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आईआईए के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर जगदेव सिंह ने आदित्य एल-1 पर दी अहम जानकारी, कही ये बात

By अनुभा जैन | Updated: September 1, 2023 17:32 IST

प्रोफेसर जगदेव सिंह ने कहा कि जो डेटा वीईएलसी द्वारा आईआईए और अंततः इसरो को भेजा जाएगा, वह अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांतों को बनाने के लिए महत्वपूर्ण अवलोकन होगा।

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बेंगलुरु:चंद्रयान-3 की सफलता के बाद इसरो द्वारा सूर्य पर आदित्य एल 1 भेजा जा रहा है। इस मौके पर आईआईए के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर जगदेव सिंह ने कहा, "आदित्य एल-1 सूर्य और सौर कोरोना का अवलोकन करने वाला इसरो का पहला भारत अंतरिक्ष मिशन होगा।"

उन्होंने कहा कि छह अन्य पेलोड के साथ, आदित्य एल-1 पर सबसे बड़ा और तकनीकी रूप से सबसे चुनौतीपूर्ण सातवां पेलोड विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (वीईएलसी) है।

इसका वजन 190 किलोग्राम है जो 240 किलोग्राम वाले आदित्य एल1 में सबसे भारी पेलोड है जिसको इसरो के पर्याप्त सहयोग से इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्टरोफिसिक्स (आईआईए) द्वारा डिजाइन और निर्मित किया गया है।  

आईआईए के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर जगदेव सिंह ने आज बेंगलुरु में आईआईए परिसर में लोकमत टाइम्स की प्रतिनिधि अनुभा जैन से बातचीत की। 

आज बेंगलुरु के आईआईए परिसर में वीईएलसी के बारे में जानकारी देने के लिये हुयी प्रेस वार्ता के लिए आईआईए के कुछ अन्य प्रमुख वैज्ञानिक और इंजीनियर भी उपस्थित थे।यह उल्लेख करना उचित है कि वीईएलसी एक आंतरिक रूप से बना कोरोनोग्राफ है जिसके अंदर 40 अलग-अलग ऑप्टिकल तत्व हैं जो

सटीक रूप से संरेखित हैं। वीईएलसी एक उपकरण है जो सूर्य की डिस्क से प्रकाश को काटता है और इस प्रकार हर समय बहुत धुंधले कोरोना की छवि बना सकता है।

अनुभा जैन द्वारा यह पूछे जाने पर कि मिशन अन्य समान परियोजनाओं से कैसे अलग होगा, प्रोफेसर सिंह ने कहा, “इससे पहले 1995 में यूएसए ने एल1 में एक उपग्रह लॉन्च किया था लेकिन एकत्र किया गया डेटा एक अलग तरह का था। आदित्य एल-1 के जरिये हम 24 घंटे सूर्य का अवलोकन करेंगे।

आदित्य एल1 को ऐसे गुरुत्वाकर्षण बिंदु पर लॉन्च किया जाएगा जहां सूर्य और पृथ्वी तटस्थ होंगे। हर मिनट चित्र निर्मित किये जायेंगे। हालाँकि, सबसे महत्वपूर्ण को फ़िल्टर किया जाएगा और आईआईए को वापस भेजा जाएगा।

एक दिन में अधिकतम 1400 चित्र प्राप्त होंगे। वीईएलसी द्वारा आईआईए और अंततः इसरो को जो डेटा दिया जाएगा, वह प्रमुख अवलोकन होगा जिसके माध्यम से अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांत बनाए जाएंगे।

आदित्य एल1 को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में सूर्य के इतने करीब स्थापित करने की योजना है, जो पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर है। इससे बिना किसी रुकावट के हर समय सूर्य का अवलोकन किया जा सकेगा।

उन्होंने आगे कहा, “प्लाज्मा में उत्सर्जन रेखाओं को मिश्रित करके तस्वीरें प्राप्त की जाएंगी और इसके कारण हम सटीक भविष्यवाणी कर सकते हैं। वीईएलसी के माध्यम से हम विभिन्न मौसम स्थितियों और तापमानों में सौर कोरोना प्लाज्मा को पढ़ेंगे।“

मिशन की प्रमुख चुनौतियों के बारे में पूछने पर आउटरीच अनुभाग के प्रमुख और आईआईए, बेंगलुरु के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. निरुज मोहन रामानुजम ने अनुभा जैन को बताया कि एल1 तक पहुंचना और उपग्रह को हेलो कक्षा में स्थापित करना सबसे बड़ी चुनौती थी।

सभी सात पेलोड की अलग-अलग आवश्यकताएं और अलग-अलग चुनौतियाँ हैं। इसलिए, पेलोड को एक साथ और व्यक्तिगत रूप से प्रबंधित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। आणविक संदूषण या मॉलिक्युलर कंटेमिनेशन से बचना, पेलोड के बीच डीगैसिंग; तापमान समायोजन; वीईएलसी को असेंबल करना; और संरेखण या अलाइंमेंट अन्य जटिल कठिनाईयां थीं।

जब अनुभा जैन ने एल1 कक्षा तक पहुंचने की कुल अवधि और पहली छवि कब आने की उम्मीद है, के बारे में पूछा, तो प्रोफेसर जगदेव सिंह ने कहा कि हम फरवरी 2024 के अंत तक नियमित डेटा प्राप्त करने की उम्मीद कर रहे हैं।

छह पेलोड खुलेंगे और पहले अपना काम करना शुरू करेंगे और उसके अनुसार, अंतिम लेकिन महत्वपूर्ण पेलोड वीईएलसी खुलेगा और फिर काम करना शुरू करेगा।

उन्होंने कहा कि आदित्य एल1 को पहुंचने में 100 से ज्यादा दिन लगेंगे। उन्होंने आगे कहा कि प्राप्त आंकड़ों का भारतीय समुदाय द्वारा विश्लेषण किया जाएगा और छह महीने या उसके बाद इसे दुनिया भर के अन्य वैज्ञानिकों और लोगों के लिए खोल दिया जाएगा।

डॉक्टर निरुज मोहन रामानुजम ने बताया कि चार डिटेक्टरों, एक 190 मिमी गोलाकार दर्पण और अन्य महत्वपूर्ण भागों से बना वीईएलसी 90 प्रतिशत भारत में निर्मित उत्पाद है और 10 प्रतिशत हिस्से अन्य विक्रेताओं से आयात किए गये हैं।

अन्य आईआईए के मौजूद वरिष्ठ वैज्ञानिकों और इंजीनियरों में डॉक्टर वेमारेड्डी पंडिती, प्रो.बी.रवींद्र, एस.नागबुशाना, अमित कुमार, डॉक्टर शशिकुमार राजा, डॉक्टर वी.मुथु प्रियल, एस.कथिरावन और समृद्धि मैती सहित कई शोध विद्वान शामिल थे।

टॅग्स :इसरोभारतचंद्रयान-3Bangalore
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