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उल्फा के साथ वार्ता शुरू करने को बीच का रास्ता खोजे जाने की उम्मीद: हिमंत बिस्व सरमा

By भाषा | Updated: July 3, 2021 18:15 IST

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नयी दिल्ली, तीन जुलाई असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने शनिवार को कहा कि वह प्रतिबंधित उल्फा के साथ शांति वार्ता शुरू करने के लिए एक बीच का रास्ता खोजने को लेकर आशान्वित हैं क्योंकि उग्रवादी संगठन मांग करता रहा है कि वार्ता ‘‘संप्रभुता’’ के आसपास केंद्रित होनी चाहिए, जबकि उन्होंने भारत की ‘‘संप्रभुता’’ की रक्षा करने की शपथ ली थी।

सरमा ने कहा कि अगर उल्फा और सरकार को कोई सम्मानजनक स्थिति मिल जाए तो बातचीत शुरू हो सकती है।

उन्होंने कहा, ‘‘हम एक बहुत ही अजीब स्थिति में हैं। (उल्फा प्रमुख) परेश बरुआ (असम की) संप्रभुता के मुद्दे पर बात करना चाहते हैं, जबकि मैंने देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है। बातचीत शुरू करने के लिए या तो उन्हें अपना रुख बदलना होगा या मुझे अपनी शपथ का उल्लंघन करना पड़ेगा।’’

उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘चूंकि परेश बरुआ अपना रुख नहीं बदल रहे हैं और अगर मैं अपनी शपथ का उल्लंघन करता हूं तो मुझे अपना पद छोड़ना होगा, हमें बीच का रास्ता खोजना होगा।’’

सरमा ने कहा कि ‘‘कुछ लोग’’ बरुआ से बात कर रहे हैं ताकि वह बातचीत की मेज पर आ सकें। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे उम्मीद है कि कुछ ऐसा मिल सकता है जिससे हम शांति वार्ता शुरू कर सकें।’’

सरमा ने कहा कि वह बरुआ की मजबूरी को समझते हैं लेकिन साथ ही उल्फा प्रमुख को भी उनकी (मुख्यमंत्री की) मजबूरी को समझनी चाहिए।

सरमा ने शपथ लेने के बाद 10 मई को बरुआ के नेतृत्व वाले उल्फा के कट्टरपंथी धड़े से शांति वार्ता के लिए आगे आने और राज्य में तीन दशक से अधिक पुरानी उग्रवाद समस्या को हल करने की अपील की थी।

इस सप्ताह की शुरुआत में मुख्यमंत्री ने गुवाहाटी में पीटीआई-भाषा से कहा कि उल्फा के साथ शांति वार्ता तभी आगे बढ़ सकती है जब वह संप्रभुता को छोड़कर अन्य मुद्दों और शिकायतों पर चर्चा के लिए तैयार हो।

सरमा ने कहा था कि कई नेक इरादे वाले लोग हैं जो इस मुद्दे पर उल्फा प्रमुख के साथ काम कर रहे हैं ताकि उन्हें शब्द (संप्रभुता) को शामिल करने पर जोर दिए बिना कुछ ठोस पर चर्चा करने के लिए मना सकें।

उन्होंने कहा, ‘‘यह शब्द हमारे लिए शब्दावली नहीं है, बल्कि पवित्र है और हम शपथ लेते हैं कि हमारी संप्रभुता की रक्षा करना और अपनी भूमि का एक इंच भी नहीं देना हमारा कर्तव्य है। उनके लिए भी एक मजबूरी है, इसलिए एक निश्चित परिभाषा पर पहुंचने की आवश्यकता है जो संबंधित दोनों के मुद्दों का समाधान कर सके।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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