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अपना सर्वश्रेष्ठ किया, परिणाम क्या हुआ, नहीं जानता : न्यायमूर्ति बोबडे

By भाषा | Updated: April 23, 2021 21:05 IST

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(पवन कुमार सिंह)

नयी दिल्ली, 23 अप्रैल निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने शुक्रवार को अपनी सेवानिवृत्ति के अवसर पर अपने विदाई संबोधन में कहा, ‘‘मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ किया, क्या परिणाम हुआ, नहीं जानता।’’

न्यायमूर्ति बोबडे ने नवंबर 2019 में प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी और उनका कार्यकाल 17 महीने का था।

उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश नथालपति वेंकट रमण को अगले प्रधान न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया है।

न्यायमूर्ति बोबडे ने अपने कार्यकाल के दौरान ऐतिहासिक अयोध्या फैसले, निजता के अधिकार, संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को चुनौती देने वाली याचिकाओं, टाटा-मिस्त्री मामले, सोन चिरैया (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) के संरक्षण, महाबलेश्वर मुद्दे, उच्च न्यायालयों में तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति और पटाखों पर प्रतिबंध सहित कई महत्वपूर्ण मामलों को देखा।

न्याय प्रदायगी में कृत्रिम मेधा के कट्टर समर्थक रहे न्यायमूर्ति बोबडे ने कानूनी अनुसंधान के साथ न्यायाधीशों की मदद के लिए ‘सुप्रीम कोर्ट पोर्टल फॉर असिस्टेंट इन कोर्ट्स एफिशिएंसी’ शुरू किया।

न्यायमूर्ति बोबडे ने उस पीठ का भी नेतृत्व किया जो सीएए की संवैधानिक वैधता पर विचार करने को सहमत हुई और 22 जनवरी 2020 को स्पष्ट किया कि कानून का क्रियान्वयन रोका नहीं जाएगा । साथ ही पीठ ने केंद्र को याचिकाओं पर जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय दिया।

कुछ महीने बाद मार्च में, प्रधान न्यायाधीश ने उस पीठ का नेतृत्व किया जिसने संकेत दिया था कि सीएए को चुनौती देने वाली 150 से अधिक याचिकाओं को संविधान पीठ को भेजा जाएगा, लेकिन कोविड महामारी की वजह से भौतिक सुनवाई में बाधा के चलते मामला अभी सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं हो पाया है।

न्यायमूर्ति बोबडे ने न्यायपालिका प्रमुख के रूप में अगले आदेशों तक नए कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर भी रोक लगा दी और केंद्र तथा दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों के बीच गतिरोध के समाधान के लिए चार सदस्यीय एक समिति के गठन का फैसला किया।

पिछले साल देश को थाम देने वाली कोविड-19 महामारी के दौरान प्रधान न्यायाधीश बोबडे के नेतृत्व में शीर्ष अदालत ने मामलों की भौतिक सुनवाई की जगह तुरत-फुरत वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए सुनवाई और ई-फाइलिंग प्रणाली शुरू की और साथ ही देश की अन्य अदालतों को यह सुनिश्चित करने का मार्ग दिखाया कि नागरिकों को न्याय निर्बाध रूप से मिले।

उन्होंने उस पीठ का भी नेतृत्व किया जिसने सभी राज्यों को आदेश दिया कि वे महामारी के चलते जेलों में भीड़ कम करने के लिए कुछ कैदियों को पैरोल पर रिहा करने पर विचार करें।

न्यायमूर्ति बोबडे को तब चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा जब उन्हें प्रधान न्यायाधीश मनोनीत एनवी रमण के खिलाफ आरोपों से निपटना पड़ा।

शीर्ष अदालत ने मामले में ‘‘उचित विचार’’ के बाद न्यायमूर्ति रमण के खिलाफ आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई एस जगनमोहन रेड्डी की शिकायत को खारिज कर दिया।

प्रधान न्यायाधीश बोबडे ने उस आंतरिक समिति का भी नेतृत्व किया जिसने पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप को देखा था।

इस समिति में न्यायमूर्ति रमण और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी भी थीं।

न्यायमूर्ति बोबडे पांच न्यायाधीशों की उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे जिसने 1950 से अदालतों में लंबित अयोध्या भूमि विवाद मामले का सर्वसम्मत अंतिम निपटारा कर दिया।

न्यायमूर्ति बोबडे अगस्त 2017 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर के नेतृत्व वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ का भी हिस्सा थे जिसने सर्वसम्मत व्यवस्था दी थी कि निजता का अधिकार संवैधानिक रूप से संरक्षित मौलिक अधिकार है।

महाराष्ट्र के नागपुर में 24 अप्रैल 1956 को जन्मे न्यायमूर्ति बोबडे ने नागपुर विश्वविद्यालय से बीए और एलएलबी की डिग्री प्राप्त की थी। 1978 में वह महाराष्ट्र बार काउंसिल में वकील के रूप में जुड़े।

उन्होंने बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में प्रैक्टिस की थी। वह 29 मार्च 2000 को बंबई उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश बने थे।

न्यायमूर्ति बोबडे ने 16 अक्टूबर 2012 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी। 12 अप्रैल 2013 को वह उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बने थे।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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