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उच्च न्यायालय ने बलात्कार मामले में मुंबई के पत्रकार को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण दिया

By भाषा | Updated: April 9, 2021 14:16 IST

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नयी दिल्ली, नौ अप्रैल दिल्ली उच्च न्यायालय ने बलात्कार के एक मामले में मुंबई के टीवी पत्रकार को पुलिस की जांच में शामिल होने की शर्त पर शुक्रवार को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान कर दिया।

न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता ने इस मामले में पत्रकार के. वरुण हिरेमठ की अग्रिम जमानत के अनुरोध वाली याचिका पर दिल्ली पुलिस और शिकायतकर्ता महिला को नोटिस जारी कर उनका जवाब मांगा है।

अदालत ने कहा, “याचिकाकर्ता को सुनवाई की अगली तारीख तक गिरफ्तार नहीं किया जाए बशर्ते उसे जब-जब कहा जाए वह जांच में शामिल हो।”

अदालत ने पुलिस से आरोपी द्वारा दिए जाने वाले दस्तावेजों को सत्यापित करने और स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है तथा मामले में अगली सुनवाई 16 अप्रैल को तय की है।

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के माध्यम से अपना पक्ष रख रहे हिरेमठ ने मार्च में निचली अदालत द्वारा अग्रिम जमानत की याचिका खारिज किए जाने के बाद उच्च न्यायालय का रुख किया है।

शिकायतकर्ता, 22 वर्षीय युवती ने आरोप लगाया है कि हिरेमठ ने 20 फरवरी को चाणक्यपुरी में पांच सितारा होटल में उसका बलात्कार किया था।

पत्रकार के वकील ने अदालत में दावा किया कि शिकायकर्ता और आरोपी के बीच पूर्व में शारीरिक संबंध रहा है।

शिकायतकर्ता की तरफ से पेश अधिवक्ता सिद्धार्थ अरोड़ा ने जब अदालत से अपील की कि वह हिरेमठ को किसी तरह की राहत न दे क्योंकि वह पिछले 50 दिन से फरार था तो उच्च न्यायालय ने कहा कि अगर आरोपी के पास यह साबित करने के लिए दस्तावेज हैं कि संबंध दोनों की सहमति से था तो उसे जांच में शामिल होने दिया जाए और पुलिस इसकी पुष्टि करेगी।

अभियोजक तरंग श्रीवास्तव ने दिल्ली पुलिस की तरफ से नोटिस स्वीकार किया।

निचली अदालत ने, अग्रिम जमानत की पत्रकार की याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि आरोपी के साथ शिकायतकर्ता के पूर्व अनुभवों से सहमति की बात निहित नहीं होती है और अगर महिला ने अदालत के समक्ष साक्ष्य में कहा है कि उसकी सहमति नहीं थी तो अदालत को यह मानकर चलना होगा कि उसने सहमति नहीं दी।

निचली अदालत के समक्ष, पत्रकार के वकील ने आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच घनिष्ठ संबंधों को दिखाने के लिए कुछ व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम चैट दिखाई थी।

इसने अपने आदेश में कहा था कि कुछ चैट में कथित अपराध के बाद ‘‘आरोपी को अपनी हरकत के लिए पछतावा होने का भाव” दिखता है।

अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि सहमति और शिकायतकर्ता एवं आरोपी के आचरण जैसे प्रश्न मुकदमे का विषय है और वह सिर्फ अग्रिम जमानत याचिका पर विचार कर रही है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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