बेंगलुरु, 17 मईः कर्नाटक चुनाव की मतगणना के बाद किसी भी राजनीतिक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और इसके बाद तीनों राजनीतिक दलों ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), कांग्रेस, जेडी(एस) सरकार बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। इसके लिए आधी रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाना पड़ा। आखिरकार बीजेपी अपनी सरकार बनाने में कामयाब हो गई और बीएस येदियुरप्पा कर्नाटक के 32वें मुख्यमंत्री चुन लिए गए हैं।
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आधी रात में हुई याचिका पर सुनवाई
सबसे दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस-जेडी(एस) ने सुप्रीम कोर्ट का बुधवार को दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद रात साढ़े तीन बजे तक याचिका पर सुनवाई हुई और बीएस येदियुरप्पा को राहत तो मिल गई, लेकिन एससी ने उनसे विधायकों की लिस्ट मांगी है, जिसमें 24 घंटे का समय दिया गया है और शुक्रवार को मामले पर सुनवाई होगी।
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104 सीटों पर बीजेपी सिमटी
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बहुमत साबित करने के लिए मांगी गई विधायकों की लिस्ट को अगर बीजेपी मुहैया नहीं करा पाई तो कुर्सी का संकट खड़ा हो सकता है और 24 घंटे की भीतर ही बीजेपी की सरकार जा सकती है। दरअसल, बीजेपी को बहुमत का जादुई आंकड़ा छूने के लिए 112 सीटों की जरूरत है और वह थोड़ा पीछे 104 सीटों पर सिमट गई। कांग्रेस को 78 और जेडीएस+ को 38 सीटें मिली हैं, जबकि बसपा के खाते में 1 और अन्य के खाते में 2 सीटें गई हैं।
तीन जजों की बेंच कर रही याचिका पर सुनवाई
बता दें, याचिका कांग्रेस ने कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला के उस फैसले के खिलाफ दायर की थी, जिसमें बीजेपी विधायक दल के नेता बीएस येदियुरप्पा को सरकार बनाने का आमंत्रण दिया गया। सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच इस याचिका पर सुनवाई कर रही है। इस बेंच में जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए बोबडे शामिल हैं। इसके अलावा कांग्रेस की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी और केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पक्ष रखेंगे।
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कांग्रेस ने बताया राज्यपाल की भूमिका को शर्मनाक
इधर, कांग्रेस पार्टी ने राज्यपाल की भूमिका को शर्मनाक बताया। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अमित शाह पर भी सवाल उठाए। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने यह भी कहा कि राज्यपाल के 'इस अनैतिक और असंवैधानिक' निर्णय के खिलाफ पार्टी सभी कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल करेगी और जनता की अदालत में भी जाएगी। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्यपाल ने संविधान की बजाय 'भाजपा में अपने मालिकों' की सेवा चुनी और 'भाजपा की कठपुतली' के तौर पर काम किया।