लाइव न्यूज़ :

ब्लॉग: समान नागरिक संहिता का विरोध करना उचित नहीं

By अवधेश कुमार | Updated: June 19, 2023 15:15 IST

विश्व के अधिकतर देशों में समान नागरिक कानून लागू है. हमारे संविधान निर्माताओं ने यूं ही भारत में समान नागरिक संहिता की वकालत नहीं की. संविधान सभा में स्वयं डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर ने इसकी जबरदस्त पैरवी की थी.

Open in App

विधि आयोग द्वारा समान नागरिक संहिता या कॉमन सिविल कोड पर फिर से आम लोगों और धार्मिक संस्थाओं आदि का सुझाव मांगना स्पष्ट करता है कि अब इसके साकार होने का समय आ गया है. पिछले वर्ष ही गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि अब कॉमन सिविल कोड की बारी है. उसी समय लग गया था कि केंद्र सरकार इस दिशा में आगे बढ़ चुकी है. उत्तराखंड सरकार ने इसके लिए एक समिति का गठन किया था. 

उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी समान नागरिक संहिता की बात की. फिर असम सरकार ने भी इसकी घोषणा की. कुल मिलाकर केंद्र और प्रदेश की भाजपा सरकारों की ओर से धीरे-धीरे यह संदेश दिया जाता रहा है कि हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत के लिए जिस समान नागरिक कानून का सपना देखा और संविधान में उसे शामिल किया, उसको साकार करने का कार्य नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार भी और राज्यों की भाजपा सरकारें भी करने जा रही हैं. 

मोदी सरकार ने इस दिशा में काफी पहले ही पहल कर दी थी. विधि आयोग ने 7 अक्तूबर 2016 को समान नागरिक संहिता पर राय मांगी थी. इसके बाद 19 मार्च, 2018 और फिर 27 मार्च, 2018 को भी सलाह मांगी गई थी. ध्यान रखिए 31 अगस्त, 2018 को विधि आयोग ने फैमिली लॉ यानी परिवार कानून के सुधार की अनुशंसा भी की थी.

जानकारी के अनुसार विधि आयोग के पास करीब 70 हजार सुझाव आए थे. ऐसा लगता है केंद्र सरकार ने संसद में विधेयक लाने के पहले एक बार फिर जनता और धार्मिक संगठनों के साथ जाने का मन बनाया है. चूंकि पिछले कुछ समय में इस पर काफी बहस हुई एवं न्यायालयों की भी टिप्पणियां आई हैं, इस कारण विधि आयोग ने फिर से कंसल्टेशन पेपर यानी सलाह प्रपत्र जारी किया है. उसने कहा है कि उस कंसल्टेशन पेपर को जारी हुए काफी समय बीत चुका है इसलिए हम नया जारी कर रहे हैं. निस्संदेह, इसके समर्थकों एवं विरोधियों दोनों का दायित्व बनता है कि अपना मत विधि आयोग के समक्ष रखें.

विश्व के अधिकतर देशों में समान नागरिक कानून लागू है. हमारे संविधान निर्माताओं ने यूं ही भारत में समान नागरिक संहिता की वकालत नहीं की. संविधान सभा में स्वयं डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर ने इसकी जबरदस्त पैरवी की तथा उनके साथ कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, ए. कृष्णस्वामी अय्यर जैसे नेताओं ने भी इसकी वकालत की. इसी कारण संविधान के चौथे भाग में लिखित नीति निर्देशक तत्व में इसे स्थान मिला. इसे एक त्रासदी कहा जाएगा कि स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी संविधान निर्माताओं का यह महान सपना साकार नहीं हो सका.

टॅग्स :अमित शाहउत्तराखण्डकेशव प्रसाद मौर्याउत्तर प्रदेश
Open in App

संबंधित खबरें

भारत'अमित शाह ने बंगाल में राष्ट्रपति शासन का आधार तैयार करने के लिए SIR का इस्तेमाल किया', ममता बनर्जी ने लगाया आरोप

ज़रा हटकेVIDEO: सीएम योगी ने मोर को अपने हाथों से दाना खिलाया, देखें वीडियो

भारतयूपी में निजी संस्थाएं संभालेंगी 7,560 सरकारी गोआश्रय स्थल, पीपीपी मॉडल पर 7,560  गोआश्रय स्थल चलाने की योजना तैयार

भारतमुजफ्फरनगर की मस्जिदों से 55 से ज्यादा लाउडस्पीकर हटाए गए

क्राइम अलर्टEtah Accident: तेज रफ्तार ट्रक का कहर, दो मोटरसाइकिल को मारी टक्कर, तीन लोगों की मौत

भारत अधिक खबरें

भारतशशि थरूर को व्लादिमीर पुतिन के लिए राष्ट्रपति के भोज में न्योता, राहुल गांधी और खड़गे को नहीं

भारतIndiGo Crisis: सरकार ने हाई-लेवल जांच के आदेश दिए, DGCA के FDTL ऑर्डर तुरंत प्रभाव से रोके गए

भारतबिहार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र हुआ अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित, पक्ष और विपक्ष के बीच देखने को मिली हल्की नोकझोंक

भारतBihar: तेजप्रताप यादव ने पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास के खिलाफ दर्ज कराई एफआईआर

भारतबिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम हुआ लंदन के वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज, संस्थान ने दी बधाई