लखनऊ:कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी लोकसभा चुनाव 2024 में अपने दिवंगत पिता राजीव गांधी की पारंपरिक सीट अमेठी को छोड़कर मां सोनिया गांधी की सीट रायबरेली से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। इसके अलावा राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट से भी लगातार दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं, जहां मतदान चुनाव के दूसरे चरण में संपन्न हो चुका है।
अमेठी और रायबेरली की सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशियों की घोषणा से पूर्व सियासी पंडितों की लगातार चल रही कयासबाजी चल रही थी राहुल गांधी अमेठी सीट से और प्रियंका गांधी रायबरेली सीट से चुनाव लड़ेंगे लेकिन कांग्रेस ने सभी अटकलों को विराम देते हुए नेहरू-गांधी परिवार के भरोसेमंद किशोरी लाल शर्मा को अमेठी और राहुल गांधी को रायबरेली के उतारकर नई सियासी सरगर्मी पैदा कर दी।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर राहुल गांधी ने साल 2019 में हारने वाली अपनी अमेठी सीट पर दावा क्यों नहीं ठोंका। समाचार वेबसाइट हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार दादा फिरोज गांधी, दादी इंदिरा गांधी और मां सोनिया गांधी के नक्शेकदम पर चलते हुए नामांकन के आखिरी दिन रायबरेली से अपने उम्मीदवारी की ऐलान कर दिया है।
गांधी परिवार ने 1952 से ही रायबरेली सीट अपने पास रखे हुए है। सबसे पहले पंडित जवाहर लाल नेहरू के दामाद और इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी ने 1952 और 1957 में यह सीट जीती थी। उसके बाद इंदिरा गांधी 1967 और 1977 के बीच रायबरेली की संसद रहीं। इंदिरा गांधी आपातकाल के बाद 1977 का चुनाव राजनारायण से रायबेरली की सीट हार गई थीं।
हालांकि वो 1980 में रायबरेली सीट से चुनाव जीतकर संसद में लौट आईं लेकिन अविभाजित आंध्र प्रदेश में अपनी दूसरी सीट मेडक बरकरार रखी। उसके बाद साल 2004 से सोनिया गांधी रायबरेली की सांसद रहीं। करीबी रिश्तेदार अरुण नेहरू और शीला कौल भी इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
माना जाता है कि कांग्रेस के रणनीतिकारों ने राहुल गांधी को गांधी परिवार का पर्याय मानी जाने वाली सीट रायबरेली से चुनाव लड़ने की सलाह दी है और प्रियंका गांधी वाड्रा को अमेठी में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से मुकाबला करने दिया है।
कई नेताओं ने कहा कि प्रियंका गांधी ने देश भर में पार्टी के लिए प्रचार करने की अपनी प्रतिबद्धता का हवाला देते हुए चुनाव से बाहर होने का विकल्प चुना। उन्होंने पहली बार यह व्यापक भूमिका संभाली है।
माना जाता है कि गांधी परिवार के लिए अमेठी की तुलना में रायबरेली अधिक सुरक्षित सीट है। राहुल गांधी के लिए अमेठी का मतलब एक और कड़ा मुकाबला होता। 2019 के चुनाव में जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का अन्य सीटों से सफाया हो गया, तो सोनिया गांधी रायबरेली में 55.8 फीसदी वोट पाने में सफल रहीं।
सोनिया गांधी के राज्यसभा में जाने के बाद कांग्रेस के लिए यह जरूरी है कि कोई शीर्ष नेता उत्तर भारत का प्रतिनिधित्व करे। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक से, संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल केरल से और मुख्य प्रवक्ता जयराम रमेश भी कर्नाटक से आते हैं। यही कारण था कि कांग्रेस का उत्तर भारत से अपने शीर्ष नेता को मैदान में उतारना राजनीतिक रूप से जरूरी था।
दक्षिण भारत में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा है। उत्तर भारतीय राज्यों में विशेष रूप से छह राज्यों में जहां वह भाजपा के साथ सीधे मुकाबले में है, अगर पार्टी को सत्ता दोबारा हासिल करनी है तो उसे अपनी संख्या में सुधार करना होगा। चुनाव से पहले कांग्रेस ने दो दक्षिण भारतीय राज्यों कर्नाटक और तेलंगाना में जीत हासिल की, लेकिन राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता खो दी। उत्तर भारत में कांग्रेस केवल हिमाचल प्रदेश में सत्ता में है और झारखंड में सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है।
प्रियंका गांधी के चुनाव से हटने के बाद पार्टी अमेठी के लिए उपयुक्त उम्मीदवार की तलाश कर रही थी। उसके बाद पार्टी की नजर दशकों तक गांधी परिवार के साथ खड़े रहे किशोरी लाल शर्मा को उतारा, जो पिछले कई दशकों से गांधी परिवार के लिए अमेठी और रायबरेली सीटों का प्रबंधन कर रहे थे।
एक समय पार्टी पूर्व सांसद शीला कौल के पोते को अमेठी से संभावित उम्मीदवार के रूप में मान रही थी लेकिन गांधी परिवार ने अपने वफादार रहे किशोरी लाल शर्मा को टिकट देकर पुरस्कृत करने का फैसला किया। शर्मा को ईरानी के खिलाफ उस वक्त में नामांकन भरा है, जब पार्टी कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ेंगे।