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Gandhi Jayanti 2023: बापू 15 अगस्त 1947 को आजादी के जश्न से क्यों थे दूर, जानिए यहां

By आकाश चौरसिया | Updated: October 1, 2023 11:55 IST

15 अगस्त 1947 से दूर होने के पीछे महात्मा गांधी का एक खास मकसद था। इस कारण बापू को 9 अगस्त 1947 को ही दिल्ली से कोलकाता पहुंचना पड़ा। पहुंचते ही उन्होंने शांति मिशन पर काम करना शुरू किया और वो इसमें कामयाब भी हुए।

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ठळक मुद्देबापू अहिंसा और सत्या के रास्ते पर चलने के लिए जाने जाते हैंइस बार उलट महात्मा गांधी ने उपवास का रास्ता चुनाइस मार्ग बापू कामयाब रहे और मिशन को पूरा कर लिया

नई दिल्ली: महात्मा गांधी आमतौर पर तो अहिंसा और सत्य के रास्ते पर चलने के लिए जाने जाते थे। लेकिन, इस बार गांधी जी गुपचुप तरीके से शांति मिशन पर तब के कलकत्ता पहुंच गए। यह शहर पश्चिम बंगाल में आता है। 

इस समय देश का विभाजन हो चुका था और सांप्रदायिक दंगे कलकत्ता के सोदेपुर में अपने चरम पर थे। ऐसे में बापू ने कलकत्ता में जल रही आग को बुझाने की गुहार को स्वीकारते हुए दिल्ली से 9 अगस्त 1947 को सोदेपुर चले गए। 

इस कारण महात्मा गांधी दिल्ली में 15 अगस्त 1947 को झंडा नहीं फहरा सके। महात्मा गांधी स्वतंत्रता दिवस मनाने से पहले ही 9 अगस्त को उस समय के कलकत्ता के सोदेपुर पहुंचे जहां विभाजन के बाद दंगे हो रहे थे। हालांकि, इस दौरान दंगों के बीच मुस्मिल लीग के नेता एच.एस. सुहरावर्दी ने बापू से उन्हें अपना कोलकाता में प्रवास बढ़ाने का अनुरोध किया।

सुहारवर्दी की इस मांग पर बापू ने सहमती इस शर्त पर दी कि अन्य लोग नोआखली में प्रवास करेंगे जिन्हें शांति बहाल करने का काम दिया गया था।

भड़कते दंगों के बीच महात्मा गांधी के रुकने का स्थान माईबगान में स्थित हैदरी मंजिल चुना गया जो बेलेघाटा में आता है। यहां इसलिए बापू रुकना चाहते थे क्योंकि यह एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र में था और दंगे पर सीधे नियंत्रण पाने उन्हें आसानी से कामयाबी मिल सकती थी।   

शांति मिशन पर आए महात्मा गांधी का पता हैदरी मंजिल था जहां उन्होंने 1 सितंबर को सत्याग्रह शुरू किया। बापू ने यह उपवास करीब 73 घंटे तक जारी रखा जिसके बाद दंगा कर रहे नेताओं ने उनके समक्ष हथियार डाल दिए। 

हथियार में मुख्य रूप से तलवारें थी जिन्हें रखकर आत्मसमर्पण कर दिया और महात्मा गांधी से उपवास खत्म करने का सभी ने आग्रह किया।  अब हैदरी मंजिल को संग्राहलय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है और इसे गांधी भवन का नाम दिया गया। 

यहां महात्मा गांधी के जीवन के चित्रण के अलावा भवन में आज भी वह कमरा मौजूद है जहां गांधी जी सत्याग्रह के दौरान रुके थे। गांधी भवन में उनके द्वारा इस्तेमाल की गई निजी वस्तुएं भी हैं। 

साथ ही वह ग्लास भी है जिससे महात्मा गांधी पानी पीते थे यही नहीं गद्दा और तकिया भी मौजूद हैं। महात्मा गांधी जिस छड़ी को लेकर अपने साथ चलते थे वो भी वहां पर रखी हुई है। साथ ही बापू की फटी हुई चप्पलें और कई चरखे भी देखने संग्राहलय में उपस्थित हैं। अब गांधी भवन पूरी तरह से पश्चिम बंगाल सरकार की देखरेख में है।  

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