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#KuchhPositiveKarteHain: पैडमैन-माउंटेनमैन से भी दिलचस्प है मैडमैन की कहानी, 40 साल में खोद डाले 14 तालाब

By धीरज पाल | Updated: August 4, 2018 18:42 IST

मैडमैन की कहानी पैडमैन और माउंटेनमैन से अलग है। कर्टनाटक में 82 साल के भेड़ चराने वाले कामेगौड़ा नाम के शख्स को उनके गांव व आसपास के लोग उनके नाम से नहीं बल्कि 'मैडमैन' के नाम से पहचानते है।

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मैडमैन की कहानी पैडमैन और माउंटेनमैन से अलग है। कर्टनाटक में 82 साल के भेड़ चराने वाले कामेगौड़ा नाम के शख्स को उनके गांव व आसपास के लोग उनके नाम से नहीं बल्कि 'मैडमैन' के नाम से पहचानते है। जी हां, आपने सही सुना मैडमैन। बिहार के 'माउंटेमैन' और तमिलनाडू के पैडमैन की कहानियों से तो हम सभी परिचित हैं लेकिन कर्नाटक के मैडमैन के कारनामों के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। कामेगौड़ा महज एक नाम ही नहीं बल्कि इनके अंदर सैकड़ों लोगों की शक्ति और हिम्मत निहित है। इन्होंने बगैर सरकारी मदद के अकेले दम पर 14 तालाब बना डाले। यह सब इंसान की इच्छा पूर्ति नहीं बल्कि जानवरों की जीवन निर्भरता के लिए किया गया। 

कर्नाटक के मांडया में रहने वाले 'मैडमैन' पेशे से भेड़ चराते हैं। आज से 40 वर्ष पहले पहाड़ियों पर हरियाली नहीं बल्कि सब कुछ बंजर था। दूर दराज तक पानी मिलना मुश्किल होता है। लेकिन पिछले 40 सालों से अकेले दम पर गांव को ही नहीं बल्कि आस पास स्थित पहाड़ों पर हरियाली में बदल दिया। 

40 साल में 14 तालाब के पीछे की कहानी बेहद ही मार्मिक है। इसे लेकर कहा जाता है कि कामेगौड़ा अक्सर भेड़ों को पहाड़ों के ऊपर चराने लेकर जाते थे। पहाड़ों पर पानी नहीं होता था जिससे उनके भेड़ों को काफी दिक्कतें होती थी। भेड़ों की तकलीफ मैडमैन से नहीं देखी गई। उसने एक दिन निर्णय किया की भेड़ों और पक्षियों को पानी की समस्या से निताज दिलाने के लिए वह पहाड़ खोदेगा। उसने एक दिन पहाड़ शुरू किया और कुछ दूर जमीन खोदने के बाद पानी का स्तर आ गया। पहाड़ खोदने के लिए उन्होंने अपनी कुछ भेड़ बेचा ताकि खोदने के लिए फावड़े और मिट्टी फेंकने के लिए तसला लिया ताकि काम आसानी से हो जाए। 

के मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 14 तालाब खोदने में करीब 10 से 15 लाख रुपये खर्च कर दिए। यह सब सिर्फ अकेले दम पर किया। पहाड़ी पर 2 हजार से ज्यादा बरगद के पेड़ लगा चुके हैं। 82 की उम्र में भी वे पूरी तरह से फिट हैं और आज भी पहाड़ चढ़ते हैं। उन्होंने तालाबों का नाम पौराणिक कथाओं के नाम पर रखा है। वह बताते हैं कि उन्होंने पहले तालाब का नाम गोकर्ण और झीलों को जोड़ने वाली सड़क का नाम राम और लक्ष्मण के नाम पर रखा था।   

कई पुरस्कारों से किया गया सम्मानित कामेगौड़ा को उनके काम के लिए कई सारे इनाम से सम्मानित किया गया। कई बार उन्हें इनाम में पैसे भी मिले, जिसे भी उन्होंने तालाब बनाने में खर्च कर दिया। 

'मैडमैन' के पीछे क्या है कहानी 

जैसा कि बताया गया कि आसपास और गांव के लोग उन्हें 'मैडमैन' के नाम से जानते हैं। दरअसल, यह नाम भी गांव और उनके रिश्तेदारों ने रखा था। तालाब खोदता कामगौड़ा को देख उन्हें मैडमैन कहकर बुलाते थे। क्योंक वो पिछले 40 सालों से, हर सुबह 5 बजे उठकर  9 बजे तक खोदता है और 9 बजे से शाम 7 बजे तक वह अपने मवेशियों को चराता है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्होंने कहा था कि मेरे तालाब खोदने से रिश्तेदारों और पड़ोसियों को खो दिया। बाद में मेरे रिश्तेदार और सगे संबंधि पेड़-पौधे, जानवर और तालाब बने।  

कुछ ने मेरा मजाक उड़ाया ... कुछ ने मुझे सरकारी भूमि का उपयोग करने का विरोध किया। लेकिन मैं नहीं रुक गया। मैं किसी को चुनौती दे सकता हूं!। भले ही अपने यह दुनिया के लिए 'मैडमैन' हो लेकिन इनके कामों की सरहाना पूरा देश करता है। यह देश के लिए बड़े मिशाल है। लोगों को इनका शेल्यूट करना चाहिए।   

टॅग्स :कुछ पॉजिटिव करते हैंप्रेरणादायककर्नाटक
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