पटनाः बिहार के 243 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से केसरिया विधानसभा सीट 15वें स्थान पर है। वर्ष 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में केसरिया सीट पर जदयू के उम्मीदवार शालिनी मिश्रा ने 40219 वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी। उन्होंने राजद प्रत्याशी संतोष कुशवाहा को हराया था, जिनके हिस्से 30992 वोट आए थे। ऐसे में 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव में केसरिया की राजनीति में क्या होगा, यह देखना दिलचस्प होगा। क्या यहां फिर से कोई नई पार्टी उभरेगी या फिर पुराने समीकरण अपने ही तरीके से काम करेंगे? एक बात तो साफ है कि केसरिया की राजनीति उतनी ही रोमांचक है जितनी इसकी ऐतिहासिक धरोहर। बिहार के पूर्वी चंपारण जिले में स्थित केसरिया विधानसभा क्षेत्र, जहां राजनीति और इतिहास दोनों का दिलचस्प संगम देखने को मिलता है।
यह क्षेत्र न सिर्फ अपनी ऐतिहासिक धरोहर, खासकर बौद्ध स्तूप के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां की राजनीति भी उतनी ही रोमांचक और दिलचस्प है। यदि आप बिहार की राजनीति और इतिहास को एक साथ समझना चाहते हैं तो केसरिया विधानसभा क्षेत्र एक बेहतरीन उदाहरण है, जहां हर चुनाव एक नई कहानी, एक नया मोड़ लेकर आता है।
केसरिया विधानसभा क्षेत्र का इतिहास बौद्ध धर्म के साथ गहरे जुड़ा हुआ है। यहां का बौद्ध स्तूप दुनिया का सबसे ऊंचा बौद्ध स्तूप माना जाता है, जो न केवल पर्यटकों को आकर्षित करता है, बल्कि धार्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। लेकिन इस क्षेत्र की राजनीति की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। यहां राजनीतिक लहरें भी उतनी ही ऊंची-नीची होती हैं, जितनी बौद्ध स्तूप की ऊंचाई!
एक समय भाजपा का मजबूत किला रहा पूर्वी चंपारण जिले की केसरिया विधानसभा सीट पर 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद के राजेश कुमार ने भाजपा के राजेंद्र गुप्ता को करीब 16 हजार वोट से हराया था। अक्टूबर 2005 में भी राजेश कुमार राजद के टिकट पर यहां से विधायक चुने गए थे। 2010 में पहली बार भाजपा के टिकट पर यहां से सचींद्र सिंह ने जीत दर्ज की थी।
2000 और फरवरी 2005 के चुनावों में अब्दुल्ला जीते थे। 2000 में समता पार्टी के टिकट पर और 2005 में जदयू के टिकट उन्होंने चुनाव लड़ा था। केसरिया सीट से भाकपा के पीतांबर सिंह लगातार चार बार और यमुना यादव लगातार दो बार चुनकर विधानसभा पहुंचे थे। 1952 के उप-चुनाव समेत अब तक इस विधानसभा सीट पर 17 बार वोट डाले गए हैं।
इन चुनावों में 6 बार भाकपा, पांच बार कांग्रेस, दो बार राजद, एक-एक बार भाजपा, जदयू, समता पार्टी और जनता पार्टी को जीत मिली है। सबसे अधिक बार इस सीट पर जीत हासिल करने वाली भाकपा यहां आखिरी बार 1995 में जीती थी। हाल के वर्षों में केसरिया विधानसभा में सबसे रोमांचक मुकाबला देखा गया। 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू की शालिनी मिश्रा ने राजद के संतोष कुशवाहा को हराया।
यह चुनाव एक सशक्त और कड़ा मुकाबला था, जिसमें महागठबंधन और एनडीए के बीच सियासी घमासान देखने को मिला। वोटों का अंतर महज 10,628 था, और यही वो आंकड़ा था जिसने इस क्षेत्र की सियासत में हलचल मचा दी। केसरिया विधानसभा क्षेत्र के चुनावी समीकरण एक रहस्य से कम नही है।
यहां के लोग किसी विशेष पार्टी के प्रति उतने प्रतिबद्ध नहीं होते जितना कि हर चुनाव के परिणाम से अंदाजा लगाया जा सकता है। एक चुनाव में राजद और दूसरी में भाजपा, तो तीसरे में जदयू की जीत यह दर्शाता है कि इस क्षेत्र में वोटर सटीक विचार और उम्मीदों के आधार पर अपना चुनावी फैसला लेते हैं। जातीय समीकरण इस सीट पर मुस्लिम और यादव बड़ी संख्या में हैं।
इसलिए यहां एमवाई समीकरण का जादू चलता रहा रहा और ये राजद के पाले में गिरता है। इसके अलावा कोइरी, राजपूत और ब्राह्मण भी निर्णायक भूमिका में हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में यहां 55 फीसदी वोटिंग हुई थी, जो 2010 से 5 फीसदी ज्यादा थी। पिछले चुनाव में यहां महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले 12 फीसदी ज्यादा रहा था।
केसरिया विधानसभा में अनुसूचित जाति मतदाताओं की संख्या लगभग 30,522 है जो 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 11.4 फीसदी है। यहां अनुसूचित जनजाति मतदाताओं की संख्या लगभग 937 है जो 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 0.35 फीसदी है। वहीं, मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 37,215 है जो मतदाता सूची विश्लेषण के अनुसार लगभग 13.9 फीसदी है।
यहां ग्रामीण मतदाताओं की संख्या लगभग 254, 373 है जो 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 95.01 फीसदी है। जबकि शहरी मतदाताओं की संख्या लगभग 13,360 है जो 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 4.99 फीसदी है।
2020 विधानसभा चुनाव के अनुसार केसरिया विधानसभा के कुल मतदाताओं की संख्या 267733 है। जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1.38 लाख (53.4 फीसदी) है। जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 1.20 लाख (46.5 फीसदी) है। इसमें ट्रांसजेंडर मतदाताओं की संख्या 3 (0.001 फीसदी) है।