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बिहार में कई जिलों में 10 फीट तक नीचे गया भूजल स्तर, भूजल में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन की मात्रा तय सीमा से ज़्यादा

By एस पी सिन्हा | Updated: December 4, 2025 14:05 IST

रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 31 जिलों के लगभग 26 फीसदी ग्रामीण वार्डों में भूजल में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन की मात्रा तय सीमा से ज़्यादा है।

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पटना: बिहार में पिछले वर्षों की अपेक्षा इस बार अच्छी बारिश होने के बावजूद अभी वरसात समाप्त होते ही कई जिलों का औसत भूजल स्तर काफी नीचे चला गया है। पिछले साल की तुलना में 10 फीट तक भूजल स्तर नीचे गया है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 31 जिलों के लगभग 26 फीसदी ग्रामीण वार्डों में भूजल में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन की मात्रा तय सीमा से ज़्यादा है। यह गिरावट कमज़ोर मानसून और भूजल के अत्यधिक दोहन का परिणाम है और सरकार अब नदियों के पानी को पेयजल के रूप में उपयोग करने की योजना का विस्तार कर रही है। 

रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 की तुलना में भोजपुर में 14.8 फीट पानी नीचे गया है। भोजपुर में अक्टूबर के बाद वर्ष 2019 में 12.1 फीट, 2024 में 17 फीट और 2025 में 26.09 फीट पर भूजल स्तर पहुंच गया है। यही स्थिति राज्य के 18 जिलों की है, जहां पिछले साल के अपेक्षा भूजल स्तर नीचे गया है। 31 अक्टूबर, 2025 के बाद के ग्रामीण क्षेत्रों की यह रिपोर्ट है। उत्तर बिहार के सीतामढ़ी, मधुबनी, गोपालगंज आदि जिलों में वर्ष 2019 की अपेक्षा इस साल भूजल स्तर चार फीट से अधिक नीचे गया है। 

वहीं, लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग (पीएचईडी) की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के लगभग 30,207 ग्रामीण वार्डों के भूजल में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन की मात्रा तय मानक से अधिक है। यह समस्या 38 में से 31 जिलों को प्रभावित कर रही है, जिनमें बक्सर, भोजपुर, सीतामढ़ी, पटना, सारण, वैशाली और दरभंगा जैसे ज़िले शामिल हैं। जानकारों के अनुसार भूजल स्तर में गिरावट के मुख्य कारण तेज औद्योगीकरण, शहरीकरण, कृषि में कीटनाशकों और उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग और सिंचाई के लिए भूजल का अत्यधिक दोहन हैं। 

भूजल के गिरते स्तर को देखते हुए बिहार सरकार पानी की बचत और गुणवत्ता के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने की योजना बना रही है। नदियों के पानी को पेयजल के रूप में उपयोग करने के लिए एक योजना के विस्तार का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया है। लेकिन वर्तमान में इस गिरावट का असर कृषि और घरेलू गतिविधियों पर भी पड़ रहा है और हैंडपंप व सबमर्सिबल के पानी देने की क्षमता भी कम हो गई है।

रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के 26 फीसदी ग्रामीण वार्डों में भूजल में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन की मात्रा तय सीमा से ज्यादा है। विशेषज्ञों के अनुसार पीने के पानी में आर्सेनिक की ज्यादा मात्रा होने से आर्सेनिकोसिस नामक बीमारी हो सकती है। इस बीमारी में त्वचा पर घाव, रंग में बदलाव और हथेलियों और तलवों पर चकत्ते हो जाते हैं। यह बीमारी जानलेवा भी हो सकती है, जिससे त्वचा और आंतरिक अंगों का कैंसर हो सकता है। 

लंबे समय तक आर्सेनिक के संपर्क में रहने से हृदय और मधुमेह संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं। बिहार के 20 जिलों बेगूसराय, भागलपुर, भोजपुर, बक्सर, दरभंगा, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज, कटिहार, खगड़िया, किशनगंज, मधेपुरा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, सारण, शिवहर, सीतामढ़ी, सुपौल और पश्चिमी चंपारण में भूजल में आर्सेनिक पाया गया है। 

विशेषज्ञों के अनुसार लंबे समय तक ज्यादा फ्लोराइड वाला पानी पीने से फ्लोरोसिस नामक बीमारी हो सकती है। इससे दांतों और हड्डियों को नुकसान पहुंचता है। बच्चों के दांतों पर धब्बे पड़ सकते हैं।' बांका, गया, जमुई, नालंदा, नवादा और शेखपुरा जिलों के कुछ हिस्सों में फ्लोराइड की मात्रा 15 मिलीग्राम/लीटर से ज़्यादा पाई गई है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के विश्लेषण के अनुसार, सीवान जिले के भूजल के नमूनों में यूरेनियम की मात्रा 30 पीपीबी से ज़्यादा पाई गई है। 

बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष अशोक कुमार घोष ने कहा कि सारण, भभुआ, खगड़िया, मधेपुरा, नवादा, शेखपुरा, पूर्णिया, किशनगंज और बेगूसराय में भी रेडियोधर्मी यूरेनियम पाया गया है। उन्होंने कहा कि ज्यादा यूरेनियम के संपर्क में रहने से हड्डियों को नुकसान, गुर्दे की समस्याएँ और कैंसर हो सकता है।'

इसके साथ ही बिहार के 33 जिलों में भूजल में आयरन की मात्रा ज्यादा पाई गई है। इन जिलों में अररिया, बांका, बेगूसराय, भभुआ, भागलपुर, भोजपुर, बक्सर, पूर्वी चंपारण, गया, गोपालगंज, जमुई, कटिहार, खगड़िया, किशनगंज, लखीसराय, मधेपुरा, मधुबनी, मुंगेर, मुजफ्फरपुर, नालंदा, नवादा, पटना, रोहतास, सहरसा, समस्तीपुर, सारण, शेखपुरा, शिवहर, सीतामढ़ी, सीवान, सुपौल, वैशाली और पश्चिमी चंपारण शामिल हैं। 

आयरन की ज्यादा मात्रा से एनीमिया हो सकता है और आयरन बैक्टीरिया बढ़ सकते हैं। इसके साथ ही अरवल, भागलपुर, भोजपुर, बक्सर, जहानाबाद, कैमूर, कटिहार, मधेपुरा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, पटना, सहरसा, समस्तीपुर, शिवहर और सीतामढ़ी में नाइट्रेट का स्तर ज्यादा पाया गया है। विशेषज्ञों के अनुसार नाइट्रेट भी पानी में ज़्यादा होने पर नुकसानदायक होता है। नाइट्रेट की ज्यादा मात्रा से शिशुओं में मेथेमोग्लोबिनेमिया, या ब्लू बेबी सिंड्रोम हो सकता है।

टॅग्स :बिहारWater Resources DepartmentWater Resources and Public Health Engineering Department
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