कश्मीर में भारतीय दंड संहित की धारा 144 लागू करने और इंटरनेट पर पाबंदी लगाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के कड़े तेवरों वाले फैसले से उत्साहित समूची कांग्रेसमोदी सरकार पर हमलावर हो गई है. पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक के इस्तीफे की मांग करते हुए साफ किया कि न्यायलय ने जो आदेश दिया है वह मोदी सरकार के अहंकार को पूरी तरह खारिज करने वाला है.
उन्होंने मांग की कि अब ऐसे प्रशासकों की नियुक्ति हो जो संविधान का सम्मान करना जानते हों भले ही सत्पाल मलिक अब कश्मीर के राज्यपाल न हों लेकिन उन्हें गोवा के राज्यपाल पद से इस्तीफा दे देना चाहिए क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने उनके तब के फैसलों पर सवाल खड़ा करते हुए सरकार के अहंकार को चूर चूर कर दिया है.
पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने चिदंबरम की तर्ज पर टिप्पणी की और कहा कि 2020 में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला मोदी सरकार पर सबसे बड़ी चोट है क्योंकि अदालत ने इंटरनेट को मौलिक अधिकार करार दिया है.
सुरजेवाला ने यह भी कहा कि दूसरा झटका इस सरकार को धारा 144 को लेकर दिया गया न्यायालय का फैसला है जिसके तहत विरोध के स्वर को अब धारा 144 की आड़ में दबाया नहीं जा सकेगा. उन्होंने मोदी को याद दिलाया कि अब देश संविधान के साथ खड़ा है न कि उनके साथ.
कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि मोदी सरकार लोगों को गुमराह करने की कोशिश में लगी थी लेकिन शीर्ष अदालत में सरकार का कोई दबाव काम नहीं आया. उनका मानना था कि यह पहली बार है जब न्यायालय ने कश्मीर के लोगों की बात को अपने फैसले में उतारा है.
गौरलतब है कि इस दिशा में दायर की गई याचिकाओं की सुनवाई करते हुए तीन सदस्यी पीठ ने एक सप्ताह में सरकार के फैसलों की समीक्षा करने और उन्हें सार्वजनिक करने का हुक्म सुनाया है. इस मामले में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस के सांसद कपिल सिब्बल ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की व्याख्या करते हुए कहा कि अब ऐसी निरंकुश सरकार बिना किसी ठोस कारण के अनिश्चित काल तक न तो धारा 144 लागू कर सकेगी और न ही इंटरनेट पर प्रतिबंध. न्यायालय ने इंटरनेट सेवाओं को मौलिक अधिकारों की श्रेणी में बताकर यह साफ कर दिया है कि संविधान से ऊपर कोई नहीं है. नतीजा अब मोदी सरकार तुगलकी फरमान जारी नहीं कर सकेगी.