अधिवक्ताओं को हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश बनाये जाने पर सरकार ने लगायी रोक, रोड़ा बनी वार्षिक आय, औसतन होनी चाहिये इतनी कमाई

By भाषा | Published: September 26, 2019 06:38 AM2019-09-26T06:38:51+5:302019-09-26T06:38:51+5:30

सरकारी सूत्रों ने बताया कि फरवरी में कॉलेजियम ने कुछ अधिवक्ताओं को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किए जाने की अनुशंसा की थी। कानून मंत्रालय ने पाया कि इनमें से 10 अभ्यर्थी प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) के आय मानदंड को पूरा नहीं करते।

Govt flags income criteria in collegium recommendation to make advocates as HC judges | अधिवक्ताओं को हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश बनाये जाने पर सरकार ने लगायी रोक, रोड़ा बनी वार्षिक आय, औसतन होनी चाहिये इतनी कमाई

प्रतीकात्मक फोटो

Highlightsएमओपी एक ऐसा दस्तावेज है जो उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की पदोन्नति या स्थानांतरण को निर्देशित करता है।सूत्रों ने बताया कि सरकार ने अब इन अनुशंसाओं पर रोक लगाने का निर्णय किया है।

उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम द्वारा कुछ अधिवक्ताओं को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीशों के तौर पर नियुक्ति किए जाने की अनुशंसाओं के बारे में समझा जा रहा है कि सरकार ने यह कहते हुए रोक लगा दी है कि उनकी वार्षिक पेशेवर आय निर्धारित मानदंड से नीचे है।

बार के किसी अभ्यर्थी जिसे उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किए जाने की अनुशंसा की गई हो, उसे उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किए जाने के लिए उसकी पिछले पांच साल में औसत वार्षिक आय सात लाख रुपये होनी चाहिए।

सरकारी सूत्रों ने बताया कि फरवरी में कॉलेजियम ने कुछ अधिवक्ताओं को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किए जाने की अनुशंसा की थी। कानून मंत्रालय ने पाया कि इनमें से 10 अभ्यर्थी प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) के आय मानदंड को पूरा नहीं करते।

एमओपी एक ऐसा दस्तावेज है जो उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की पदोन्नति या स्थानांतरण को निर्देशित करता है। सूत्रों ने बताया कि सरकार ने अब इन अनुशंसाओं पर रोक लगाने का निर्णय किया है। स्थापित प्रक्रिया के अनुसार उच्च न्यायालय के कॉलेजियम उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त किए जाने वाले अभ्यर्थियों के नाम कानून मंत्रालय के पास भेजते हैं।

अभ्यर्थियों की पृष्ठभूमि पर खुफिया ब्यूरो की रिपोर्ट संलग्न करने के बाद मंत्रालय इसे शीर्ष अदालत के कॉलेजियम को भेजता है। 2018 में भी सरकार ने कम से कम 25 अनुशंसाओं में आय के मानदंड को चिह्नित किया था।

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