साल 2019 में राजनीति लिहाज से कई ऐसी घटनाएं हुईं जिसने लोगों को चौंका दिया। फिर चाहे बात महाराष्ट्र चुनाव के बाद कांग्रेस के शिवसेना से हाथ मिलाने की हो या फिर हरियाणा में बीजेपी के जननायक जनता पार्टी से गठबधन की, इन घटनाओं ने साबित कर दिया कि राजनीति में कुछ भी अंतिम नहीं होता। देश की दो प्रमुख पार्टियों की बात करें तो इस साल बीजेपी के लिए साल इस लिहाज से जरूर अच्छा रहा कि उसने एक बार फिर सत्ता में और बड़े बहुमत के साथ वापसी की लेकिन वहीं, कुछ मोर्चों पर उसे मुंह की भी खानी पड़ी।
महाराष्ट्र में बीजेपी को झटका:
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव बीजेपी को वो झटका दे गया जिसके बारे में पार्टी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। शिवसेना और बीजेपी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा और दोनों पार्टियों ने मिलाकर बहुमत हासिल भी की। हालांकि, शिवसेना ने 50-50 फॉर्मूले की मांग रख बीजेपी को मुश्किल में डाल दिया। इस बीच शरद पवार की एनसीपी और कांग्रेस ने शिवसेना से हाथ मिला लिया और महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने।
शरद पवार ने बचाई अपनी पार्टी:
महाराष्ट्र की राजनीति से जुड़ी ये भी घटना कम दिलचस्प नहीं रही। पूरे देश में खलबली मच गई जब एनसीपी के अजीत पवार को 23 नवंबर, 2019 की सुबह लोगों ने उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते देखा। देवेंद्र फड़नवीस को राज्यपाल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई और खबर ये आई कि एनसीपी ने बीजेपी से हाथ मिला लिया है। हालांकि, शरद पवार ने कुछ ही देर में तमाम अटकलों का खंडन किया और कहा कि उन्हें अजीत पवार के इस कदम की जानकारी नहीं थी। शरद पवार जिस मजबूती से अपनी पार्टी को बचाने में कामयाब रहे उसने न केवल एक बार फिर से उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति का कद्दावर नेता स्थापित किया बल्कि बीजेपी की भी खूब किरकिरी हुई। आलम ये हुआ कि फड़नवीस को 24 घंटे के अंदर इस्तीफा देना पड़ा।
कर्नाटक की राजनीति में उठापटक:
कर्नाटक में जेडी (एस) और कांग्रेस के गठबंधन वाली सरकार उस समय गिर गई जब 17 बागी विधायकों ने अपना इस्तीफा सौंप दिया। इसके बाद कुछ विधायक अगले कई दिन तक मुंबई के एक होटल में रहे। इन विधायकों के बीजेपी से संपर्क में रहने के आरोप लगे। इस बीच कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष ने इन्हें अयोग्य घोषित किया। बहरहाल, विश्वास मत प्रस्ताव में सरकार गिर गई। इसके बाद बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने। बाद में ये विधायक बीजेपी में शामिल हो गये और विधायकों के अयोग्य घोषित किये जाने पर खाली हुए सीटों पर उप चुनाव में 15 सीटों पर 12 में बीजेपी जीत हासिल करने में कामयाब रही।
हरियाणा चुनाव:
बीजेपी के लिए महाराष्ट्र अगर एक बड़ा झटका साबित हुआ तो हरियाणा से भी उसे उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिले। 90 सीटों वाले हरियाणा विधानसभा में पार्टी को बहुमत से कम 40 सीटें मिली और उसे सरकार बनाने के लिए दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) से हाथ मिलाना पड़ा। पिछले चुनाव में बीजेपी को 47 सीटें मिली थी। वहीं, कांग्रेस को इस बार हरियाणा चुनाव में 31 सीट मिली। पिछले चुनाव में उसे केवल 17 सीटें मिली थी।
लोकसभा चुनाव 2019:
बीजेपी के लिए ये चुनाव बड़ी सौगात लेकर आया। नरेंद्र मोदी की सरकार पहले से ज्यादा मजबूत होकर वापसी करने में कामयाब रही। अर्थव्यवस्था के बिगड़ते हालात और विपक्षी पार्टियों के बीजेपी विरोध को देखते हुए कई जानकार अंदेश जता रहे थे कि पार्टी अकेले दम पर सरकार बनाने में नाकाम रहेगी। हालांकि, बीजेपी ने सभी राजनीतिक पंडितों को गलत साबित किया और 303 सीट जीतने में कामयाब रही। वहीं, कांग्रेस मिनिमम इनकम गारंटी के बहुचर्चित स्कीम के बावजूद केवल 52 सीट जीतने में कामयाब रही।
लोकसभा चुनाव ममता बनर्जी और बीजेपी की तनातनी:
लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बीजेपी के रिश्तों ने सबसे तल्ख रूप अख्तियार कर लिया। योगी आदित्यनाथ से लेकर अमित शाह की पश्चिम बंगाल में रैली को लेकर खूब बयानबाजी और राजनीतिक ड्रामे हुए। इस बीच समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति तोड़े जाने की घटना ने भी खूब चर्चा बटोरी। हालांकि, बीजेपी सारे मुद्दों को अपने लिए भूनाने में कामयाब रही। नतीजे बीजेपी के लिए उत्साह जगाने वाले रहे। पार्टी ने 40 लोकसभा सीटों वाले पश्चिम बंगाल में 18 सीटों पर कब्जा कर लिया।
गोवा में कांग्रेस पार्टी टूटी
कर्नाटक सियासी संकट के बीच में ही जुलाई 2019 में गोवा कांग्रेस फूट हो गई। गोवा में कांग्रेस पार्टी के 15 विधायकों में 10 ने पाला बदलकर बीजेपी ज्वाइन कर लिया।
जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की मियाद बढ़ी
12 जून 2019 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की मियाद छह महीने के लिए बढ़ा दी। राज्य में 20 जून 2018 से राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2014 में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने पर बीजेपी ने पीडीपी संग मिलकर सरकार बनाई थी। जून 2018 में दोनों पार्टी में मतभेद के चलते महबूबा मुफ्ती सरकार चल नहीं पाई। बीजेपी के समर्थन वापस लेने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इस्तीफा दे दिया।
झारखंड चुनाव से पहले बीजेपी की 19 साल पुरानी सहयोगी पार्टी ने आजसू ने छोड़ा साथ
झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 में बीजेपी की सहयोगी पार्टी ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) का साथ टूट गया। सीट बंटवारे के मुद्दे पर बात नहीं बनी जिसके चलते 19 साल पुराने सहयोगियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। आजसू प्रमुख 19 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन बीजेपी सिर्फ 9 सीटें देने के लिए राजी थी। झारखंड विधानसभा चुनाव 2014 में बीजेपी 37 सीटों पर जीतने में सफल रही थी जबकि आजसू ने पांच सीटों पर पताका लहराया। बहुमत के आंकड़े से कुछ दूर रह गई बीजेपी ने आजसू के साथ सरकार बनाई।
नागरिकता कानून को लेकर असम में बीजेपी की सहयोगी पार्टी एजीपी नाराज
नागरिकता कानून का असम सहित पूर्वोत्तर में भारी विरोध हो रहा है। असम में बीजेपी की सहयोगी पार्टी एजीपी भी उससे नाराज है। सत्तारूढ़ भाजपा की सहयोगी असम गण परिषद् (एजीपी) ने 15 दिसंबर को कहा कि वह उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर संशोधित नागरिकता कानून को वापस लेने की मांग करेगी।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने जगन मोहन रेड्डी
मार्च, 2011 में जगन ने वाईएसआर कांग्रेस के रूप में अपनी पार्टी का गठन कर लिया। इसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और राजनीतिक करियर में आगे बढ़ते हुए अंतत: वह 2019 मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए हैं।