: खुद को बैड गांधी कहने वाले दिनकर की पांच लोकप्रिय कविताएं

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 24, 2019 7:31 AM

Ramdhari Singh Dinkar Death Anniversary Special: दिनकर की ज्यादातर रचनाएं वीर रस से भरी हुई हैं। दिनकर की कविताओं में दबे-कुचले मेहनतकश मानस के मन की व्यथा का विद्रोह है तो कुरुक्षेत्र के रण में भगवान कृष्ण की चेतावनी के रूप में गीता का सार है। रश्मिरथी में कृष्ण की चेतावनी के अंश की ये पक्तियां एक बार सुनने के बाद कानों में गूंजती रहती हैं। 

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ठळक मुद्देRamdhari Singh Dinkar Death Anniversary Special: पुण्यतिथि पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' को याद कर रहा है देश।दिनकर की कविताओं में दबे-कुचले मेहनतकश मानस के मन की व्यथा का विद्रोह है तो कुरुक्षेत्र के रण में भगवान कृष्ण की चेतावनी के रूप में गीता का सार है।

Ramdhari Singh Dinkar Death Anniversary Special: 'विद्रोही कवि' से 'राष्ट्रकवि' बनने की तक की रामधारी सिंह 'दिनकर' की रचनाएं आज दिलों को झकझोरती हैं। उनकी रचनाएं हमेशा प्रासंगिक रहने वाली हैं। दिनकर अपनी रचनाओं में भावनाओं का वह स्पर्श है जो हर वर्ग का व्यक्ति कहीं न कहीं मन ही मन महसूस करता है। 24 अप्रैल को पुण्यतिथि के मौके पर राष्ट्रकवि दिनकर को याद किया जा रहा है। दिनकर के व्यक्तित्व, उनके संघर्ष और उनकी रचनाओं की तारीफ को शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है।

एक बार हरिवंश राय बच्चन ने कहा था "दिनकरजी को एक नहीं, बल्कि गद्य, पद्य, भाषा और हिन्दी-सेवा के लिये अलग-अलग चार ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने चाहिए।" उनकी तारीफ में नामवर सिंह ने कहा था "दिनकरजी अपने युग के सचमुच सूर्य थे।"

स्वर्ग परित्यक्ता एक अप्सरा उर्वशी की कहानी को दिनकर इस प्रकार जीवंत किया कि इसके लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उर्वशी के एक अंश में उन्होंने लिखा-

पर, न जानें, बात क्या है !इन्द्र का आयुध पुरुष जो झेल सकता है,सिंह से बाँहें मिलाकर खेल सकता है,फूल के आगे वही असहाय हो जाता ,शक्ति के रहते हुए निरुपाय हो जाता. विद्ध हो जाता सहज बंकिम नयन के बाण सेजीत लेती रूपसी नारी उसे मुस्कान से

दिनकर की ज्यादातर रचनाएं वीर रस से भरी हुई हैं। दिनकर की कविताओं में दबे-कुचले मेहनतकश मानस के मन की व्यथा का विद्रोह है तो कुरुक्षेत्र के रण में भगवान कृष्ण की चेतावनी के रूप में गीता का सार है। रश्मिरथी में कृष्ण की चेतावनी के अंश की ये पक्तियां एक बार सुनने के बाद कानों में गूंजती रहती हैं। 

दुर्योधन वह भी दे ना सका,आशीष समाज की ले न सका,उलटे, हरि को बाँधने चला,जो था असाध्य, साधने चला।जब नाश मनुज पर छाता है,पहले विवेक मर जाता है।

हरि ने भीषण हुंकार किया,अपना स्वरूप-विस्तार किया,डगमग-डगमग दिग्गज डोले,भगवान् कुपित होकर बोले-‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।

यह देख, गगन मुझमें लय है,यह देख, पवन मुझमें लय है,मुझमें विलीन झंकार सकल,मुझमें लय है संसार सकल।अमरत्व फूलता है मुझमें,संहार झूलता है मुझमें।

'समर शेष है' रचना में दिनकर तमाम तर्कों से परे सागर की गहराई सी बात इतनी सहजता कह देते हैं कि हर पढ़ने वाला कुछ पल के लिए अवाक् रह जाता है। राष्ट्रकवि कहते हैं-

समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध

'सामधेनी' में एक चांद के जरिये दिनकर जीवन का अवलोकन करने वाले व्याकुल मन की उलझन बड़े ही मार्मिक ढंग से सामने लाते हैं और शुरुआत की चार पंक्तियों में ही दो जहां का ज्ञान उड़ेल देते हैं। वह लिखते हैं-

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है! उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता, और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है। 

दिनकर की 'जनतंत्र का जन्म' ऐसी रचना है जिसकी पंक्तियां इसके अस्तित्व में आने के बाद से अब तक मंचों पर न जाने कितनी बार नेताओं के भाषणों में वजन डालती रही हैं और आगे भी जोर शोर से कही जाती रहेंगी। लोकनायक जय प्रकाश नारायण भी दिनकर की ये पक्तियां कहने से खुद को नहीं रोक पाए थे कि-

सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है; दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। 

आरती लिये तू किसे ढूंढता है मूरख, मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में? देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे, देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में। 

23 सितंबर 1908 को बिहार बेगूसराय के सिमरिया गांव जन्मे रामधारी सिंह दिनकर का बचपन घोर संघर्ष में गुजरा। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति शास्त्र की पढ़ाई की। उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया। मुजफ्फरपुर कॉलेज के हिन्दी के विभाग के वह अध्यक्ष भी रहे। भागलपुर विश्वविद्यालय में दिनकर ने उपकुलपति भी रहे।

1920 में महात्मा गांधी को पहली बार देखने के बाद दिनकर उनकी राह चल पड़े थे लेकिन खुद को 'बैड गांधी' कहते थे। 1947 में देश आजाद हुआ तो वह प्रथम संसद के राज्यसभा का सदस्य चुना गया और वह 12 वर्षों तक ऊपरी सदन के सदस्य रहे। वह अर्से तक भारत सरकार के हिंदी सलाहकार भी रहे। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उनके मुरीद थे और उनकी किताब 'संस्कृति के चार अध्याय' की प्रस्तावना लिखी थी। कवि, लेखक, निबन्धकार दिनकर को साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मविभूषण और पद्म विभूषण जैसे कई बड़े पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

टॅग्स :रामधारी सिंह दिनकरकला एवं संस्कृति
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