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इन्द्र कुमार गुजराल पुण्यतिथि विशेषः मंत्री का पद गंवा दिया था लेकिन संजय गांधी के सामने नहीं झुके

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: November 30, 2018 07:40 IST

संजय गांधी चाहते थे कि जो लोग दिल्ली आ रहे हैं उनके बारे में एक विस्तृत कवरेज दूरदर्शन पर चाहते थे। उस वक्त समाचार आदान प्रदान में दूरदर्शन की प्रमुख भूमिका होती थी। तब संजय गांधी ने यह अनुमति तत्काल सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंद्र कुमार गुजराल से मांगी।

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भारत के 13वें प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल का शुक्रवार को पुण्यतिथि है। उनका 30 नवंबर 2012 को निधन हो गया था। गुजराल का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब (अब पाकिस्तान, लाहौर) में हुआ था। उनके अवतार नारायण और मां पुष्पा गुजराल ने उनकी शिक्षा-दीक्षा बड़े स्कूलों से कराई। डीएवी कालेज व हैली कॉलेज ऑफ कामर्स और फॉर्मन क्रिश्चियन कॉलेज लाहौर से पढ़ाई के दौरान वे आजादी के आंदोलन से प्रभावित हो गए थे। वे एक मेधावी छात्र हुआ करते थे।

साल 1942 में वे "अंग्रेजो भारत छोड़ो" आंदोलन के तहत जेल भी गए। वहीं से आईके गुजराल का राजनीति से ताल्लुक हो गया। नतीजतन शिक्षा की तरह ही वे राजनीति में भी शीर्ष तक पहुंचे। वे 21 अप्रैल 1997 को भारत के 13वें पीएम चुने गए। लेकिन इससे पहले उन्होंने कई दूसरी सरकारों में केंद्रीय मंत्र‌िमंडल का हिस्सा रहे।

असल में पढ़ाई और राजनीति के बीच उनके जीवन का एक हिस्सा बीबीसी की हिन्दी सेवा में एक पत्रकार के रूप में भी बीता। इसीलिए जब 1971 में इंदिरा गांधी की सरकार बनी तो उन्होंने इंद्र कुमार गुजराल को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी दी।

लेकिन साल 1975 में विवादों से घिरी अपनी मां को बचाने के लिए इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी उत्तर प्रदेश से ट्रकों में भरकर अपनी लोगों दिल्ली ला रहे थे। वे अपनी मां के पक्ष में एक बड़ा प्रदर्शन कर पूरे भारत को यह विश्वास दिलाना चाहते थे कि देश की जनता उनकी मां के साथ है।

संजय गांधी चाहते थे कि जो लोग दिल्ली आ रहे हैं उनके बारे में एक विस्तृत कवरेज दूरदर्शन पर चाहते थे। उस वक्त समाचार आदान प्रदान में दूरदर्शन की प्रमुख भूमिका होती थी। तब संजय गांधी ने यह अनुमति तत्काल सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंद्र कुमार गुजराल से मांगी।

लेनिक गुजराल ने ऐसा करने से मना कर दिया। इसका खामियाजा उन्हें सूचना एवं प्रसारण मन्त्री पद गंवा कर भुगतना पड़ा। उनकी जगह पर विद्याचरण शुक्ल को यह पद सौंप दिया गया। लेकिन वे संजय गांधी के सामने नहीं झुके।

पेंगुइन बुक्स इण्डिया और हे हाउस, इण्डिया की ओर से प्रकाशित हुई उनकी बायोग्राफी "मैटर्स ऑफ डिस्क्रिशन: एन ऑटोबायोग्राफी" में उन्होंने कई राजनैतिक खुलासे किए थे। इसमें उन्होंने साल 1980 में कांग्रेस से इस्तीफा देने और जनता दल में शामिल होने से लेकर पीएम के कार्यकाल के दौर के कई खुलासे किए थे। 

गुजराल शेरो-शायरी में रखते थे दिलचस्पी

पूर्व पीएम गुजराल की शिक्षा को लेकर चर्चा रहती थ। वे हिन्दी-उर्दू समेत कई भाषाओं के जानकार थे। बताया जाता है कि वे शेरो-शायरी भी खूब करते थे। उन्होंने संसद की कार्यवाहियों के बीच भी शेरो-शायरी करते थे। 30 नवंबर, 2012 को उनका गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया।

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