कर्नाटक में खुद को दोहरा रहा है इतिहास, एसआर बोम्मई मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था ऐतिहासिक फैसला
By स्वाति सिंह | Published: May 17, 2018 08:42 AM2018-05-17T08:42:41+5:302018-05-17T12:03:25+5:30
कर्नाटक में सरकार बनाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आधी रात को हुई सुनवाई।
बेंगलुरु, 16 मई: कर्नाटक विधानसभा 222 सीटों के नतीजें सामने आने के बाद शुरू हाई वोल्टेज ड्रामा आज थम सकता है। बीएस येदियुरप्पा को सीएम की शपथ दिलाई जाएगी। गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को 104 कांग्रेस 78 और जेडीएस 37, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) एक, केपी जनता पार्टी एक को सीट मिली है। एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार को जीत मिली है। नतीजों के बाद कांग्रेस जेडीएस का साथ दे रही है। हालांकि अभी तक राज्यपाल ने कांग्रेस+जेडीएस के दावे को दरकिनार कर बीजेपी को सरकार बनाने के लिए न्योता दिया है। इस स्थिति में राज्यपाल की भूमिका और संविधान को लेकर बीती रात कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और सुनवाई आधी को शुरू हुई। कर्नाटक के इतिहास में एक बार और ऐसा हुआ था जब सरकार बनाने को लेकर एसआर बोम्मई सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। जानिए, क्या है पूरा मामला।
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क्या है एस आर बोम्मई केस
सितम्बर 1988 में कर्नाटक राज्य में जनता पार्टी और लोक दल पार्टी ने मिलकर एक नई पार्टी जनता दल बनाकर सरकार बनाने का दावा किया था। जनता दल एसआर बोम्मई के नेतृत्व में राज्य की बहुमत वाली पार्टी बनी थी। मंत्रालय में 13 सदस्यों रखा गया। लेकिन इसके दो दिन बाद ही जनता दल विधायक के आर मोलाकेरी ने राज्यपाल के समक्ष एक पत्र पेश किया जिसमे उन्होंने बोम्मई के खिलाफ अर्जी थी। उन्होंने अपने पत्र के साथ 19 अन्य विधायकों की सहमती पत्र भी जारी किया था।
इसके बाद राज्यपाल पी वेंकटसुबैया ने राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट भेजी जिसमें कहा गया था कि सत्ताधारी पार्टी के कई विधायक उससे खफा हैं। राज्यपाल ने आगे लिखा था कि विधायकों द्वारा समर्थन वापस लेने के के बाद मुख्यमंत्री बोम्मई के पास बहुमत नहीं बचता है जिससे उन्हें सरकार बनाने नहीं दिया जा सकता, वह संविधान के खिलाफ था और उन्होंने राष्ट्रपति से भी सिफारिश की थी कि वह उन्हें अनुच्छेद 356 (1) के तहत शक्ति का प्रयोग करें।
हालांकि कुछ दिन बाद ही उन्नीस विधायक जिनके हस्ताक्षर के बल पर असंतोष प्रस्ताव पेश किया गया था उन्होंने यह दावा किया कि पहले पत्र में उनके हस्ताक्षर जाली थे और उन्होंने फिर से अपने गठबंधन को समर्थन देने की पुष्टि की। इसके बाद मामले को लेकर कोर्ट में याचिका दाखिल की गई।
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क्या था बोम्मई केस में कोर्ट का फैसला
11 मार्च 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इसको बोम्मई जजमेंट के नाम से जाना जाता है। कर्नाटक के सीएम रामकृष्ण हेगड़े के फोन टेंपिंग मामले में फंसने के बाद एसआर बोम्मई ने सरकार बनाई थी। लेकिन राज्यपाल ने उन्हें बहुमत खो चुकने की आशंका पर बर्खास्त कर दिया था। इस पर कोर्ट ने कहा कि किसी भी राज्य सरकार के बहुमत का फैसला राष्ट्रपति भवन-राजभवन के बजाय विधानमंडल में हो, इसके बाद कोर्ट ने आगे कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाने से पहले राज्य सरकार को शक्ति परीक्षण का मौका देना होगा।'
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अन्य मामले
इसके बाद कर्नाटक के राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने साल 2009 में बीजेपी सरकार को बर्खास्त कर दिया था। तब केंद्र यूपीए की सरकार थी। कभी यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे हंश भारद्वाज की नियुक्ति यूपीए सरकार ने ही की थी। राज्यपाल ने तब बीएस येदियुरप्पा पर गलत तरीके से बहुमत हासिल करने के आरोप लगाते हुए उन्हें दोबारा बहुमत साबित करने को कहा था।