दिल्ली: नेशनल कांफ्रेंस चीफ और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने अरूणाचल प्रदेश के तवांग में उपजे भारत-चीन विवाद के बीच अन्य पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ खराब संबंधों के लिए मोदी सरकार को खूब खरी-खोटी सुनाई। किसी जमाने में एनडीए के साथ रहते हुए भाजपा के साथ दोस्ती निभाने वाले फारूक अब्दुल्ला ने कश्मीर के हालात के लिए भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए आरोप लगाया कि जब तक दोनों मुल्क (भारत-पाकिस्तान) डायलॉग नहीं शुरू करेंगे कश्मीर में कभी भी अमन की बहाली नहीं हो सकेगी।
पूर्व केंद्रीय मंत्री फारूक अब्दुल्ला ने मोजूदा केंद्र सरकार पर संवाद हीनता का आरोप लगाते हुए समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, "पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्ते जब तक बेहतर नहीं होंगे, तब तक हम भारत में कभी भी शांति नहीं देख पाएंगे। हम मुसलमानों को आगे आते हुए नहीं देख पाएंगे क्योंकि मुसलमानों को देशद्रोही माना जाता है। हम देशद्रोही नहीं हैं, किसी अन्य की तरह हम भी भारतीय हैं।"
अपने आरोप के संदर्भ में मुसलमानों की स्थिति पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि आज के हालात में भला किस तरह से मुसलमान कोई पहल करने की सोच सकता है, जब उसे देशद्रोही के नजरिये से देखा जाता हो। पूर्व सीएम अब्दुल्ला ने काफी कड़े शब्दों में कहा कि मुसलमानों को देशद्रोही मानने की भूल न की जाए, वो भी इस वतन के लिए उतने ही वफादार हैं, जितने की और दूसरे हैं।
मालूम हो फारूक अब्दुल्ला ने बीते दिनों भाजपा पर परोक्ष हमला करते हुए कश्मीर में कहा था कि वो लोग ये न समझें कि राम केवल उन्हीं के हैं। राम सभी के हैं और सब राम के हैं। हिंदू-मुस्लिम के बीच दीवार खड़ी करके किसी को फायदा नहीं होने वाला है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग भगवान राम की बात करते हैं तो मैं उनसे कहना चाहता हूं, भगवान राम विश्व के भगवान हैं। भगवान राम सबके हैं और सभी राम के हैं। कोई भी मजहब नहीं कहता कि बेईमानी करो, चोरी करो, रेप करो। सभी धर्म हमें सच के रास्ते पर चलने के लिए कहते हैं और जो भी अपने धर्म का सच्चे मन से पालन करता है, वो दूसरे के धर्म से नफरत नहीं कर सकता है, क्योंकि किसी भी धर्म में नफरत के लिए कोई जगह नहीं है।
फारूक अब्दुल्ला ने केंद्र द्वारा धारा 370 को खत्म करने और सूबे को विभाजित करने पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि जम्मू-कश्मीर राज्य के दर्जे को दोबारा बहाल किया जाए, ताकि लोगों को उनका वाजिब हक मिल सके। अब्दुल्ला ने कहा कि 1947 में कबाइलियों हमले के दौरान मोहम्मद अली जिन्ना ने मेरे पिता शेख मोहम्मद अब्दुल्ला से गुजारिश की थी कि वो पाकिस्तान में शामिल हो जाएं। लेकिन मेरे पिता ने जिन्ना के ऑफर को लात मारते हुए भारत में रहना कबूल किया।
उन्होंने कहा कि हम सब जानते हैं कि पाकिस्तान में फौज जम्हूरियत पर हावी है, असली हुकूमत तो पाक फैज की ही चलती है लेकिन हमारे यहां भारत में 1947 के बाद से ही जनता की हुकूमत है, लेकिन दुख होता है कि दिल्ली की सरकार ने जम्मू-कश्मीर की जनता से उनकी लोकतांत्रिक सरकार के अधिकार को छीन लिया है, इस कारण आज जम्मू-कश्मीर के आवाम की कहीं भी सुनवाई नहीं हो पा रही है।