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अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बिलबिलाया इस्लामिक सहयोग संगठन, भारत ने दिया करारा जवाब

By शिवेन्द्र कुमार राय | Updated: December 13, 2023 18:42 IST

इस्लामिक सहयोग संगठन ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि ओआईसी जनरल सचिवालय 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार द्वारा की गई एकतरफा कार्रवाइयों को बरकरार रखने वाले भारतीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चिंता व्यक्त करता है।

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ठळक मुद्देसुप्रीम कोर्ट के फैसले से बिलबिलाया इस्लामिक सहयोग संगठनभारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि यह गलत सूचना और गलत इरादे दोनों हैअरिंदम बागची ने कहा कि ऐसे बयानों से ओआईसी की कार्रवाई और भी संदिग्ध हो जाती है

नई दिल्ली: भारत ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने की गारंटी देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के जनरल सचिवालय द्वारा जारी एक बयान को खारिज कर दिया है। ओआईसी ने शीर्ष अदालत के आदेश पर चिंता व्यक्त की थी, जिसने फैसला सुनाया कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था।

इस्लामिक सहयोग संगठन ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि ओआईसी जनरल सचिवालय 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार द्वारा की गई एकतरफा कार्रवाइयों को बरकरार रखने वाले भारतीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चिंता व्यक्त करता है, जिसने जम्मू और कश्मीर क्षेत्र की विशेष स्थिति को छीन लिया है। 

जवाब में भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि यह गलत सूचना और गलत इरादे दोनों है। ओआईसी मानवाधिकारों के सिलसिलेवार उल्लंघनकर्ता और सीमा पार आतंकवाद के एक बेपरवाह प्रमोटर के इशारे पर ऐसा करता है। अरिंदम बागची ने कहा कि ऐसे बयानों से ओआईसी की कार्रवाई और भी संदिग्ध हो जाती है। इस तरह के बयान केवल ओआईसी की विश्वसनीयता को कमजोर करते हैं।

बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने  जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द करने के 2019 के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखा।  यह मानते हुए कि 1949 में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने के लिए भारतीय संविधान में शामिल किया गया अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था, प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि भारत के राष्ट्रपति को तत्कालीन राज्य की संविधान सभा की अनुपस्थिति में इस उपाय को रद्द करने का अधिकार था, जिसका कार्यकाल 1957 में समाप्त हो गया था।

अनुच्छेद 370 के विवादास्पद मुद्दे पर 16 दिनों की लंबी सुनवाई के बाद दशकों से चली आ रही बहस का निपटारा करते हुए पीठ ने इस अनुच्छेद को निरस्त करने को बरकरार रखते हुए तीन सहमति वाले फैसले दिए, जो 1947 में भारत संघ में शामिल होने पर जम्मू-कश्मीर को एक विशेष दर्जा प्रदान करता था। 

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