मानवीय कर्म की उलझी हुई गुत्थी को सुलझाती सद्गुरु जग्गी वासुदेव की किताब- 'कर्म- एक योगी के मार्गदर्शन में रचें अपना भाग्य'

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: May 2, 2023 12:25 PM2023-05-02T12:25:27+5:302023-05-03T13:30:13+5:30

सद्गुरु जग्गी वासुदेव की पुस्तक 'कर्म- एक योगी के मार्गदर्शन में रचें अपना भाग्य' में आधुनिकता की रफ्तार भरी जिंदगी में मनुष्य की कार्यशैली को रेखांकित करते उस कर्म की व्याख्या कर रहे हैं, जो त्याग और सद्इच्छा से आत्मकेंद्रीत न होकर समाज के कल्याण के लिए हो।

Sadhguru Jaggi Vasudev's book 'Karma - Create your own destiny under the guidance of a Yogi' solves the tangled knot of human karma | मानवीय कर्म की उलझी हुई गुत्थी को सुलझाती सद्गुरु जग्गी वासुदेव की किताब- 'कर्म- एक योगी के मार्गदर्शन में रचें अपना भाग्य'

मानवीय कर्म की उलझी हुई गुत्थी को सुलझाती सद्गुरु जग्गी वासुदेव की किताब- 'कर्म- एक योगी के मार्गदर्शन में रचें अपना भाग्य'

Highlightsमानव को सदैव वैसा कर्म करना चाहिए, जो उसे पवित्रता और सात्विकता की राह पर ले जाएसद्गुरु जग्गी वासुदेव अपनी पुस्तक 'कर्म- एक योगी के मार्गदर्शन में रचें अपना भाग्य' में इसी का जिक्र कर रहे हैंवो लिखते हैं, धागे की खातिर कोई हार नहीं पहनता लेकिन धागे के बिना हार बन भी नहीं सकता!

कर्म मनुष्य के जीवन का वह सिद्धांत है, जो पशुओं से उसे पृथक करता है। गीता में श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कर्म ही मनुष्य के प्रारब्ध का नियंता बनता है। इसलिए मानव को मन से, वचन से और कर्म से पवित्रता और सात्विकता की राह पर चलना चाहिए। आज जब हम 21वीं सदी में हैं, जब हम खुले बाजारवाद और उपभोक्तावाद की जड़ में जकड़ते जा रहे हैं।

जब अनवरत महत्वाकांक्षाएं हमें घेरे हुए हैं तो हमें उस दिशा और दशा से निकालकर कर्म के सत्मार्ग पर ले जाने के लिए आध्यात्मिक सद्गुरु जग्गी वासुदेव की कलम से एक पुस्तक निकली, जिसका नाम 'कर्म- एक योगी के मार्गदर्शन में रचें अपना भाग्य' है। इस किताब को पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया की ओर से प्रकाशित की गई है। जिसका मूल्य 250 रुपये है।

ईशा फाउंडेशन की नींव रखने वाले सद्गुरु जग्गी वासुदेव इस किताब में कहते हैं कि आधुनिकता के इस रफ्तार भरी जिंदगी में मनुष्य की कार्यशैली और उसके सोच में साम, दम, दंड और भेद जैसी प्रवृत्ति इतनी हावी हो गई है कि उसके अंतरात्मा की कोटरी में बैठी आत्मविश्लेषण करने वाली तार्किकता सुषुप्त अवस्था में जा चुकी है और मोह के वशीभूत होकर इंसान भौतिक संसार के कर्मों को सच्चा कर्म मान बैठा है और उसी के अनुरूप अपने जीवन में आचरण करने लगा है।

पुस्तक 'कर्म- एक योगी के मार्गदर्शन में रचें अपना भाग्य' के पृष्ठ संख्या 11 पर सद्गुरु लिखते हैं, "कभी-कभी ऐसा क्यों महसूस होता है कि भगवान अगर सच में मौजूद हैं तो वे जरूर दुनिया के साथ खेल रहे होंगे? दुनिया इतनी अव्यवस्थित और अनियंत्रित क्यों लगती है? शायद, इन सवालों से हैरान इंसान के 'क्यों' का जवाब कोई दूसरा शब्द इतने अच्छे से नहीं देता है, जैसा की कर्म ने दिया है या दे सकता है।"

कर्म शरीर, मन और ऊर्जा के कार्य को दर्शाता है लेकिन कर्म मूलरूप से कहीं ज्यादा आपके कार्य करने के इरादे के बारे में है। यह बहुत मायने रखता है कि आपका इरादा क्या है। अगर आप प्रेमवश कुछ कहते हैं और दूसरे व्यक्ति को चोट पहुंचती है तो वह उसका कर्म है, आपका नहीं। लेकिन अगर आप नफरत से कुछ कहते हैं और दूसरे व्यक्ति को इससे कोई समस्या नहीं होती है तो यह उसके लिए अच्छा कर्म है, आपके लिए नहीं। उस दिशा में मनु्ष्य नकारात्मक कर्म इकट्ठा करता है। आपकी नफरत के प्रति दूसरा कैसे प्रतिक्रिया देता है, वह मुद्दा नहीं है। कर्म का संचय आपके इरादे से तय होता है न कि किसी दूसरे पर उसके असर से।

सद्गुरु की यह पुस्तक 'कर्म- एक योगी के मार्गदर्शन में रचें अपना भाग्य' कुछ-कुछ गीता का अंश तत्व मालूम पड़ती है, जिसमें उन्होंने भौतिक जगत के मानवीय उदाहरणों के देते हुए कर्म की बेहद सरल भाषा में व्याख्या की है। जिस प्रकार से गीत में श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में अर्जुन से अन्याय और अधर्म के पक्ष में खड़े स्वजनों के विरोध में गांडीव की प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए आह्वान करते हैं।

गीता में श्री कृष्ण अपने विराट स्वरूप में अर्जुन को यह बताते हैं कि तुम्हें केवल फल रहित कर्म करना है क्योंकि मनुष्य को कर्मों के अनुरूप ही फल की प्राप्ति होगी। फल के अनुरूप कर्म नहीं होते। यदि मनुष्य अच्छा कर्म करेगा तो उसका परिणाम भी अच्छा होगा लेकिन यदि कर्म में फल की कामना प्रधान होती है तो मन भ्रमित होगा और उस कारण वो कर्म के मार्ग से विमुख भी हो सकता है।

गीता में बताई इन्हीं बातों को सद्गुरु ने बेहद सुंदर शब्दों में रेखांकित किया है। वैसे लोग, जो कर्म के अंतर्द्वंद्व को मन की कोटरी में तलाश रहे हैं। यह किताब उनके लिए आध्यात्मिक साधन है, भौतिक संसार में कैसा हो मनुष्य का कर्म या कैसे अपने कर्मों को सकारात्मक रूप से सत्य के रास्ते पर ले जाए। इसे जानने के लिए इस पुस्तक का अध्ययन सभी लोगों को करना चाहिए।

पुस्तक का नाम- कर्म- एक योगी के मार्गदर्शन में रचें अपना भाग्य
लेखक- सद्गुरु जग्गी वासुदेव
प्रकाशक- पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया
मूल्य- 250 रुपये

Web Title: Sadhguru Jaggi Vasudev's book 'Karma - Create your own destiny under the guidance of a Yogi' solves the tangled knot of human karma

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