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'लिव-इन रिलेशनशिप' में जाने से पहले पुरुष ने अपनी वैवाहिक स्थिति स्पष्ट की हो तो यह धोखा नहीं, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने सुनाया अहम फैसला

By शिवेन्द्र कुमार राय | Updated: May 1, 2023 13:42 IST

'लिव-इन रिलेशनशिप' पर कलकत्ता उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसला देते हुए कहा कि अगर 'लिव-इन रिलेशनशिप' में जाने से पहले पुरुष ने अपनी वैवाहिक स्थिति और पितृत्व के बारे में महिला पार्टनर के सब कुछ स्पष्ट तौर पर बता दिया हो तो इसे धोखा देना नहीं कहा जाएगा।

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ठळक मुद्दे'लिव-इन रिलेशनशिप' पर कलकत्ता उच्च न्यायालय का अहम फैसलावैवाहिक स्थिति और पितृत्व के बारे में स्पष्ट करने के बाद रिश्ते में जाना धोखा नहींकलकत्ता उच्च न्यायालय ने निचली अदालत का फैसला पलटा

कोलकाता: कलकत्ता उच्च न्यायालय ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि अगर  'लिव-इन रिलेशनशिप' में जाने से पहले पुरुष ने अपनी वैवाहिक स्थिति और पितृत्व के बारे में महिला पार्टनर के सब कुछ स्पष्ट तौर पर बता दिया हो तो इसे धोखा देना नहीं कहा जाएगा। इसके साथ ही कलकत्ता उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के उस फैसले को पलट दिया जिसमें एक होटल के कार्यकारी अधिकारी पर "धोखाधड़ी" के लिए 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था।

निचली अदालत ने जिस होटल कर्मचारी पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था, उस पर शादी से मुकर कर रिश्ता तोड़ने का आरोप था। आरोपी ने 11 महीने तक 'लिव-इन रिलेशनशिप' में रहने के बाद महिला से रिश्ता तोड़ लिया था।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ रॉय चौधरी ने अपने फैसले में कहा कि आईपीसी की धारा 415 द्वारा "धोखाधड़ी" को  परिभाषित किया गया है। जानबूझकर की गई बेईमानी या प्रलोभन देकर अपना काम निकालने को धोखाधड़ी माना जाएगा। इस केस में यह साबित करने की आवश्यकता थी कि आरोपी ने थ यौन संबंध बनाने के लिए शादी का झूठा वादा किया था। 

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ रॉय चौधरी ने अपने फैसले में कहा, "यदि कोई व्यक्ति अपनी वैवाहिक स्थिति और पितृत्व को नहीं छिपाता है, तो यह ऐसे रिश्तों में अनिश्चितता का एक तत्व पेश करता है। अगर पीड़िता ने जानबूझकर अपने रिश्ते की शुरुआत में ही अनिश्चितता के जोखिम को स्वीकार कर लिया, तो यह "धोखाधड़ी" नहीं हो सकता।  यदि तथ्यों को छिपाया नहीं गया है, जिसके परिणामस्वरूप धोखा हुआ है तो धोखाधड़ी का आरोप साबित नहीं किया जा सकता है।"

कलकत्ता उच्च न्यायालय में अलीपुर अदालत द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ एक अपील पर सुनवाई हो रही थी। निचली अदालत ने आरोपी पर अपनी लिव-इन-पार्टनर से शादी का वादा कर के यौन संबंध बनाने के आरोप में 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। इसमें से 8 लाख रुपये उसकी साथी को और बाकी 2 लाख सरकारी खजाने को भुगतान किया जाना था। 

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