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ई श्रीधरन : सरकारी वर्दी छोड़ सरकार चला रही पार्टी का हिस्सा बने

By भाषा | Updated: March 7, 2021 12:15 IST

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नयी दिल्ली, सात मार्च देश की राजधानी सहित कई शहरों में परिवहन व्यवस्था की सूरत बदलने वाले ई. श्रीधरन का नाम एक बार फिर सुर्खियों में है और मुद्दा ये है कि तकरीबन छह दशक तक अपनी तकनीकी विशेषज्ञता, ईमानदारी और कार्यकुशलता का लोहा मनवाने के बाद ‘मेट्रो मैन’ ने अपनी सरकारी वर्दी को अलविदा कह देश की सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी का हिस्सा बनने का फैसला किया है।

मेट्रो के आगमन से पहले 1990 के दशक में दिल्ली की कुछ सड़कों की कल्पना कीजिए। हर तरफ छोटी-छोटी सड़कें और उन पर रुक-रुक कर चलता ट्रैफिक, लंबे इंतजार के बाद आने वाली बसों में सवार होने की धक्कामुक्की और दोनों दरवाजों से लटकते दर्जनों लोग, मौसम की दुश्वारियां और मिनटों का सफर घंटों में तय करने की मजबूरी को जैसे दिल्लीवालों ने अपना नसीब ही मान लिया था। ऐसे में श्रीधरन ने मेट्रो रेल के रूप में एक साफ सुथरी, तेज और वातानुकूलित परिवहन प्रणाली देकर लोगों के दिल में जगह बना ली। लखनऊ से लेकर कोच्चि तक देश के कई शहरों में मेट्रो रेल नेटवर्क का खाका खींचने वाले श्रीधरन का नाम शहरी क्षेत्र के ज्यादातर लोग जानते हैं।

इस बात से बहुत कम लोग वाकिफ हैं कि श्रीधरन और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन सहपाठी रहे हैं। दोनों का जन्म 1932 में हुआ। शेषन और श्रीधरन दोनों ने ही पलक्कड़ के बीईम हाई स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद सरकारी विक्टोरिया कॉलेज से एक साथ पढ़ाई की। इंजीनियरिंग कॉलेज में भी दोनों का चयन एक साथ हुआ, लेकिन शेषन ने अपने भाई की तरह प्रशासनिक सेवा में जाने का फैसला किया। यह भी दिलचस्प संयोग है कि श्रीधरन और टी.एन. शेषन ने महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए अपने काम को बखूबी अंजाम देने के साथ ही अपने काम में किसी तरह का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं किया।

इस संबंध में कोई दो राय नहीं कि टी.एन शेषन को देश के चुनाव आयोग का चेहरा बदलने का श्रेय दिया जाता है। तमाम तरह की राजनीतिक उठापटक के बीच इन दोनों ने ही एक सख्त, ईमानदार, अनुशासनपसंद और कार्यकुशल अधिकारी के रूप में अपनी पहचान बनाई। इन तमाम योग्यताओं के साथ ई. श्रीधरन 89 साल की उम्र में एक नयी पारी खेलने को तैयार हैं और उनके प्रदर्शन पर कई लोगों की निगाहें हैं। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि जब वह इस उम्र में अपनी पेशेवर जिम्मेदारियों को बखूबी निभा सकते हैं तो राजनीति में भी उनका सफर खुशगवार होगा।

वैसे इस बात को तकरीबन डेढ़ बरस ही हुआ है जब श्रीधरन ने एक साक्षात्कार में राजनीति में आने की बात को यह कहकर टाल दिया था कि ‘राजनीति उनके बस की बात नहीं है।’ लेकिन ‘मेट्रो मैन’ के केरल में भाजपा में शामिल होने के ऐलान के बाद जब उन्हें राजनीति में न जाने की उनकी बात याद दिलाई गई तो उन्होंने बेहद नरमी से स्वीकार किया कि तकनीकी विशेषज्ञ के रूप में बहुत महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम करने के दौरान वह राजनीति में आने के बारे में नहीं सोच रहे थे, लेकिन अब जबकि वह अपनी तमाम पेशेवर जिम्मेदारियों को पूरा कर चुके हैं, उन्होंने राजनीति में आने का विचार किया।

श्रीधरन के करियर के शुरूआती दिनों की बात करें तो पढ़ाई पूरी करने के बाद श्रीधरन ने कुछ समय तक कोझीकोड के सरकारी पॉलीटेक्नीक में व्याख्याता के रूप में अपनी सेवाएं दीं और एक वर्ष तक बॉम्बे पोर्ट ट्रस्ट में भी काम किया। इसके बाद वह भारतीय इंजीनियरिंग सेवा के लिए चुन लिए गए। उन्होंने दिसंबर 1954 में दक्षिण रेलवे में प्रोबेशनरी सहायक अभियंता के रूप में कार्य प्रारंभ किया। यहां से रेलवे और रेलों से जुड़ा उनका नाता उनकी मेहनत और पेशेवर योग्यता के कारण हर दिन गहरा होता गया और एक वक्त ऐसा आया कि उन्हें दूरसंचार क्रांति के जनक सैम पित्रोदा और श्वेत क्रांति के प्रणेता कूरियन वर्गीज के समकक्ष रखा गया।

ई. श्रीधरन के योगदान का सम्मान करते हुए वर्ष 2001 में उन्हें पद्म श्री और वर्ष 2008 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें समय समय पर देश विदेश के कई सम्मान प्रदान किए गए। टाइम पत्रिका ने उन्हें 2003 में ऑनर ऑफ एशियाज हीरोज चुना, आईआईटी दिल्ली ने उन्हें डाक्टर ऑफ साइंस की उपाधि से नवाजा, 2005 में उन्हें फ्रांस सरकार ने सम्मानित किया, 2007, 2008 में वह सीएनएन-आईबीएन द्वारा ‘इंडियन ऑफ़ द ईयर चुने गए। उन्हें जापान सरकार ने भी मेट्रो परियोजना के जरिए दो देशों के बीच मैत्री को बढ़ावा देने के लिए सम्मानित किया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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